फिर गर्माया राम रहीम माफी मामला,जत्थेदार से पूछे 7 सवाल

Edited By Updated: 02 Aug, 2016 08:24 PM

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डेरा प्रमुख को माफी देने के बाद शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के जनरल सचिव सुखदेव सिंह भौंरा द्वारा जत्थेदारों की भूमिका पर सवाल उठाए जाने के बाद मामला गर्मा गया है।

चंडीगढ़: डेरा प्रमुख को माफी देने के बाद शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के जनरल सचिव सुखदेव सिंह भौंरा द्वारा जत्थेदारों की भूमिका पर सवाल उठाए जाने के बाद मामला गर्मा गया है। वहीं भौंरा पर बरसते हुए ज्ञानी गुरबचन सिंह ने कहा कि तख्तों की महानता उन्होंने नहीं बल्कि ऐसे अारोप लगाने वालों ने घटाई है। गुरबचन सिंह ने कहा कि डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को उन्हो ने कभी भी माफी नहीं दी। उन्होंने केवल उसकी तरफ से भेजी गई चिट्ठी स्वीकृत की थी परन्तु कुछ शरारती अनसरों ने इसे गलत रंगत दे दी जिस कारण बड़ा विवाद खडा हो गया। उधर भौंरा ने पलटवार करते इस मामले पर बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने जत्थेदार से कुछ सवाल पूछे हैं। 

ये पूछे सवाल

1. शिरोमणि कमेटी द्वारा 91 लाख रुपए के इश्तिहार किस खुशी में दिए गए जिसमें डेरा प्रमुख  बारे लगाए गए जिसमें आपके फैसले को सही ठहराया गया?

2.  संत समाज समेत पंथ के समूचे संगठनों द्वारा विरोध क्यों किया गया?

3. क्या कारण थे कि भाई पिन्दरपाल सिंह,भाई अमरीक सिंह मुहाली जैसे विद्वान प्रचारकों के "दीवान हाल खटिया साहब में कथा करने पर पाबंदी लगाई गई?

4. दरबार साहिब के हजूरी रागी भाई हरचरन सिंह, भाई कारज सिंह के कीर्तन करने पर पाबंदी लगाई गई?

5. आपकी तरफ से लिए फैसले के बाद सारा पंथ सड़कों पर उत्तर आया। डेरा प्रमुख ने कलगीधर बादशाह भेष बना रहमत का मजाक उड़ाया था, इसलिए उस खिलाफ फैसला समूचे पंथ की राय सुनने के बाद लिया गया था। फैसला सुनाने से पहले पंथक नेताओं को अपनी राय देने का मौका दिया गया था परन्तु स्पष्टीकरण स्वीकारने समय बताया नहीं गया जिसे पंथ ने स्वीकृत न किया और पंथक के गुस्से आगे झुकते हुए अापको  फैसला वापस लेना पड़ा।

6. अगर आपकी तरफ से डेरा प्रमुख को माफी नहीं दी गई तो इतना तमाशा किस बात के लिए रचा गया।   

7. न चाहते हुए भी पंथ सहानुभूति रखने वालों को श्री अकाल तख्त साहिब से आए फैसले खिलाफ बोलने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि इस फैसले  से श्री अकाल तख्त साहिब की महान परंपराओं को एक पंथ विरोधी आगे बेबस और लाचार होने की साजिश हर सिख महसूस कर रहा था जो खालसा पंथ कभी भी स्वीकृत नहीं कर सकता।  

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