नशे के खिलाफ मुहिम को झटका,7 माह बाद भी यूनाइटेड नेशन्ज से नहीं हो पाया करार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Jan, 2018 09:28 AM

the campaign against the intoxication shocks

जिस यूनाइटेड नेशन्ज ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (यू.एन.ओ.डी.सी.) के साथ पंजाब सरकार ने मैमोरैंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एम.ओ.यू.) साइन करने की घोषणा कर सुर्खियां बटोरीं, वह एम.ओ.यू. खटाई में पड़ा गया है।

चंडीगढ़ (अश्वनी): जिस यूनाइटेड नेशन्ज ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (यू.एन.ओ.डी.सी.) के साथ पंजाब सरकार ने मैमोरैंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एम.ओ.यू.) साइन करने की घोषणा कर सुर्खियां बटोरीं, वह एम.ओ.यू. खटाई में पड़ा गया है। 7 माह बाद भी अब तक एम.ओ.यू. साइन नहीं हो पाया है। पंजाब स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मानें तो यू.एन.ओ.डी.सी. की तरफ से अपनी रणनीति में बदलाव करने के कारण एम.ओ.यू. साइन नहीं हो पाया है। 

 

यू.एन.ओ.डी.सी. अब केवल किसी राज्य तक सीमित रहकर रणनीति नहीं बनाना चाहता है बल्कि उसकी कोशिश पूरे देश में ही नशे के खिलाफ मुहिम चलाने की है। यही वजह है कि पंजाब सरकार के साथ प्रस्तावित एम.ओ.यू. फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया है। विदित रहे कि पिछले वर्ष मई में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने यू.एन.ओ.डी.सी. के प्रतिनिधि सर्गेई कैपीनस से बैठक कर जल्द ही एम.ओ.यू. साइन करने की घोषणा की थी।


स्टार स्ट्रैटजी से नशे के सफाए पर बनी थी सहमति
मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में सहमति बनी थी कि यू.एन.ओ.डी.सी. स्टार स्ट्रैटजी के जरिए पंजाब में नशे पर अंकुश लगाएगा। इस स्ट्रैटजी के तहत प्रदेश में नशे की लत के शिकार मरीजों के स्वास्थ्य सुधार पर बल दिया जाएगा। साथ ही उनका इलाज कर उनके पुनर्वास में सहायता दी जाएगी। इसी कड़ी में अफीम के आदी मरीजों को वैकल्पिक उपचार विधि मुहैया करवाई जाएगी ताकि प्रदेश में अवैध तरीके से अफीम के कारोबार पर रोक लग सके। वहीं नशे के कारण एच.आई.वी., हैपेटाइटिस जैसी बीमारियों की रोकथाम के लिए एक्शन प्लान तैयार किया जाएगा। इसी तरह प्रदेशभर में ऐसे सिविल सोसायटी ग्रुप तैयार किए जाएंगे जो यू.एन.ओ.डी.सी. के ट्रेङ्क्षनग प्रोग्राम में भाग लेकर प्रदेशभर में नशे के खिलाफ अभियान चलाएं। यह भी निर्णय लिया गया कि नशे को केवल लॉ एंड ऑर्डर की समस्या तक सीमित न रखकर स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या के तौर पर प्रचारित किया जाएगा। इसी कड़ी में नशे की समस्या को खत्म करने के लिए परिवारों के स्तर पर काऊंसलिंग प्रोग्राम शुरू किए जाएंगे जिनमें महिलाओं की भागीदारी को खासी तवज्जो दी जाएगी ताकि महिलाएं अपने परिवार की स्वास्थ्य सुरक्षा में अहम भूमिका निभाएं।


सुधार गृह का मॉडल बनना था
बैठक के दौरान पुलिस के स्तर पर भी ठोस कदम उठाने पर सहमति बनाई गई थी। यू.एन.ओ.डी.सी. के प्रतिनिधि ने कहा था कि पुलिस को जन स्वास्थ्य और मानवीय अधिकारों संबंधी पहुंच के लिए शिक्षित किया जाएगा तथा नशे संबंधी कानून और जन स्वास्थ्य कानून के सिद्धातों में समानता लाने की कोशिश होगी। इसी कड़ी में पुलिस अधिकारियों के लिए स्पैशल ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित किए जाएंगे ताकि वे साइकोएक्टिव सब्स्टांस व हैबिट फॉमिंग ड्रग्स सहित साइकोट्रॉपिक सब्स्टांस के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकें ताकि इस पर अंकुश लगाया जा सके व मरीजों को जेल में डालने की बजाय उनके लिए सुधार गृह का मॉडल विकसित कर सकें। इसी तरह इंटरनैट के जरिए ड्रग्स के कारोबार ‘डार्कनेट्स’ को भी समझ सकें।

 

हैबिट फॉर्मिंग ड्रग्स बड़ी चुनौती
पंजाब में हैबिट फॉर्मिंग ड्रग इस समय बड़ी चुनौती बनी हुई है। मार्च, 2017 से नवम्बर, 2017 के आंकड़ों की बात करें तो 181 दवा विक्रेताओं को ड्रग्स एंड कॉस्मैटिक एक्ट के उल्लंघन का दोषी पाया गया जिनसे 55 लाख रुपए की हैबिट फॉर्मिंग ड्रग्स पकड़ी गई हैं। हैबिट फॉर्मिंग ड्रग्स के अलावा एम्फैटामाइन टाइप स्ट्यूमिलैंट्स यानी पार्टी ड्रग्स भी बड़ी चुनौती है जिसके ट्रीटमैंट को लेकर भी प्रदेश में प्रोफैशनल्स की काफी किल्लत है। यू.एन.ओ.डी.सी. के साथ करार होने से उम्मीद थी कि ट्रीटमैंट प्रोफैशनल्स के स्पैशल ट्रेङ्क्षनग प्रोग्राम से प्रदेश में इस तरह के नशे से ग्रसित मरीजों को इलाज में काफी मदद मिलेगी। खुद यू.एन.ओ.डी.सी. ने अपने स्तर पर अध्ययन में भी पाया था कि डी-एडिक्शन व रिहैबिलिटेशन सैंटर का सफलता रेश्यो महज 22 प्रतिशत है। आमतौर पर इलाज करने वाले अपने साथियों के दबाव या नशे की आदत के कारण दोबारा से नशे की गर्त में गिर जाते हैं इसलिए कोशिश होनी थी कि डी-एडिक्शन सैंटर व रिहैबिलिटेशन सैंटर को इस तरह से तैयार किया जाएगा कि नशे का इलाज करने वाले दोबारा नशे की तरफ आकर्षित न हों लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। पंजाब सरकार के अफीम ट्रीटमैंट संबंधी आंकड़े भी इस बात की गवाही भरते हैं कि काफी तादाद में मरीज इलाज की सुविधा दोबारा लेने नहीं आए। मोगा, तरनतारन व अमृतसर में चल रहे सैंटरों में करीब 306 मरीज ऐसे थे जो दोबारा ट्रीटमैंट के लिए नहीं आए। 

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