Facebook ने बना दिया इस मैकेनिक को आतंकी; दुबई में दी थी ट्रेनिंग

Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Dec, 2017 09:30 AM

terrorist

गांव चुहड़वाल का एक मैकेनिक रमनदीप सिंह उर्फ रमना कैनेडियन उर्फ बुग्गा (27) आज कुख्यात आतंकी बना चुका है और नैशनल इन्वैस्टीगेशन एजैंसी की गिरफ्त में है। जिस पर पंजाब में पिछले 2 वर्षों में हुई टारगेट किलिंग में संलिप्तता के आरोप हैं और वह इस सबके...

लुधियाना(महेश): गांव चुहड़वाल का एक मैकेनिक रमनदीप सिंह उर्फ रमना कैनेडियन उर्फ बुग्गा (27) आज कुख्यात आतंकी बना चुका है और नैशनल इन्वैस्टीगेशन एजैंसी की गिरफ्त में है। जिस पर पंजाब में पिछले 2 वर्षों में हुई टारगेट किलिंग में संलिप्तता के आरोप हैं और वह इस सबके लिए दुबई से ट्रेनिंग भी ले चुका है। जहां उसने हथियार चलाना और रेकी करना सीखा। इस मामूली मैकेनिक के आतंकी बनने की कहानी बड़ी रोचक है। 
 

रणजीत सिंह ढडरियां के सम्मेलनों में जाता था  रमनदीप
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार रमनदीप का जन्म 20 अक्तूबर 1989 को राजपूत परिवार में हुआ। रमनदीप ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल में हासिल की। 5वीं के बाद उसने 10वीं तक की शिक्षा गांव मांगट के सरकारी स्कूल में प्राप्त की। 2005 से 2007 तक राड़ा साहिब गुरुद्वारे में उसने गुरबाणी का पाठ सीखा। इसके बाद उसने भाईवाला चौक के निकट से ए.टी.डी.सी. सिलाई मशीनों का काम सीखा। इसके बाद उसने शहर की नामी फर्मों में बतौर मैकेनिक की भी जॉब की। जहां से वह दिहाड़ी का 1000 रुपए से अधिक कमा लेता था। अक्तूबर 2014 में उसे फेसबुक पर तरनतारन जोधपुर में गुरु ग्रंथ साहिब के पावन स्वरूपों को अग्नि भेंट किए जाने और सिखों में हुई झड़प के बारे में पता चला। तब उसका खून खौल उठा। तब वह रणजीत सिंह ढडरियां के सम्मेलनों में जाता था। नवम्बर 2014 में लुधियाना के दाना मंडी स्थित ढडारियां वाला के हुए सम्मेलन में वह अपने चाचा के बेटे गोपी के साथ गया। जहां उनके प्रवचन से वह बहुत प्रभावित हुआ। 

फेसबुक से आया विदेशी ताकतों की नजर में
उसने अपनी फेसबुक आई.डी. पर भिंडरांवाले के पोस्टर अपलोड करने शुरू कर दिए और एक विशेष धार्मिक समुदाय के खिलाफ कमैंट करने शुरू कर दिए। यहीं से उसकी जिंदगी में बदलाव आया और विदेशी ताकतों की नजर उस पर पड़ गई। फेसबुक पर जगतार सिंह तूफानी नामक आई.डी. से उसे गर्मख्याली के मैसेज आने शुरू हो गए। मैसेंजर में इनकी आपसी वार्ता भी हुई और उसे सिख कौम के लिए कुछ कर गुजरने के लिए उसका माइंड वाश किया गया। 

तत्काल में बनाया पासपोर्ट  
फेसबुक पर हुई वार्तालाप में रमनदीप को जनवरी 2015 को तत्काल प्रभाव से पासपोर्ट बनवाने का आदेश दिया गया। जिसके लिए उसे बाकायदा 10,000 रुपए भी मुहैया करवाए गए। इस राशि के लिए उसे पहले पटियाला और फिर जालंधर लक्की ढाबा के निकट एक गुरुद्वारे के पास बुलाया गया। जहां उसे एक व्यक्ति पैकेट पकड़ा कर गया, जिसमें 10,000 रुपए थे। उसने एक प्राइवेट एजैंट को 7500 रुपए देकर तत्काल में पासपोर्ट बनवाया और चंडीगढ़ फोटो ङ्क्षखचवाने गया। कुछ दिन बाद जब पासपोर्ट बनकर आया तो उसने यह जानकारी फेसबुक पर जगतार सिंह तूफान को दी।

दुबई का लगवाया विजिटर वीजा 
रमनदीप को उसके आका जिसे वह ‘बाई’ कहता था, ने विदेश भेजने वाले एजैंट से दुबई या फिलीपींस का विजिटर वीजा लगवाने को कहा। इसके लिए बाकायदा उसे 60,000 रुपए की राशि उपलब्ध करवाई गई, जो उसे जगराओं के रायकोट स्थित एक गुरुद्वारा के पास एक क्लीनशेव अनजान व्यक्ति देकर गया। दुबई का वीजा लगने के बाद वह फरवरी 2015 में दुबई चला गया। 

