बच्चों के भविष्य के साथ हो रहा खिलवाड़, शिक्षण संस्थानों के नाम पर खुली दुकानों ने बढ़ाई चिंता

Edited By Kamini,Updated: 21 Oct, 2024 12:54 PM

the future of children is being ruined

कोर्स व कॉलेजों के नाम पर खुली दुकानों को लेकर बुद्धिजीवियों में काफी चिंता है।

मलोट : मलोट व इसके आसपास सहित मालवा क्षेत्र में कोर्स व कॉलेजों के नाम पर खुली दुकानों को लेकर बुद्धिजीवियों में काफी चिंता है। जानकारी के मुताबिक ग्रेजुएशन समेत विभिन्न कोर्सेज में नॉन अटेंडिंग एडमिशन और नकल की गारंटी की चर्चाओं ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है। कुछ साल पहले जिन संस्थानों में सैकड़ों छात्र हुआ करते थे, अब उनमें हजारों की संख्या में नामांकन हैं, जबकि शिक्षा, भवन, बुनियादी ढांचे और अन्य सुविधाओं का अभाव है। ये व्यवसायिक संस्थाएं शिक्षा को जहर की तरह खा रही हैं, इसलिए मामला जांच का विषय है। इस संबंध में शिक्षा से जुड़े कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि मलोट, अबोहर और गिद्दड़बाहा समेत क्षेत्र के आधी सदी से भी अधिक पुराने और लोगों की शिक्षा की सुविधा के लिए बनाए गए कॉलेजों में छात्रों की संख्या 600-700 तक भी नहीं है, जबकि कुछ साल पहले जिन संस्थानों में छात्रों की संख्या 500 थी, अब 5 से 6 हजार छात्र हैं।

वर्षों से चल रहे बठिंडा जिले के एक बड़े शिक्षण संस्थान में भी विद्यार्थियों की संख्या अब भी डेढ़ हजार से कम है, लेकिन 2-3 साल में यहां बने कॉलेजों ने छात्रों के दाखिले के मामले में जादुई आंकड़ा पार कर लिया है। जानकारी के अनुसार इन छात्रों की संख्या के अनुरूप बनाए गए सेक्शन और ग्रेजुएट, स्नातकोत्तर व विज्ञान समेत अन्य विषयों के अनुरूप आवश्यक शिक्षक व अन्य स्टाफ अपर्याप्त है. इसके अलावा इतनी बड़ी संख्या में छात्रों के बैठने के लिए कमरों की भी व्यवस्था नहीं है। जानकारी के मुताबिक, इस इलाके में बने कुछ तो 2-3 साल से खुले भी नहीं हैं, लेकिन दाखिले एक हजार, डेढ़ हजार से ऊपर बताए जा रहे हैं।

जानकारी के मुताबिक इन संस्थानों द्वारा पंजाब के विभिन्न जिलों में खुली अकादमियों के माध्यम से छात्रों को दाखिला दिया जाता है। जिन्हें न केवल उपस्थिति से पूरी तरह छूट है, बल्कि नकल की भी गारंटी है। ऐसे ही एक फार्मेसी कॉलेज में पिछले दो साल से पंजाब सरकार द्वारा परीक्षा के दौरान की गई सख्ती के बाद फार्मेसी छात्रों का रिजल्ट खराब होने को लेकर काफी चर्चा हो रही है। गौरतलब है कि पिछले दिनों जहां अबोहर से संबंधित एक कॉलेज पर एक बिल्डिंग में 2 कॉलेज चलाने पर कोर्ट ने लाखों रुपये का जुर्माना लगाया था, वहीं एक संस्था को 2 साल पहले परीक्षा के दौरान कैमरे लगाने के निर्देश यूनिवर्सिटी की ओर से दिए गए थे, लेकिन विशेषज्ञों ने कहा, टेंट वाले परीक्षा हॉल में कैमरे कैसे लगाए जा सकते हैं? यदि विश्वविद्यालय द्वारा दिए गए निर्देशों का संबंधित संस्थानों द्वारा पालन किया गया होता, तो अंधाधुंध फर्जी प्रवेश पर रोक लग सकती थी और शिक्षा पर रोक लग सकती थी।

यह मामला सिर्फ शिक्षा के व्यावसायीकरण का नहीं है बल्कि संबंधित विश्वविद्यालयों में व्यापक भ्रष्टाचार का भी हो सकता है, जिसके कारण इन संस्थानों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। इसीलिए शिक्षा के प्रति गंभीर लोग इस मामले को विश्वविद्यालय और माननीय न्यायालय में ले जाने पर विचार कर रहे हैं ताकि अगले महीने होने वाली परीक्षाओं के दौरान ऐसे संस्थानों में विश्वविद्यालय के नियमों को लागू किया जा सके। जागरूक पक्षों का यह भी कहना है कि अगर अदालत या विश्वविद्यालय इस मामले पर गंभीर कदम उठाता है और इन कॉलेजों के परीक्षा केंद्र बदल देता है, तो उनका हश्र भी फर्जीवाड़े के सहारे चलने वाले फार्मेसी कॉलेजों जैसा हो सकता है।

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