Edited By Updated: 15 Jan, 2017 03:32 PM
इस बार चुनावों में राजनीतिक दल रैलियां करने से परहेज कर रहे हैं। उनका पूरा रुझान सोशल मीडिया पर प्रचार करने पर टिका है। इसे युवकों को लुभाने का क्रेज कहें या चुनाव आयोग का सीमित खर्च करने का डंडा।
जालंधरः इस बार चुनावों में राजनीतिक दल रैलियां करने से परहेज कर रहे हैं। उनका पूरा रुझान सोशल मीडिया पर प्रचार करने पर टिका है। इसे युवकों को लुभाने का क्रेज कहें या चुनाव आयोग का सीमित खर्च करने का डंडा। बहरहाल जो भी हो, इस समय ट्विटर से लेकर फेसबुक और व्हाट्सएप पर राजनीतिक दलों का दबदबा है। लगभग प्रत्येक राजनीतिक दल ने इसके लिए सोशल आर्मी को हायर किया हुआ है। बाकायदा आई.टी. एक्सपर्ट्स को काम पर रखा गया है। सोशल मीडिया का जादू इस कदर सिर चढ़ कर बोल रहा है कि अब तक सोशल मीडिया से दूर रहने वाली बहुजन समाज पार्टी भी इस पर जोर आजमा रही है।
बढ़ा क्रेज, रोक भी जरूरी
पिछले लोकसभा चुनावों में देखने में आया कि अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी, नरेंद्र मोदी, अखिलेश यादव जैसे नेता सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके बुलंदियों तक पहुंचे। इसी को देखते हुए सभी दल रैलियां छोड़कर इस पर जुटे हैं। इसके साथ ही चुनाव आयोग के पास शिकायतें भी आई हैं कि कई पार्टियों के लोग फर्जी पेज बनाकर झूठा प्रचार कर रहे हैं। ऐसे लोगों पर भी चुनाव आयोग ध्यान दे रहा है।
यह है आयोग की गाइड लाइन
आयोग की गाइड लाइन के अनुसार सभी प्रत्याशियों को नामांकन के समय फार्म 26 के तहत अपना फोन नंबर, ई-मेल, सोशल मीडिया अकाऊंट के बारे में जानकारी देनी होगी। साथ ही इसका इस्तेमाल करने वालों को चुनावी खर्च भी बताना होगा।