Edited By Updated: 25 May, 2017 01:18 AM
करीब छह महीने पहले जिस एक्शन प्लान के बलबूते पर पंजाब सरकार ने
चंडीगढ़: करीब छह महीने पहले जिस एक्शन प्लान के बलबूते पर पंजाब सरकार ने नाड़ जलाने से फैलने वाले प्रदूषण पर अंकुश लगाने की बात कही थी, उसकी पहली ही फसल में हवा निकल गई है। अब तक 11 हजार से ज्यादा किसान खेतों में आग लगा चुके हैं। बेशक जुर्माने ठोकने का सिलसिला बदस्तूर जारी है, लेकिन सरकार के एक्शन प्लान को अमल में लाने की रफ्तार इतनी धीमी है कि शायद धान की कटाई के मौसम में लोगों को बद्तर हालात झेलने पड़ सकते हैं।
ऐसा इसलिए है क्योंकि गर्मियों की तुलना में सर्दियों के दौरान खेतों में आग से फैलने वाला प्रदूषण ज्यादा घातक होता है। सॢदयों में प्रदूषण व धुएं के कण हवा में घुलकर पूरे आसमान में हल्की मटमैली चादर की तरह छा जाते हैं जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है। पिछली सर्दियों में प्रदूषण की इसी चादर ने पंजाब-हरियाणा से लेकर दिल्ली-उत्तर प्रदेश तक लोगों की सांसें फुला दी थीं। वैसे तो सरकारी तंत्र कई सालों से प्रदूषण पर नकेल कसने का फार्मूला सुझाता रहा है लेकिन पिछले वर्ष न्याय पालिका की फटकार ने पंजाब को ठोस पहल करने पर मजबूर कर दिया था। इसीलिए आनन-फानन में चीफ सैक्रेटरी के स्तर पर बुलाई बैठक में 2017 में प्रदूषण पर नकेल कसने के लिए डिटेल्ड इम्पलीमैंटेशन प्लान का ऐलान किया गया, लेकिन पहली ही फसल ने प्लाङ्क्षनग को खोखला साबित कर दिया है।
बायोमास प्रोजैक्ट्स की सुस्त रफ्तार
विज्ञान,प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण विभाग के स्तर पर भी कई कार्य किए जाने थे,लेकिन इनकी रफ्तार काफी सुस्त है। बायोमास प्रोजैक्ट्स की बात करें तो कुछ साल पहले घोषित बिजली की 200 मैगावाट वाली परियोजनाओं में से 150 मैगावाट की परियोयोजनाएं रद्द हो चुकी हैं। सरकारी स्तर पर बायोमास योजनाओं को चालू करने की भी बात कही गई थी,लेकिन सिरे नहीं चढ़ पाईं। इसी कड़ी में ईंट-भट्टा संचालकों को फसलों के अवशेष जलाने के लिए मुहैया करवाए जाने की बात कही गई थी, लेकिन मामूली हिस्सा ही ईंट-भट्टा संचालकों को सप्लाई हो पा रहा है।
पशुओं के लिए नहीं बन पा रहा चारा
पशुपालन विभाग को जिम्मा दिया गया था कि फसल के बचे हुए हिस्से को जलाने की बजाए चारे के तौर पर इस्तेमाल के लिए प्रचारित किया जाए। खासतौर पर धान के बचे हुए हिस्से को राज्यभर की गौशालाओं तक पहुंचाने की पहल हो ताकि प्रदूषण को कम किया जा सके, लेकिन अभी तक इस दिशा में भी कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है। यहां तक कि धान के बचे हुए हिस्से को चारे के तौर पर इस्तेमाल करने की तकनीक तक किसानों को उपलब्ध नहीं करवाई गई है।
मॉडल जिले को मार गई आर्थिक तंगी
प्लाङ्क्षनग के दौरान तय किया गया था कि पंजाब के एक जिले को ऐसा मॉडल जिला बनाया जाएगा, जो आग लगाने की घटना से पूरी तरह मुक्त होगा। इसके लिए पटियाला जिले का चयन किया गया था, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते योजना हवा-हवाई ही है। उच्चाधिकारियों के मुताबिक इस योजना पर करीब 23 करोड़ रुपए खर्च होने हैं, लेकिन पंजाब सरकार के खजाने से इतना धन रिलीज नहीं हो पाया कि योजना को अमल में लाया जा सके।
2466 करोड़ रुपए की योजना का इंतजार
आर्थिक तंगी के चलते पंजाब सरकार ने 23 करोड़ रुपए की मॉडल जिले वाली योजना को कृषि विभाग की तरफ से तैयार योजना में मर्ज कर दिया था। इसके तहत केंद्रीय कृषि मंत्रालय से आर्थिक मदद मांगी गई है। कृषि विभाग ने मंत्रालय को करीब 2466 करोड़ रुपए की योजना का प्रस्ताव भेजा है। इसमें किसानों को आधुनिक कृषि संसाधन मुहैया करवाए जाने से लेकर,किसानों को सीधे आर्थिक मदद व फसल विविधिकरण की तरफ उन्मुख किया जाना है। यह अलग बात है कि मौजूदा समय में यह पूरी योजना फाइलों तक सीमित है।
परिवहन विभाग भी नहीं कर पाया सख्ती
प्लानिंग के अनुसार परिहवन विभाग को सुनिश्चित करना था कि भविष्य में जो कंबाइन मशीनें सड़क पर उतरें,वह पूरी तरह स्ट्रॉ मैनेजमैंट सिस्टम से लैस हों ताकि कटाई के दौरान जमीन की सतह तक फसल पूरी तरह काटी जा सके। अधिकारियों की मानें तो परिवहन विभाग ने पहले नई कंबाइन पर ही नियम को लागू करने की हामी भरी, लेकिन बाद में कहा गया कि सभी कंबाइन मशीनों में सिस्टम अनिवार्य किया जाए।
नतीजा, पेंच फंस गया, क्योंकि इससे आशंका गहरा गई कि कंबाइन संचालकों पर सख्ती करने से वह बाहरी राज्यों में कटाई करने को तव्वजो देने लगेंगे जिससे यहां के किसानों को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है इसलिए सभी राज्य एक साथ कंबाइन के साथ सिस्टम लगाना अनिवार्य करें। इसी के चलते केंद्रीय परिवहन मंत्रालय के स्तर पर नियमों में संशोधन करने का अनुरोध किया गया है लेकिन अभी तक यह पूरा मामला कागजों तक ही सीमित है।
एक्शन प्लान में सभी विभागों को दी गई थी जिम्मेदारियां
पंजाब सरकार के एक्शन प्लान में सभी विभागों को जिम्मेदारियां दी गई थीं ताकि 2017 दौरान खेत में आग लगाने की कम से कम घटनाएं हों। इसीलिए इस प्लानिंग में कृषि विभाग से लेकर परिवहन,बागवानी, पशुपालन, विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण एवं पंचायत जैसे विभागों को शामिल किया गया था।
किताब का हिस्सा नहीं बन पाया
प्लानिंग दौरान निर्णय लिया गया था कि खेत में आग जलाने से होने वाले नुक्सान के प्रति जागरूकता लाने के लिए स्कूल स्तर पर किताबों में प्रदूषण के नुक्सान को लेकर एक चैप्टर शामिल किया जाएगा। शिक्षा विभाग ने इस पर मोहर भी लगाई थी,लेकिन अब तक शिक्षा विभाग इसे सभी कक्षाओं के स्तर पर पूरी तरह लागू नहीं कर पाया है। शिक्षा विभाग के अधिकारियों को यह तक नहीं पता कि किस कक्षा से इसकी जानकारी का आगाज किया जाए। इसके अलावा स्कूली बच्चों द्वारा विभिन्न गांवों में ह्यूमन चेन के जरिए जागरूकता मुहिम चलाने का भी ऐलान किया गया था,लेकिन यह पूरा मामला भी ठंडे बस्ते में ही है।
स्वास्थ्य विभाग की डिटेल रिपोर्ट का इंतजार, डाटा बैंक करना था तैयार
स्वास्थ्य विभाग को कहा गया था कि आग लगाने की घटनाओं के दौरान पूरे प्रदेश में सांस जैसी बीमारियों के मरीज का पूरा डाटा बैंक तैयार किया जाए, लेकिन अब तक यह तैयार नहीं हो पाया है। स्वास्थ्य विभाग के डाटा को जागरूकता प्रोग्राम के तहत इस्तेमाल किया जाना था। इसीलिए तय किया गया था कि आशा वर्कर्स को जागरूकता प्रोग्राम में शामिल किया जाएगा। आशा वर्कर्स पोस्ट व पम्फलैट्स की शक्ल में इस डाटा बैंक को प्रचारित करेंगी।
बागबानी विभाग फल-फूल का रकबा बढ़ाए, फसली चक्कर से निकाले
बागबानी विभाग को जिम्मा दिया गया था कि वह किसानों को गेहूं-धान के फसली चक्कर से निकालकर फल-फूल की खेती के प्रति प्रोत्साहित करे। इसके लिए विशेष योजना बनाने का भी प्रस्ताव था लेकिन किसानों को तय मूल्य का कोई फार्मूला न मिल पाने के कारण अभी भी किसान इस दिशा में बढऩे से गुरेज कर रहे हैं। यही वजह है कि बागबानी के अधीन क्षेत्र में कोई खास वृद्धि नहीं हो पा रही है।
पार्कां व खाली जगहों पर अधिक पेड़ लगाएं, ऑक्सीजन के स्तर में सुधार करें
स्थानीय निकाय विभाग को निर्देश दिए गए थे कि शहरों के पार्कों व खाली पड़ी जगहों पर अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं ताकि ऑक्सीजन के स्तर में सुधार आए। बावजूद इसके अमूमन शहरों के पार्क बेहाल पड़े हैं। मॉडल जिले के तौर पर चुने गए पटियाला शहर के पार्कों की तो दुर्दशा यह है कि कई पार्कों पर कब्जाधारक जमे हुए हैं। शहर के अंदरूनी हिस्से वाले पार्कों में तो पहले से लगे पेड़-पौधों का रख-रखाव तक नहीं किया जा रहा।
खाली जमीन का नहीं हो पाया प्रयोग
ग्रामीण व पंचायत विभाग के स्तर पर कहा गया था कि पंचायतों की खाली जमीन का साझा उपयोग हो। व्यवस्था की जाए कि खाली जमीन पर फसल के बचे अवशेषों को इकट्ठा करके रखा जा सके। बेशक कई पंचायतों ने प्रस्ताव डाले, लेकिन सांझा उपयोग की पहल रंग नहीं ला पाई। करीब 300 पंचायतों ने प्रस्ताव डाला था कि किसान आग नहीं लगाएंगे, लेकिन खेत तैयार करने की जल्दबाजी में वह आग लगाने से परहेज नहीं कर रहे हैं। पंचायत स्तर पर यह भी तय किया गया था कि पंचायत उसे अपनी जमीन नहीं देगी, जो आग लगाते हैं लेकिन इसका सख्ती से पालन नहीं हो पा रहा।