पूरी तरह किया माइंड वाश 
अधिकारी ने बताया कि दुबई पहुंचने पर उसके रहने की पहले से ही एक होटल में व्यवस्था की गई थी। पीले रंग का पटका पहन कर वह दिन भर इधर-उधर घूमता रहा, लेकिन उसे कोई नहीं मिला। फिर मध्य रात्रि को उसे होटल के फोन पर एक व्यक्ति ने संपर्क किया और उसके पास आया। जिसने 1984 में हुए दिल्ली के दंगों और हरिमंदिर साहिब पर हुए अटैक की याद को ताजा करके उसका माइंड पूरी तरह से वाश कर दिया। वहां उसे पहले रेकी करने की ट्रेङ्क्षनग दी गई। जिसके लिए उसे टाइगर, बेबी, फैंटम व अंग्रेजी जासूसी पर आधारित फिल्में दिखाई गईं। रेकी करते वक्त उसे सिखाया कि बाइक की नंबर प्लेट ऐसी होनी चाहिए जिससे नंबर न पड़ा जाए। उसे ब्रांडिड कपड़े पहन कर रेकी करने से भी सख्त तौर पर मना किया गया। 

 

वारदात में चोरी का बाइक इस्तेमाल करने की दी गई ट्रेनिंग
ट्रेनिंग के दौरान उसे सिखाया गया कि वारदात को अंजाम देते वक्त चोरी का बाइक ही प्रयोग किया जाए और वारदात से पहले और वारदात के बाद अपनी पहचान छिपाने के लिए वेश बदलने की ट्रेनिंग दी गई। जब वह इन सभी बातों में निपुण हो गया तो उसे ट्रेङ्क्षनग सैंटर से 38 बोर का हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी। 10 दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा। तब उसे ट्रेनर ने 1200 यू.एस. डालर और 1400 दराम (दुबई की करंसी) भी दिए थे और जब वह भारत वापस लौटा तो उसे स्पोर्ट्स शूज का एक जोड़ा भी गिफ्ट के रूप में दिया गया। 

 

आर.एस..एस. शाखा की रेकी करने को कहा 
दुबई से लौटने के बाद रमनदीप की 2-3 महीने तक किसी से बात नहीं हुई। इस बीच जगतार सिंह तूफानी नामक भी आई.डी. बंद हो चुकी थी। फिर उसे शर्मा जी नामक फेसबुक आई.डी. से मैसेज आने शुरू हो गए। जिसके साथ उसकी स्काइप एप पर बात होने लगी। उससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) की शाखा की रेकी करने को कहा गया। लोकल होने के कारण उसने न्यू किदवई नगर स्थित शहीदी पार्क में लगने वाली शाखा की रेकी की व आने और भागने का रास्ता तय किया। 

 

गैंगस्टर गुगनी के मैनेजर से 60,000 में खरीदी 9 एम.एम. की पिस्टल व 10 कारतूस 
अधिकारी ने बताया कि रेकी करने के बाद वारदात को अंजाम देने के लिए रमनदीप को हथियार की जरूरत थी। जिसके लिए उसे पैसा भी चाहिए और हथियार मुहैया करवाने वाला भी। जिस पर उसने फिर अपने आका से संपर्क साधा। जिसने पैसा हासिल करने के लिए उसे पटियाला के एक गुरुद्वारा के पास बुलाया। जहां उसे एक नकाबपोश व्यक्ति पैसों से भरा एक पैकेट पकड़ा कर गया। उस पैकेट में 1.50 लाख रुपए थे। हथियार हासिल करने के लिए उसने फेसबुक पर कुख्यात गैंगस्टर गुगनी ग्रेवाल से संपर्क किया। जिसने उसे लुधियाना पेशी के दौरान मिलने को कहा। रमनदीप जब गुगनी से मिला और उससे हथियार की डिमांड तो गुगनी ने उसे अपने पैट्रोल पंप के मैनेजर अनिल कुमार काला से मिलने को कहा। अनिल ने रमनजीत से 60,000 रुपए लेने के बाद उसे 9 एम.एम. की एक पिस्टल व 10 कारतूस थमा दिए। जिसे लेकर वह वापस घर आ गया और उसे बैड के नीचे छिपा कर रख दिया। हथियार और गोली सिक्के की यह डील नवम्बर 2015 में हुई।

 

नरेश पर निशाना चूक जाने से खुश था ‘बाई’ 
अधिकारी ने बताया कि 18 जनवरी की सुबह करीब 6.30 बजे रमनदीप और शेरा बिना नंबर की बाइक पर सवार होकर न्यू किदवई नगर के शहीदी पार्क में पहुंचे जहां रमनदीप ने जनकपुरी शाखा के मुख्य शिक्षक नरेश कुमार पर गोली चलाई, परंतु निशाना चूक जाने के कारण नरेश बच गया। जब उसने दूसरी गोली चलाने की कोशिश की तो पिस्टल नहीं चली और गोली फंस गई। जिसके चलते मजबूर होकर दोनों को वहां से भागना पड़ा। वहां से फरार होने के बाद दोनों चीमा चौक पहुंचे। जहां रमनदीप बाइक से उतर गया और ढोलेवाल से बस पकड़ कर खन्ना पहुंच गया, जबकि उसका साथी शेरा राओ चीमा चला गया। बाद में रमनजीत अलग-अलग लोगों से लिफ्ट लेता हुआ अपने गांव पहुंच गया। इस हमले के दौरान दोनों ने किसी को भी अपनी पहचान नहीं होने दी। हालांकि इस मामले में रमनजीत और शेरा बुरी तरह से असफल हुए थे, परंतु बावजूद इसके उसका ‘बाई’ खुश था और वह उसकी हौसला अफजाई करता रहा। वारदात को अंजाम देने से पहले दोनों एक गुरुद्वारे के पास सुबह करीब 5.&0 बजे मिले थे। 


 

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