Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Nov, 2017 02:53 PM
लुधियाना में प्लास्टिक इंडस्ट्री में लगी आग के हादसे के बाद भी सरकारी विभाग अपनी जिम्मेदारी संभालने को तैयार नहीं हैं। फैक्टरी डिपार्टमैंट के अधिकारी इंडस्ट्री में जांच करने की बजाय आफिस में बैठे ही फैक्टरी एक्ट लाइसैंस जारी कर रहे हैं। ‘पंजाब...
लुधियाना(धीमान): लुधियाना में प्लास्टिक इंडस्ट्री में लगी आग के हादसे के बाद भी सरकारी विभाग अपनी जिम्मेदारी संभालने को तैयार नहीं हैं। फैक्टरी डिपार्टमैंट के अधिकारी इंडस्ट्री में जांच करने की बजाय आफिस में बैठे ही फैक्टरी एक्ट लाइसैंस जारी कर रहे हैं। ‘पंजाब केसरी’ ने जब स्थानीय फैक्टरी डिपार्टमैंट से डाइंग यूनिट के बारे में जानकारी हासिल करनी चाही तो किसी भी अधिकारी को सही आंकड़ा तक मालूम नहीं था। ताजपुर रोड, बहादुरके रोड, राहों रोड, इंडस्ट्रीयल एरिया आदि में लगी डाइंग इंडस्ट्री का सही आंकड़ा बताने में असिस्टैंट डायरैक्टर फैक्टरी मारकन सिंह व सुखविंद्र सिंह भट्टी के हाथ-पांव फूल गए। दोनों का एक ही जवाब था कि लिस्ट देखकर ही बताया जा सकता है। जब अंदाजन पूछा गया तो मारकन सिंह ने राहों रोड, ताजपुर रोड और बहादुरके रोड पर करीब 120 यूनिट बताए, जबकि इन सब जगह पर 180 के आसपास यूनिट हैं।
वहीं सुखविंद्र सिंह भट्टी ने इंडस्ट्रीयल एरिया में 12 से 15 डाइंग यूनिट होने की बात कही। असल में वहां 27 यूनिट हैं। फोकल प्वाइंट में कितने यूनिट हैं, इसका आंकड़ा किसी भी आफिसर ने नहीं बताया। उक्त अधिकारियों ने कहा कि फोकल प्वाइंट एरिया को कोई और अधिकारी देखता है। यहां भी करीब 45 डाइंग यूनिट हैं। इन सभी यूनिटों को फैक्टरी डिपार्टमैंट ने हर साल जांच के बाद फैक्टरी एक्ट लाइसैंस देना होता है।अधिकारियों के पास यूनिट-टू-यूनिट जाकर चैकिंग करने का समय नहीं है। आफिस में बैठे ही फैक्टरी एक्ट लाइसैंस जारी कर दिए जाते है। डाइंग यूनिटों में घटना घटे, उसकी अधिकारियों को कोई परवाह नहीं है, जबकि डाइंग यूनिट में डाइज एंड कैमिकल का इस्तेमाल होता है, जो आग लगने का कारण बन सकते हैं। इसके बाद बॉयलर को चलाने के लिए कोयले या चावल के छिलके का इस्तेमाल होता है। इसकी एक चिंगारी बड़े हादसे में तबदील हो सकती है। एक्रेलिक व पॉलिस्टर को जब रंगा जाता है तो उस समय काफी एहतियात बरतने की जरूरत होती है।
हल्की से एक ङ्क्षचगारी भी कपड़े के साथ फैक्टरी को जला कर राख कर सकती है। यहां तक कि फैक्टरी डिपार्टमैंट को यह भी देखना होता है कि रंगाई वाली जगह पर बल्ब तो नहीं लगा है। यदि लगा है तो उसकी जगह ट्यूबलाइट लगवानी होती है, क्योंकि बल्ब फटने से भी आग लग सकती है। इसके अलावा दर्जनों ऐसे नियम हैं जिनकी जांच करनी होती है। ऐसे हालातों को देख कर साफ होता है कि लुधियाना की सारी इंडस्ट्री आग से खेल खेलने में विश्वास रखती है। यदि सही तरीके से अधिकारी जांच करें तो आगजनी वाली घटनाओं से बचा जा सकता है।