Edited By Updated: 16 Jan, 2017 12:12 PM
पंजाब विधानसभा चुनाव पहले के मुकाबले दिलचस्प बनते जा रहे हैं।
चंडीगढ़ (भुल्लर): पंजाब विधानसभा चुनाव पहले के मुकाबले दिलचस्प बनते जा रहे हैं। इस विधानसभा चुनाव में बड़ी सियासी पार्टियों से बागी होकर बने फ्रंट और मोर्चांे के पूरी तरह से मैदान में उतर आने के बाद सभी बड़ी पार्टियों की वोट पर कैंची चलने का खतरा मंडरा रहा है। इससे पहले परंपरागत पार्टियों अकाली-भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुकाबला होता था लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी की उपस्थिति ने इसे त्रिकोणीय बना दिया है। ऐसे समय में कोई भी भविष्य के परिणामों का सही आकलन करने की स्थिति में नहीं है। खुद पाॢटयां भी असमंजस में दिखाई दे रही हैं। जैसे इस बार पंजाब में आधार न रखने वाली नई-नई पाॢटयां अकेले ही चुनाव लडऩे की रणनीति अपना रही हैं, वहीं छोटे-छोटे ग्रुपों को मिलाकर बने कई फं्रट भी मैदान में हैं। ये पाॢटयां व फ्रंट ही पंजाब में चुनाव का गणित बिगाड़ सकते हैं। इससे वोटों का बंटवारा होने से हंग असैंबली आने का विचार भी राजनीतिक हलकों में पनप रहा है।
इस समय 5 फं्रट चुनाव मैदान में उतरे हुए हैं जिनमें आपणा पंजाब फं्रट, पंजाब फं्रट, पंथक मोर्चा, वाम मोर्चा और मजदूरों के नरेगा फ्रंट उल्लेखनीय हैं। इसी तरह नई पाॢटयों में तृणमूल कांग्रेस, जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अलावा अन्य कई छोटी और नई पाॢटयां भी अपने बलबूते पर चुनाव लडऩे के लिए उम्मीदवार उतार रही हैं। इन पार्टियों के 30 से 40 तक ऐसे उम्मीदवार हैं जो बेशक खुद चुनाव न जीत सकें परंतु हलके में प्रमुख पार्टी की हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। यह उम्मीदवार 5 हजार से 15 हजार तक वोट खींच सकते हैं। यह उम्मीदवार ही चुनाव परिणामों के गणित को प्रभावित करेंगे।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बिना बड़ी तैयारी के 4 संसदीय सीटें जीतने और दिल्ली विधानसभा में हैरानीजनक सफलता प्राप्त करने के बाद पंजाब में पैर जमाने वाली ‘आप’ अब अकाली-भाजपा गठबंधन और कांग्रेस के मुकाबले में खड़ी है। बेशक टिकट वितरण के दौरान लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण ‘आप’ के ग्राफ में गिरावट आई है परंतु इसके बावजूद लोगों में सत्ता परिवर्तन की चर्चा के कारण मुकाबला मुख्यत: तीनों दलों के बीच ही दिखाई दे रहा है। इस गिरावट तथा कांग्रेस के पहले से और मजबूत होने के आकलनों के बीच अकाली-भाजपा नेतृत्व भी तीसरी बार सत्ता में आने के दावे कर रहा है।
अखंड अकाली और रिपब्लिकन को मिला कर छोटेपुर ने बनाया आपणा पंजाब फ्रंट
‘आप’ से अलग होकर सुच्चा सिंह छोटेपुर की पार्टी आपणा पंजाब के नेतृत्व में बना फं्रट अन्यों के मुकाबले अधिक सक्रिय दिखाई दे रहा है। राज्य के पूर्व विधानसभा स्पीकर रविइंद्र सिंह के नेतृत्व वाला अखंड अकाली दल और डॉ. बी.आर. अम्बेदकर के पौत्र प्रकाश अम्बेदकर के नेतृत्व वाली रिपब्लिकन पार्टी शामिल है। छोटेपुर भी गुरदासपुर से चुनाव मैदान में हैं। बटाला में प्रभाव रखने वाले इंद्र सेखड़ी भी उम्मीदवार हैं जो अपने ही कांग्रेसी भाई अश्विनी के सामने मैदान में हैं। अन्य उम्मीदवार जो जीतने की स्थिति में न होने के बावजूद अच्छे वोट खींचने में समर्थ हैं। ‘आप’ को छोड़कर आए कई नेता भी अपने-अपने क्षेत्रों में अच्छा प्रभाव रखते हैं।
2012 में मनप्रीत बादल की पी.पी.पी. ने बदला था दृश्य
2012 विधानसभा चुनाव में मनप्रीत बादल की ओर से अकाली दल से इस्तीफा देने के बाद गठित की गई पी.पी.पी. ने ही चुनाव का सारा गणित बिगाड़ दिया था। पहली बार चुनाव लड़कर राज्य में 5.04 प्रतिशत यानी 700145 वोट लेकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी। कुछ सीटों पर कांग्रेस व अकाली दल के बीच हार-जीत का अंतर बहुत कम था। कई सीटों पर तो सैकड़ों के अंतर से फैसला हुआ था। सुखबीर बादल ने भी उस समय परिणामों के बाद प्रतिक्रिया में पी.पी.पी. की भूमिका को उनको फिर से सत्ता में लाने के लिए स्वीकार किया था। इस बार तो ‘आप’ के अलावा अन्य कई मोर्चे और नई पाॢटयों के मैदान में उतरने के कारण ही भविष्य की स्थिति का बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषक तथा दिग्गज भी अनुमान नहीं लगा पा रहे। इन सारी स्थितियों में पंजाब विधानसभा 2017 के परिणाम पहले चुनावों के मुकाबले नया इतिहास बना सकते हैं।