कपास तले रकबा बढ़ाया लेकिन नहीं मिल रहा पूरा मूल्य

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Nov, 2017 10:44 AM

cotton crop

मालवा पट्टी के कपास उत्पादक किसान कपास की फसल को लेकर संकट में हैं। पहले आलू उत्पादक किसानों को योग्य मूल्य न मिलने के कारण उन्हें आलू औने-पौने दाम पर बेचने पड़े और अब कपास की उचित कीमत न मिलने के कारण किसान मुश्किल में हैं। पिछले साल कपास का मूल्य...

बठिंडा(परमिंद्र): मालवा पट्टी के कपास उत्पादक किसान कपास की फसल को लेकर संकट में हैं। पहले आलू उत्पादक किसानों को योग्य मूल्य न मिलने के कारण उन्हें आलू औने-पौने दाम पर बेचने पड़े और अब कपास की उचित कीमत न मिलने के कारण किसान मुश्किल में हैं। पिछले साल कपास का मूल्य 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक रहा लेकिन इस बार कपास का मूल्य 4,500 के करीब ही अटका हुआ है। ऐसे में किसानों में निराशा का आलम है कि रकबा बढ़ाने के बावजूद उन्हें अधिक मूल्य नहीं मिल रहा। 

पिछले साल के मुकाबले गिरे दाम
आम तौर पर यही होता है कि जिस साल किसानों को कपास के अ‘छे दाम मिलें तो वे अगले सीजन के दौरान कपास तले रकबा बढ़ाने को तरजीह देते हैं लेकिन तब किस्मत उनका साथ नहीं देती। गत वर्ष किसानों ने बेशक पिछले सालों के सफेद मक्खी के हमले को देखते हुए कम रकबे में बिजाई की थी लेकिन उन्हें अच्छा दाम मिल गया था। कपास के दाम पिछले साल 5 हजार से 7 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक रहा था जिससे किसान काफी उत्साहित दिखे थे। इसी कारण उन्होंने इस बार कपास तले रकबा बढ़ा दिया था लेकिन इस बार किसानों को अच्छा दाम नहीं मिल रहा।

क्या कहते हैं अधिकारी
मुख्य कृषि अधिकारी जी.एस. सिद्धू ने कहा कि पिछले साल के मुकाबले कपास तले रकबा बढ़ा है व धान तले रकबे में कमी आई है। पर्यावरण के लिए यह अ‘छा है। किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिलना भी जरूरी है। 


कई जिलों में बढ़ा कपास तले रकबा
मालवा पट्टी के कई जिलों में कपास तले रकबा बढ़ा है व धान तले रकबा कम हुआ है। सरकार भी धान तले रकबा कम करने को ही प्रेरित करती है ताकि अधिक से अधिक पानी बच सके लेकिन किसानों को धान का उचित मूल्य मिलता है जिस कारण किसान अगले साल फिर से धान तले रकबा बढ़ाने को तरजीह दे सकते हैं। बङ्क्षठडा में पिछले साल कपास तले रकबा मात्र 97 हजार हैक्टेयर था जो इस बार बढ़कर 1.&0 लाख हैक्टेयर हो गया है। धान तले रकबे में कमी आई है। पिछले साल धान तले रकबा 1.58 लाख हैक्टेयर था जो इस बार कम होकर 1.25 लाख हैक्टेयर रह गया है। इसी प्रकार जिला मुक्तसर में भी कपास तले रकबा लगभग दोगना होकर &2 हजार हैक्टेयर से 64 हजार हैक्टेयर से भी ऊपर हो गया है।


 

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