पुरानी सीरीज के नंबर लगाने का मामला: RC जारी करते समय नहीं रखा जाता किसी कानून का ध्यान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Jan, 2018 01:31 PM

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आर.टी.ए. दफ्तर में भ्रष्टाचार को लेकर आरोप लगना कोई नई बात नहीं है। मगर पिछले कुछ समय से जिस प्रकार बड़े-बड़े घोटाले सामने आ रहे हैं, उसको देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि परिवहन विभाग के अंदर कुछ कर्मचारियों को न तो किसी कानून का कोई भय है और न ही...

जालंधर(अमित): आर.टी.ए. दफ्तर में भ्रष्टाचार को लेकर आरोप लगना कोई नई बात नहीं है। मगर पिछले कुछ समय से जिस प्रकार बड़े-बड़े घोटाले सामने आ रहे हैं, उसको देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि परिवहन विभाग के अंदर कुछ कर्मचारियों को न तो किसी कानून का कोई भय है और न ही किसी अधिकारी की कोई परवाह। कुछ समय से पूरे शहर में पुरानी सीरीज के छोटे नंबरों को नई गाडिय़ों पर लगाने को लेकर हो रहे गोरखधंधे में हर रोज नए खुलासे हो रहे हैं। ‘पंजाब केसरी’ की तरफ से पहले ही इस बात का खुलासा किया जा चुका है कि यह कोई छोटा मामला नहीं है बल्कि बहुत बड़ा है और इसमें 1-2 नहीं बल्कि पूरी 64 आर.सी. ऐसी हैं, जो सारे नियम-कानून को ताक पर रखते हुए बनाई गई हैं। ‘पंजाब केसरी’ टीम को एक और ऐसी आर.सी. का पता चला है, जिसमें जाली एफ.आई.आर. व जाली इंश्योरैंस का इस्तेमाल करके पुरानी सीरीज वाली आर.सी. जारी की गई है। इस मामले में जब सैक्रेटरी आर.टी.ए. दरबारा सिंह से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने फोन नहीं उठाया जिससे उनका पक्ष प्राप्त नहीं हो सका। 

क्या है मामला, कैसे की गई गड़बड़ी?
जानकारी के अनुसार पी.यू.एस. 0007 नंबर की एक आर.सी. किसी लवदीप पराशर पुत्र बलराम पराशर, 59 राज हाऊस, सलोह रोड, मॉडल टाऊन, एस.बी.एस. नगर के नाम पर दर्ज प्रीमियर पदमिनी कार पर लगे हुए नंबर को द्वारका इंटरनैशनल स्कूल, प्लाट नं. 22, इंडस्ट्री एरिया केयर ऑफ रैडीसन इंडस्ट्री सोसाइटी, जालंधर के नाम पर 07 नवम्बर 2017 को ट्रांसफर किया गया था। इस पूरे मामले में जो बात गौर करने लायक है वह यह कि वैसे तो सारे अधिकारी यही कहते हैं, कि पुराने नंबरों को रिटेन करने पर विभाग की तरफ से रोक लगाई गई है और बिना एस.टी.सी. की परमिशन के कोई भी पुराना नंबर रिटेन नहीं किया जा सकता। इसके अलावा जिस नई गाड़ी को पुराना नंबर लगाया जाना है, उसका और पहले वाली गाड़ी का मालिक एक ही व्यक्ति का होना अनिवार्य है। किस कानून के तहत आर.सी. किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर ट्रांसफर की गई, यह अपने आप में एक बेहद महत्वपूर्ण सवाल है। इसके साथ ही लुधियाना के पते को जालंधर का आधा-अधूरा पता लिखकर आर.सी. जारी करना भी कई सवाल खड़े करता है। 

चुनमुन माल के पास स्थित एजैंट के नाम की हो रही चर्चा
पूरे दफ्तर में इस बात की चर्चा जारी है कि आर.सी. का काम देखने वाले एक निजी करिंदे जिसके पास पुरानी छोटी सीरीज के रजिस्टर हुआ करते थे, उसने अपने एक पहचान वाले एजैंट के साथ मिलकर ही इस आर.सी. के पूरे घोटाले को अंजाम दिया है। सूत्रों का कहना है कि शहर के मशहूर चुनमुन माल के पास स्थित एजैंट के दफ्तर में ही इस मास्टर प्लान को अमलीजामा पहनाया गया था। उक्त एजैंट ने बड़ी गिनती में पुरानी सीरीज के नंबरों वाली आर.सी. दफ्तर से अपनी सैटिंग के दम पर जारी करवाई है और अगर इस मामले की गहन जांच की जाती है, तो कई बड़े लोगों के चेहरे से नकाब उठ सकता है। 

निजी कम्पनी के कर्मचारियों के साथ सांठ-गांठ करके रिकार्ड में होती है हेराफेरी
आर.टी.ए. दफ्तर के निजी कारिंदे और क्लर्क खुद को बचाने के लिए निजी कम्पनी के कर्मचारियों की भी मदद लेते हैं। सूत्रों की मानें तो एजैंटों की सहायता से निजी कम्पनी के कर्मचारियों के साथ सांठ-गांठ करके रिकार्ड में हेराफेरी कर दी जाती है ताकि भविष्य में अगर कोई मामला उठता है तो वह किसी की समझ में ही न आ सके। सूत्रों की मानें तो आज तक जितनी भी आर.सी. पुरानी सीरीज वाले नंबरों से जारी की गई है, उसमें से अधिकतर का रिकार्ड दफ्तर में मौजूद ही नहीं है क्योंकि इस पूरे गोरखधंधे को बाहर से ही चलाया जा रहा था। 

निजी कारिंदे और एजैंट ने गलत काम करके कमाए लाखों-करोड़ों
पुरानी सीरीज के छोटे नंबर जैसे कि पी.आई.क्यू., पी.सी.यू., पी.ए.एक्स. आदि ऐसी सीरीज हैं जिनके छोटे नंबरों की आजकल काफी डिमांड है। अमीर घरों के नौजवान अपनी महंगी लग्जरी गाडिय़ों पर ऐसे नंबर लगवाना अपनी शान समझते हैं और इसके लिए 2-3 लाख रुपए बड़े आराम से खर्च करने के लिए तैयार हो जाते हैं। इसी बात का फायदा उठाकर उक्त निजी करिंदे और विवादस्पद एजैंट ने पुरानी सीरीज के नंबरों की आर.सीज गलत ढंग से जारी करके लाखों-करोड़ों रुपए कमाए हैं। 

0001 से 0100 के पुराने नंबरों की गहनता से जांच होनी लाजिमी
आर.टी.ए. दफ्तर में पुराने नंबरों की एक दर्जन से अधिक सीरीज हैं, जैसे कि पी.जे.एक्स., पी.यू.जे., पी.आई.एक्स., पी.यू.क्यू., पी.एन.क्यू., पी.सी.क्यू., पी.जे.यू., पी.यू.जे., पी.जे.जे., पी.बी.जे., पी.यू.एस., पी.यू.एक्स. आदि शामिल हैं। इन सभी सीरीज में 0001 से लेकर 0100 नंबर तक ऐसे नंबर हैं, जिन्हें अपनी गाडिय़ों पर लगाने के लिए लोगों के बीच अच्छी-खासी क्रेज है। इन सभी नंबरों की विजीलैंस और परिवहन विभाग के उच्चाधिकारियों को गहन जांच करनी चाहिए, ताकि एजैंटों के साथ मिलकर निजी कारिंदों और कर्मचारियों व लालची किस्म के अधिकारियों द्वारा किए गए गलत कामों की बनती सजा दिलाई जा सके।

अधिकारियों के हस्ताक्षर और नंबर जारी होना भी चर्चा का बना विषय
पुराने नंबरों की आर.सीज वाली फाइलों पर अधिकारियों के हस्ताक्षर होना और बाद में विभाग की तरफ से नंबर भी जारी हो जाना अपने आप में एक चर्चा का विषय बना हुआ है। जहां आम जनता को नंबर रिटेन करने से साफ तौर पर मना किया जाता रहा है, वहीं दूसरी तरफ एजैंटों का सैटिंग के दम पर हर काम बड़ी आसानी से हो जाता है। अगर अधिकारी ने खुद हस्ताक्षर नहीं किए हैं, तो क्या किसी क्लर्क ने जाली हस्ताक्षर करके सारे काम को अंजाम दिया है। इस पहलू को लेकर भी गहन जांच होनी अनिवार्य है। 

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