Edited By Updated: 11 Dec, 2016 11:50 AM
10 अक्तूबर 1983 से लेकर 20 सितम्बर 1985 तक पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू था,लेकिन इन 2 सालों में घटित 3 बड़ी घटनाओं के चलते 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में अकाली दल को चुनाव में बम्पर बहुमत हासिल हुआ था। केंद्र को उम्मीद थी कि दरबारा सिंह को...
जालंधर:10 अक्तूबर 1983 से लेकर 20 सितम्बर 1985 तक पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू था,लेकिन इन 2 सालों में घटित 3 बड़ी घटनाओं के चलते 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में अकाली दल को चुनाव में बम्पर बहुमत हासिल हुआ था। केंद्र को उम्मीद थी कि दरबारा सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटा कर गवर्नर रूल लागू किए जाने के बाद राज्य में हिंसा की घटनाओं में कमी आएगी,लेकिन केंद्र का अंदाजा बुरी तरह से फेल साबित हुआ और पंजाब आंतकवाद की आग में जलने लगा। जरनैल सिंह भिंडरांवाला और उनके साथियों द्वारा श्री दरबार साहिब में हथियारों के साथ डेरे लगा लिए गए और पंजाब में खराब हुए हालात ने पाकिस्तान को देश में अलगाववाद की आग को भड़काने का मौका दे दिया।
जून 1984 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते श्री दरबार साहिब में हथियारों के साथ शरण लिए जरनैल सिंह भिंडरावाला को बाहर निकालने के लिए आप्रेशन ब्लू स्टार हुआ,जिसमें श्री दरबार साहिब और श्री अकाल तख्त की इमारत को काफी क्षति पहुंची थी। श्री दरबार साहिब परिसर में सेना को इस र्कारवाई से गुस्साए तत्कालीन प्रधानमत्री इंदिरा गांधी के 2 सुरक्षाकर्मियों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने उन्हें गोली मार दी थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली सहित देश के कई हिस्सों में सिख विरोधी दंगे भड़क गए। इन तीन बड़ी घटनाओं के बाद जब 1985 में पंजाब का विधानसभा चुनाव हुआ तो अकाली दल को बम्पर बहुमत मिला। अकाली दल ने 117 सीटों में से 100सीटों पर चुनाव लड़ा और 73 सीटों पर जीत हासिल की । कांग्रेस को महज 32 सीटें ही मिली। इस दौरान भारतीय जनता पार्टी का गठन भी हो चुका था। भाजपा पहली बार पंजाब में 26 सीटों पर चुनाव लड़ी। उसे 6 सीटें हासिल हुईं।अकाली दल को बहुमत मिलने के बाद सुरजीत सिंह बरनाला को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया।