Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Feb, 2018 11:09 AM
कहते हैं प्यार को खुदा से भी ऊपर का दर्जा प्राप्त है। जब प्यार किसी की जिंदगी में आता है तो उसकी जिंदगी के मायने ही बदल जाते हैं अगर किसी को किसी से प्यार हो जाए तो उसे इजहार-ए-इश्क अवश्य करना चाहिए, वहीं 14 फरवरी को मनाए जाने वाले वैलेंटाइन-डे को...
बरनाला (विवेक सिंधवानी, गोयल): कहते हैं प्यार को खुदा से भी ऊपर का दर्जा प्राप्त है। जब प्यार किसी की जिंदगी में आता है तो उसकी जिंदगी के मायने ही बदल जाते हैं अगर किसी को किसी से प्यार हो जाए तो उसे इजहार-ए-इश्क अवश्य करना चाहिए, वहीं 14 फरवरी को मनाए जाने वाले वैलेंटाइन-डे को लेकर युवा बहुत उत्साहित रहते हैं। हर कोई वैलेंटाइन-डे का बेसब्री से इंतजार करता है। युवाओं ने इस त्यौहार को मनाने के लिए फरवरी माह की शुरूआत से ही तैयारियां करनी शुरू कर दी थी। पश्चिमी सभ्यता के प्रतीक वैलेंटाइन-डे को मनाने में व्यस्त युवा अपनी सभ्यता को भूलते जा रहे हैं।
इतिहासकारों की मानें तो 14 फरवरी के दिन ब्रिटिश अर्थात गोरों की सरकार ने देश को विदेशी जंजीरों से मुक्त करवाने का प्रयास कर रहे 3 जांबाज बहादुरों भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई थी। यह कैसी विडंबना है कि बच्चे,बूढ़े और युवा शहीदों की शहादत को याद करने की बजाए वैलेंटाइन-डे मनाने में मस्त हैं। युवा वैलेंटाइन-डे पर हजारों रुपए खर्च कर अपने प्रियतम को तो महंगे गिफ्ट प्रदान कर रहे हैं लेकिन भगत सिंह,राजगुरु तथा सुखदेव सिंह जैसे शहीदों व देशभक्तों की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करने के लिए उनके पास फूटी कौड़ी तक नही है। प्यार की आड़ में शहीदों की शहादत को भूलना भारतीय संस्कृति के विपरीत है।
भारत की संस्कृति का हो रहा है अपमान
आज के दौर में अधिकतर व्यक्ति पश्चिमी संस्कृति के रंग में रंगते जा रहे हैं जो स्वदेशी सभ्यता का अपमान है। प्यार की आड़ में वैलेंटाइन-डे मनाना और शहीदों को भूलना उनकी शहादत का अपमान है। जब देश में वैलेंटाइन-डे नही मनाया जाता था क्या तब भारतीय एक दूसरे से प्यार नही करते थे। क्या पश्चिमी लोग ही प्यार की परिभाषा जानते हैं, हिन्दुस्तानियों का प्यार की परिभाषा नही आती। क्या शहीदों की शहादत को भुलाकर प्यार का इजहार करना न्यायसंगत है।
युवराज बांसल, समाज सेवी