Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Aug, 2017 11:37 AM
धरातल पर अनेक प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं, जिनमें से अधिकतर बहुमूल्य लाभकारी, जीवनोपयोगी होती हैं मगर कुछ झाड़ीनुमा विषैली बूटियां भी हैं जो मानव जीवन के साथ-साथ पशुओं के लिए घातक सिद्ध हो रही हैं। ऐसी ही श्रेणी में पांचपुष्पी झाड़ी व गाजर घास...
मुकेरियां(स.ह.): धरातल पर अनेक प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं, जिनमें से अधिकतर बहुमूल्य लाभकारी, जीवनोपयोगी होती हैं मगर कुछ झाड़ीनुमा विषैली बूटियां भी हैं जो मानव जीवन के साथ-साथ पशुओं के लिए घातक सिद्ध हो रही हैं। ऐसी ही श्रेणी में पांचपुष्पी झाड़ी व गाजर घास का नाम उल्लेखीय है, जिनके कारण फसलों की पैदावार निरंतर कम हो रही है।
क्या है इतिहास इन बूटियों का
पांच पुष्पी बूटी का भारत के धरातल पर पहले कोई नामोनिशान नहीं पाया जाता था। इस संदर्भ में अनेक कृषि व भू वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पांच रंगों वाली बूटी पहले एक पुष्पनुमा सुन्दर पौधे के रूप में ब्रिटिश शासन काल के दौरान कुछ धार्मिक स्थलों के बाहर पाई जाती थी। उस समय इन पौधों का रख-रखाव अच्छे ढंग से किया जाता था मगर धीरे-धीरे इस प्रजाति के पौधे प्रकृति पर निर्भर हो गए और इनकी बनावट, रूपरेखा बिगड़ते-बिगड़ते वर्तमान में झाड़ीनुमा हो गई है।
फूलों की सुन्दरता भी नहीं रही और यह विष युक्त होकर रह गई है। इसी प्रकार गाजर घास का इतिहास भी विदेश से जुड़ा है। लगभग 60 के दशक में अनाज संकट के कारण पी.एल. 480 के अन्तर्गत केन्द्र सरकार को अमरीका के साथ गेहूं के आयात के लिए एक समझौता करना पड़ा। मगर जो गेहूं अमरीका से आई उसमें कुछ बीज के ऐसे अंश थे, जिन्होंने आज देश की समस्त धरातल पर गाजर घास के रूप में साम्राज्य बना रखा है।
धार्मिक व प्राचीन स्थल भी हो रहे हैं क्षतिग्रस्त
पंजाब केसरी की टीम ने शिवालिक पर्वत माला के आंचल में स्थित गांव रामगढ़ सीकरी, अमरोह, नंगल खनौड़ा, कटरोली, धर्मपुर, सुखचैनपुर, अलेरा, भटोली, चमूही, तुंग, नेकनामा, अगलोट, मक्कोवाल, संसारपुर, आदोचक्क, मनहोता, कोई, खंगवाड़ी, रामट्टवाली, बरूही, रघवाल, फफियाली, जनौड़ी, बढ़ला तथा अन्य गांवों का भ्रमण करने पर देखा कि प्राचीन मंदिर परिसर, कुएं, ऐतिहासिक भवन वाटर सप्लाई आदि भी इसकी चपेट से बचे नहीं हैं।
बहुमूल्य जड़ी-बूटियों का अस्तित्व खतरे में
पांच पुष्पी तथा गाजर घास ने पूरे कंडी क्षेत्र के मैदानी व वन क्षेत्रों में अपना साम्राज्य इस तरह स्थापित किया हुआ है कि इनके कारण अन्य बहुमूल्य जीवन उपयोगी जड़ी-बूटियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। धौलाधार की पहाडिय़ों एवं शिवालिक पर्वतीय व मैदानी क्षेत्रों में प्राचीन जड़ी-बूटियां एवं लघु वनस्पति कांगू, गरना, गेंदू, कैम्बल, किन्नू, सरीं, फलाह, रजैन आदि के तनों को इन घातक बूटियों ने अपनी चपेट में ले लिया है।
कृषि विश्वविद्यालय भी नहीं खोज सका इसका समाधान
भू वैज्ञानिक जीत सिंह ने एक भेंटवार्ता में बताया कि कंडी क्षेत्र की अनेक पंचायतों ने उक्त घातक बूटियों के नाश हेतु प्रस्ताव पारित करके पंजाब सरकार एवं कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना को भेजे। खोज करने पर इसका उचित समाधान सामने नहीं आया। जीत सिंह ने बताया कि इन बूटियों को अगर आग भी लगा दी जाए तो हवा में इसके बीज उडऩे से ये पुन: अपना अस्तित्व बना लेती हैं।