आज भी सड़कों पर रुल रहा है यह बचपन, बाल मजदूरों के लिए सपना बना 'बाल दिवस'

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Nov, 2017 09:57 AM

childrens day

देश भर में प्रत्येक वर्ष 14 नवम्बर बच्चों को समर्पित दिन ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। जहां इस दिन मध्य वर्ग व अमीर घरों के बच्चे खुशियां मनाते हैं वहीं गरीबी में अपना जीवन बसर करने वाले बच्चे, जिनको कभी स्कूल जाना भी नसीब नहीं होता वह शायद...

श्री मुक्तसर साहिब(हरीश तनेजा): देश भर में प्रत्येक वर्ष 14 नवम्बर बच्चों को समर्पित दिन ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। जहां इस दिन मध्य वर्ग व अमीर घरों के बच्चे खुशियां मनाते हैं वहीं गरीबी में अपना जीवन बसर करने वाले बच्चे, जिनको कभी स्कूल जाना भी नसीब नहीं होता वह शायद इस बात से अनजान ही हैं कि कोई बाल दिवस भी होता है। इन मासूमों की दयनीय हालत को समझने के लिए जब हमारे इस प्रतिनिधि ने शहर की गरीब बस्तियों के कुछ बच्चों के साथ बातचीत की तो इन सबसे अनजान एक कागज बीन रहे मासूम ने कहा कि ‘बाबू जी हमें नहीं पता कि बाल दिवस क्या होता है।PunjabKesari
हमें तो यही पता है कि शहर में लगे गंदगी के ढेरों में से अपने परिवार के लिए रोटी ढूंढनी है और परिवार का पेट भरना है या फिर ढाबे, चाय की दुकान या अन्य किसी के घर जाकर जूठे बर्तन धोने हैं।’ देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी का जन्म दिन जो कि पूरे देश में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है परंतु इन बच्चों को बाल दिवस के बारे में जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि बाबू जी बाल दिवस क्या होता है, उनको तो इस बारे में पता नहीं बस पेट भरने के लिए रोटी चाहिए।PunjabKesari
बाल मजदूरों का कहना है कि जब वे बच्चों को स्कूल की वर्दी में तैयार होकर स्कूल जाते देखते हैं तो उनके मन में भी उबाल उठता है कि कभी वह भी स्कूल जाएंगे परंतु उनकी किस्मत में सिर्फ मजदूरी करके पैसे कमाना व अपने परिवार का पेट पालना ही लिखा है। शहर की गलियों तथा बाजारों में ऐसे बच्चे जो आॢथक मजबूरियों के शिकार हैं। शहर की गलियों और बाजारों में ऐसे बच्चे पूरा दिन गंदगी के ढेर में कागज, गत्ता, प्लास्टिक, लोहा, कांच की बोतलें आदि सामान कंधे पर उठा कर घूमते-फिरते आम ही देखे जा सकते हैं। PunjabKesari
सरकार व प्रशासन के दावे खोखले 
बाल मजदूरी रोकने के लिए केंद्र तथा राज्य सरकार द्वारा बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं परंतु जमीनी स्तर पर हकीकत कुछ और ही बयां करती है। बेशक बाल दिवस के किए जाते समागमों में बच्चों को देश का भविष्य तथा नेता कहकर सम्मानित किया जाता है परंतु गरीबी की मार झेल रहे इन बच्चों की तरफ शायद ही किसी की दया दृष्टि पड़ती हो। ऐसी स्थिति में बचपन सुधार के दावे अक्सर खोखले सिद्ध होते हैं।

बाल सुधार योजनाएं मात्र कागजी 
बेशक सरकार तथा प्रशासन बच्चों का जीवन स्तर ऊं चा उठाने के लिए शिक्षा दिलाने जैसी कई भलाई योजनाएं लागू कर रहा है, जबकि यह मात्र कागजी कार्रवाइयां ही सिद्ध हो रही हैं। 

क्या कहना है जिला मैजिस्ट्रेट का 
इस संबंध में जब जिला मैजिस्ट्रेट डा. सुमित जारंगल के साथ बातचीत की गई तो उनका कहना था कि एस.डी.एम. राजपाल के नेतृत्व में टीम का गठन किया गया है, जोकि शहर में समय-समय पर चैकिंग करके आरोपियों के चालान भी काटती है। आप इस संबंधी एस.डी. एम. साहिब के साथ संपर्क कर लो परंतु बार-बार फोन करने के बावजूद भी उन्होंने फोन नहीं उठाया।


 

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