नेत्रहीन बेटी बोली! पी.एम साहिब मैं बी.ए. पास हूं, नौकरी दिला दो

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Mar, 2018 05:07 PM

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पी.एम. साहिब! मैं बी.ए. पास हूं, नौकरी दिला दो। मेरा घर वाराणसी है, जहां से आप सांसद है। मैंने बड़ी मुश्किल से बी.ए. की पढ़ाई की है। मुझे नवरात्रों का इंतजार सदैव रहता था। कंजक में मिले पैसे में पढ़ाई पर खर्च करती थी। पी.एम. साहिब! मैं बी.ए....

अमृतसर (स.ह., नवदीप): पी.एम. साहिब! मैं बी.ए. पास हूं, नौकरी दिला दो। मेरा घर वाराणसी है, जहां से आप सांसद है। मैंने बड़ी मुश्किल से बी.ए. की पढ़ाई की है। मुझे नवरात्रों का इंतजार सदैव रहता था। कंजक में मिले पैसे में पढ़ाई पर खर्च करती थी।

 

एक-एक पैसा जोड़ कर मैंने बड़ी मुश्किल से पढ़ाई की है। मैं जब 10वीं कक्षा में थी तभी ठान लिया था कि अपने बलबूते पर ग्रेजुएशन करुंगी, खुशी है कि मैं बी.ए. तक पढ़ सकी। मैं नेत्रहीन हूं, अगर लिख पाती तो जरूर प्रधानमंत्री को ‘पाती’ भेजती। आप ‘पंजाब केसरी’ के माध्यम से मेरी बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक पहुंचा दें। यह कहते हुए प्रियम्वदा भावुक हो गई। कहने लगी कि मैं विधाता से नाराज नहीं हूं लेकिन समाज की बेरूखी अब बर्दाश्त नहीं होती। 


प्रियम्वदा कहती है कि प्रधानमंत्री रेडियो पर मन की बात में ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओं’ की बातें करते हैं। मैं उनके मन की बात हर बार सुनती हूं। मेरी इच्छा है कि वह मेरे मन की बात सुनें। मेरा सवाल है कि ‘कैसे पढ़ेंगी बेटी, कैसे बढ़ेगी बेटी’। जिस समाज में बेटियां स्कूल-कालेज से लेकर घर में सुरक्षित नहीं रह गई है। महिलाओं पर होने वाले अपराध दिनों-दिन बढ़ रहे हैं और दूसरी तरफ समाज में कंजक पूजन किया जाता है। 

 

आखिर समाज को दिशा कौन देगा। देश में आज भी बेटियां 12वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं या उनकी शादी करके मां-बाप अपना बोझ कम कर लेने का दम भरते हैं। ऐसे में सरकार ऐसा कानून बनाए जो सचमुच बेटियों को पढ़ाने व बेटियों को बचाने के लिए काम करे। प्रियम्वदा मूल रूप से वाराणसी के गांव राजपुर की रहने वाली है। 

 

मां के कोख में ही भगवान ने उसकी आंखों से रोशनी छीन ली। जन्म के बाद से उपेक्षा के बीच प्रियम्वदा ने ठान लिया कि वो एक दिन समाज की आंखें खोलेगी। प्रियम्वदा ने दिल्ली में पढ़ाई पूरी करने के बाद अमृतसर आकर नेत्रहीनों की रोशनी बन गई है। वो बेटियों को साक्षर करने और उन्हें रोजगार दिलाने के लिए अपने गुरु रविंद्र कुमार जोशी के साथ मिलकर अंध विद्यालय में सीख भी रही है और शिक्षा भी दे रही है। 

 

एक मिशन के साथ अमृतसर पहुंची। यहां पर वो पढ़ाई के साथ-साथ अपनी गृहस्थी भी चला रही है। 15 मार्च 2017 की उसकी शादी आनंद से हुई। आनंद अंध विद्यालय में काम करता है। आनंद की आंखों की कम रोशनी में प्रियम्वदा संसार देखती है। कहती हैं कि मैं मन की आंखों से दुनियां देखती हूं। 

 

मन की बात’ सुनती है, रफी के गीत पसंद 
प्रियम्वदा के पिता उमा शकंर सिंह का देहांत हो चुका है। मां मोहिनी गांव में रहती है। बड़ी बहन वंदना लैक्चरार है, भाई प्रशांत को पिता के स्थान पर टीचर की नौकरी मिल गई है। उससे बड़ी बहन शुभांगी गृहणी है। प्रियम्वदा टीचर बनना चाहती है। खाना सारा पका लेती है, लेकिन रोटियां गोल नहीं बेल पाती। प्रियम्वदा टी.वी. सुनती है, ऊपर वाले ने उसे इतनी स्मरण शक्ति दी है कि उसे जानने वाले उसे ‘मिनी कम्प्यूटर’ कहते हैं। 

 
 

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