Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Dec, 2017 08:17 AM
मेयर को शहर का प्रथम नागरिक कहा जाता है जिसके चलते वह विशेष प्रोटोकॉल और विशेष सम्मान का अधिकारी होता है। विदेशों की बात करें तो वहां कई शहरों में मेयर को पुलिस व एडमिनिस्ट्रेटर जैसी कई शक्तियां भी प्राप्त होती हैं परंतु भारत के शहरों में मेयर...
जालंधर(अश्विनी खुराना): मेयर को शहर का प्रथम नागरिक कहा जाता है जिसके चलते वह विशेष प्रोटोकॉल और विशेष सम्मान का अधिकारी होता है। विदेशों की बात करें तो वहां कई शहरों में मेयर को पुलिस व एडमिनिस्ट्रेटर जैसी कई शक्तियां भी प्राप्त होती हैं परंतु भारत के शहरों में मेयर राजनीतिक प्रमुख के तौर पर जाने जाते हैं।
पंजाब के मेयरों की बात करें तो यहां उनको कोई ज्यादा शक्तियां प्राप्त नहीं हैं। मेयर के पास कोई वित्तीय अधिकार नहीं होता। मेयर ज्यादातर अपनी पावर पार्षद हाऊस की बैठक में दिखा सकते हैं जहां हर प्रस्ताव और चर्चा बारे अधिकार व शक्तियां मेयर को प्राप्त होती हैं। अनौपचारिक रूप से बात करें तो निगमों की अफसरशाही मेयर से तालमेल बनाकर निगम के ज्यादातर कार्य सम्पन्न करती है। इस समय पंजाब के 3 शहरों में निगम चुनाव अंतिम दौर में है। ऐसे में शहर का अगला मेयर कौन होगा, इसके लिए चर्चा का दौर शुरू हो चुका है।
निगम की सत्ता पर काबिज होने वाली पार्टी किस प्रकार मेयर का चुनाव करती है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा परंतु यह बात निश्चित है कि पंजाब के तीनों शहरों में मेयर पद ‘कांटों की सेज’ साबित होने जा रहा है। गौरतलब है कि राज्य के सभी नगर निगम गम्भीर वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं। शायद ही कोई निगम ऐसा हो जो अपने बलबूते पर अपने कर्मचारियों और अधिकारियों को वेतन अदा कर पाता हो।
वेतन देने तक के लिए निगमों को पंजाब सरकार का मुंह ताकना पड़ता है ताकि उसे जी.एस.टी. शेयर के रूप में पैसे मिलें और वेतन दिया जा सके। अमृतसर और जालंधर में निगम कर्मचारियों के वेतन मिलने में देरी होना आम बात है। लुधियाना में तो कई-कई महीने निगम कर्मियों को बगैर वेतन के गुजारने पड़ते हैं। जालंधर के अगले मेयर की चर्चा करें तो इस कुर्सी पर जो भी आसीन होगा उसे चार्ज लेते ही धरने-प्रदर्शनों और नगर निगम की खस्ता वित्तीय हालत से जूझना होगा।
जालंधर के 6वें मेयर के सामने दरपेश चुनौतियां कुछ इस प्रकार हैं-
301 मालियों का मुद्दा
कई साल पहले जालंधर निगम ने कच्चे आधार पर रखे गए 301 मालियों को पक्का करने की प्रक्रिया शुरू की थी जिसके तहत कुछेक को नियुक्ति पत्र तक दे दिए गए थे परंतु बाद में यह प्रक्रिया रोक दी गई। बाद में निगम यूनियनों ने इस मुद्दे को लेकर कई बार संघर्ष किया। आने वाले मेयर को इस मुद्दे से सबसे पहले जूझना होगा।
535 सफाई कर्मियों की भर्ती
निगम के पार्षद हाऊस ने कुछ माह पहले यूनियनों की हड़ताल को खत्म करवाने हेतु 535 सफाई कर्मचारियों की पक्की भर्ती बारे प्रस्ताव पास किया था। इस पर अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई। निगम यूनियनें इस मुद्दे पर काफी आग-बबूला हैं। अगले मेयर को इस मुद्दे से भी निपटना होगा।
ठेकेदारों की देनदारी
निगम की खस्ता वित्तीय हालत नए मेयर के सामने जबरदस्त चुनौती होगी। इस समय निगम पर ठेकेदारों की 20 करोड़ रुपए से ज्यादा की देनदारी है, वर्ना ठेकेदार काम शुरू करने में आनाकानी करेंगे। हाल ही में जालंधर निगम ने विकास कार्यों हेतु 42 करोड़ रुपए के टैंडर लगाए हैं परंतु पंजाब सरकार ने अभी तक इसमें से मात्र 10 करोड़ भेजे हैं, सरकार से बाकी पैसे लेने और ये विकास कार्य सिरे चढ़ाने भी एक चुनौती भरा कार्य होगा।
कूड़ा बन रहा विकराल समस्या
इस समय जालंधर शहर कई समस्याओं से जूझ रहा है परंतु सबसे बड़ी समस्या कूड़े को लेकर है। कोई ठोस हल न होने के कारण यह समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। शहर के मुख्य डम्प वरियाणा में 10 लाख टन के करीब कूड़ा जमा हो चुका है। हर रोज शहर में 500 टन से ज्यादा कूड़ा निकलता है परंतु एक किलो कूड़ा भी प्रोसैस नहीं हो पा रहा जिस कारण कूड़े के पहाड़ बढ़ते जा रहे हैं। आने वाले मेयर को इस समस्या के दृष्टिगत कुछ न कुछ अवश्य करना होगा।
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना होगा
पिछले कई सालों से नगर निगम भ्रष्टाचार का अड्डा बने हुए हैं। बिल्डिंग विभाग के अधिकारी पैसे लेकर अवैध निर्माण करवाए जा रहे हैं, तहबाजारी की टीम निजी वसूली की ओर ज्यादा ध्यान देती है। डिफाल्टरों को कुछ न कुछ लेकर बख्श दिया जाता है। ऐसे में भ्रष्टाचार का मुद्दा नए मेयर के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगा क्योंकि इसी मुद्दे पर मेयर की इमेज टिकी रहेगी।
लोकल ट्रांसपोर्ट और ट्रैफिक
इस समय जालंधर शहर में ट्रैफिक का बुरा हाल है। हर सड़क, हर चौराहा ट्रैफिक जाम के दृश्य पेश करता है। अवैध कब्जों पर कार्रवाई की हिम्मत किसी में नहीं। शहर में लोकल ट्रांसपोर्ट की सुविधा बिल्कुल नहीं जिस कारण प्राइवेट वाहनों व ऑटो का प्रदूषण खतरनाक हद तक बढ़ चुका है। इस मामले से निपटना नए मेयर के लिए चैलेंजिंग होगा।
कुत्ते व आवारा पशु
शहर में आवारा कुत्तों की संख्या 15 हजार से ज्यादा है। पिछले समय में खूंखार कुत्ते कइयों की जान तक ले चुके हैं। निगम ने डॉग कम्पाऊंड तो बनाया है परंतु वहां 20 दिन में मात्र 10 कुत्तों के नसबंदी आप्रेशन हुए हैं, ऐसे में 15 हजार कुत्तों की बारी कितने साल में आएगी। इसी तरह गौशालाएं होने के बावजूद आवारा गौधन की समस्या कम नहीं हो रही। नए मेयर को इन समस्याओं से भी दो-चार होना पड़ेगा।