Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Oct, 2017 09:26 AM
पर्यावरण प्रदूषण की निरंतर गहराती जा रही समस्या पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी प्रतिबंध आदेशों के बाद विशेषकर पंजाब सरकार और पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड भी नींद से जाग उठे हैं। प्रतिबंध लगा कर अपने संवैधानिक दायित्वों की खानापूर्ति मात्र कर रहे हैं।...
अमृतसर(सोनी): पर्यावरण प्रदूषण की निरंतर गहराती जा रही समस्या पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी प्रतिबंध आदेशों के बाद विशेषकर पंजाब सरकार और पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड भी नींद से जाग उठे हैं। प्रतिबंध लगा कर अपने संवैधानिक दायित्वों की खानापूर्ति मात्र कर रहे हैं। हालांकि यह उन्हें भी पता है कि उनके आदेशों का पालन कितने प्रतिशत होता है।
विस्मय तो यह है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता सरकार और प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को पहले क्यों न आई? नि:संदेह पटाखों चलाने का समय निर्धारित करना प्रदूषण नियंत्रण के हित में सकारात्मक कदम है तो भी प्रश्न उठता है कि क्या पर्यावरण संरक्षण, मात्र कुछ दिन चलने वाले पटाखों-आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगाने से ही हो जाएगा? क्या दैनिक जीवन में काला धुआं फैंकने वाले वाहन विशेषकर आटो-रिक्शा, ट्रक-बसें, क्या पर्यावरण को आघात पहुंचाने के दोषी नहीं?
प्रश्न उठता है कि प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को क्या यह काला धुआं छोड़ते वाहन, आयु भोग चुके व सड़कों पर कर्णभेदी शोर मचाते भागते वाहन नजर नहीं आते जो पर्यावरण प्रदूषण के वास्तविक दोषी हैं। उन मनचलों जो अपने मोटरसाइकिलों से कर्णभेदी शोर पैदा करते बड़ी दीदा दिलेरी से सड़कों पर दौड़ते फिर रहे हैं, के विरुद्ध क्यों कार्रवाई नहीं होती?
सिर्फ दीवाली के अवसर पर पटाखों पर प्रतिबंध का पाखंड क्यों? कहना पड़ेेगा कि- ‘जब रंज दिया बुतों ने तो खुदा याद आया’ यानि जब पर्यावरण प्रदूषण का ‘पानी सिर से ऊपर हुआ’ तो प्रशासन की नींद टूटने लगी वह भी न्याय पालिका द्वारा कान खींचने पर वर्ना इन सरकारों और उसके तंत्र को इन सामाजिक समस्याओं के प्रति अपने दायित्व का कभी कोई बोध नहीं हुआ।