Edited By Updated: 10 Feb, 2017 08:38 AM
पंजाब में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 4 फरवरी को हो चुके हैं जिसके परिणाम 11 मार्च को आएंगे। इस समय के बीच नतीजों को लेकर जारी अटकलों ने अफसरों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है
जालंधरः पंजाब में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 4 फरवरी को हो चुके हैं जिसके परिणाम 11 मार्च को आएंगे। इस समय के बीच नतीजों को लेकर जारी अटकलों ने अफसरों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है क्योंकि अकाली-भाजपा के नेता तो उनको पुराने संबंधों के चलते किसी काम के लिए सिफारिशें कर ही रहे हैं, सरकार बनाने के दावे कर रहे कांग्रेस व आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं की फोन कॉल्स भी बढऩे से अफसर काफी परेशान नजर आ रहे हैं कि किसकी मानें और किसको जवाब दें।
अगर पंजाब में पिछले विधानसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस की सरकार बनना तय माना जा रहा था। उस समय भी वोटिंग व नतीजों के बीच काफी समय बचा था। उस दौर में कई अफसरों के अलावा अकालियों के करीबियों तक ने कैप्टन अमरेंद्र सिंह या बड़े कांग्रेसियों के दरबार में हाजिरी लगाई जिसकी भनक लगने पर सुखबीर बादल ने अधिकतर को खुड्डे लाइन लगाकर रखा। उनमें से कइयों को सफाई देते ही 5 वर्ष निकल गए। शायद यही वजह है कि चुनाव घोषित होते ही अक्सर बदलने वाला अफसरों का रुख बैलेंस ही रहा यानी कि उन्होंने अकाली-भाजपा को आखिरी दिनों तक प्राथमिकता दी और कुछ हद तक कांग्रेस व ‘आप’ के लोगों की बात भी सुनी।
राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ा
इस सबके बीच चुनावों के दौरान अकाली-भाजपा द्वारा पंजाब की अफसरशाही पर राजनीतिक दबाव होने का मुद्दा खूब गर्माया। कांग्रेस और ‘आप’ अक्सर ये आरोप लगाती रहीं कि अकाली दल ने पुलिस पर दबाव बना कर झूठे मामले दर्ज करवाए हैं। यहां तक कि पुलिस अफसर भी दबी जुबान में मानते हैं कि पिछले कई वर्षों में उनके काम में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ा है क्योंकि पुलिस विभाग के तबादले और बड़े पदों की नियुक्ति भी नेताओं की मर्जी से होती रही है। यह प्रथा भी काफी लंबे समय से चल रही है कि थानों के एस.एच.ओ. और ए.सी.पी./डी.एस.पी. की नियुक्ति क्षेत्र के अकाली-भाजपा विधायक या हलका इंचार्ज के कहने पर होती थी। इसी तरह पुलिस कमिश्नर और एस.एस.पीज भी बड़े नेताओं के चहेते ही लगते थे। अफसरों को आस थी कि चुनाव में इस सबसे छुटकारा मिलेगा क्योंकि पिछले कई चुनावों में चुनाव आयोग ने पंजाब चुनावों में सबसे ज्यादा तबादले पुलिस विभाग में ही किए थे। इसके तहत वर्तमान में तैनात अधिकांश पुलिस अफसर ऐसे हैं जिनको किसी का ‘चहेता’ नहीं माना जाता क्योंकि इनको चुनाव आयोग ने लगाया है। अब वोटिंग हो चुकी है और नतीजों को लेकर जो भी सर्वेक्षण आए, उसमें कांग्रेस व ‘आप’ दोनों में से किसी एक की सरकार बनने का जिक्र है जिससे बड़ी दिक्कत अफसरों के लिए खड़ी हो गई है जिनको आने वाली फोन कॉल्स में कांग्रेस व ‘आप’ के नेताओं की संख्या जहां बढ़ ही गई है वहीं अकाली-भाजपा नेता भी कुछ अफसरों को तैनात करवाने या पुराने संबंधों के दम पर उच्च अफसरों को फोन करने से गुरेज नहीं कर रहे।
नेता का कद और रिश्ते देखकर ही मानी जा रही वन साइड सिफारिश
इस दौर में यह बात सामने आई है कि अफसरों ने जहां पिछली बार के घटनाक्रम से सबक लेते हुए अकाली-भाजपा के लोगों को भी सिर्फ उन केसों में कुछ हद तक वेटेज देने का फैसला किया है जिनमें सिर्फ उनकी ही सिफारिश है और दूसरी तरफ कांग्रेस व ‘आप’ की शिकायत या सिफारिश नहीं है। इसी तरह वन साइड सिफारिश होने पर कांग्रेस व ‘आप’ के बड़े नेताओं की भी सुनवाई हो रही है। यहां तक कि कांग्रेस व ‘आप’ के दूसरी कतार के नेताओं द्वारा की जाने वाली शिकायत या सिफारिश को सुनकर कानून अनुसार कार्रवाई करने के निर्देश दिए जा रहे हैं। वहीं कई केसों में अकाली-भाजपा के नेताओं की सिफारिश भी आई हुई है।
सरकारी दफ्तरों में कम हुई नेताओं की भीड़
चुनाव प्रक्रिया के तहत वोटिंग खत्म होने के बाद नतीजे डिक्लेयर होने के समय तक अफसरशाही पर राजनीतिक दबाव कम होने का सीधा प्रभाव सरकारी दफ्तरों में नेताओं की भीड़ कम होने के रूप में नजर आने लग गया है। कुछ पुलिस अफसरों का कहना है कि पंजाब में पहले अकाली-भाजपा सरकार में ऐसे हालात बने हुए थे कि पुलिस कमिश्नर आफिस के साथ-साथ थानों में सुबह से ही सत्ता पक्ष के नेताओं का जमावड़ा शुरू हो जाता था लेकिन मतदान के बाद अब छोटे नेता उनको काम को कहने से भी गुरेज कर रहे हैं। पुलिस के साथ-साथ जिला प्रशासन भी राहत की सांस ले रहा है।
फ्री हैंड होने के बावजूद नहीं ले पाएंगे कोई बड़ा फैसला
चुनाव नतीजे आने के एक सप्ताह के बाद ही नई सरकार काम शुरू कर पाएगी। तब तक कहने को तो मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ही रहेंगे लेकिन सरकार तो अफसर ही चलाएंगे, जिसके तहत प्रशासन को लेकर सारे फैसले मुख्य सचिव सर्वेश कौशल करेंगे और पुलिस की कमान डी.जी.पी. सुरेश अरोड़ा के हाथ में रहेगी। हालांकि इस कार्यकाल में इन पर कोई राजनीतिक दबाव नहीं होगा लेकिन अपने-अपने विभागों में कोई बड़ा फैसला लेने की जगह ये दोनों अफसर शायद नई सरकार के रुख का इंतजार करेंगे।