Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Oct, 2017 10:38 AM
दि देखा जाए तो जितने भी महत्वपूर्ण पुलिस केस होते हैं या बड़ी वारदातें होती हैं, पुलिस अधिकारी उनकी जांच के लिए योग्य तथा वैज्ञानिक ढंग की सोच रखने वाले पुलिस अधिकारियों की टीम की एस.आई.टी. (स्पैशल इन्वैस्टीगेशन टीम) का गठन कर केस का जल्द निपटारा...
गुरदासपुर (विनोद): यदि देखा जाए तो जितने भी महत्वपूर्ण पुलिस केस होते हैं या बड़ी वारदातें होती हैं, पुलिस अधिकारी उनकी जांच के लिए योग्य तथा वैज्ञानिक ढंग की सोच रखने वाले पुलिस अधिकारियों की टीम की एस.आई.टी. (स्पैशल इन्वैस्टीगेशन टीम) का गठन कर केस का जल्द निपटारा करवाने की कोशिश करते रहे हैं।
यह ठीक है कि जांच टीम द्वारा जल्दी जांच करके अपनी रिपोर्ट देकर केस को अदालत में भेज दिया जाता रहा, परंतु अब स्थिति यह है कि जिस केस में केवल लोगों को कागजों में संतुष्ट करना हो तथा पुलिस के विरुद्ध जन आक्रोश को शांत करवाना हो, उसमें एस.आई.टी. गठित कर दी जाती है जिसकी जांच कभी समाप्त नहींं होती। अब तो विपक्षी नेता भी मंचों से यह कहना शुरू हो गए हैं कि पुलिस की जांच कमेटी गठित करने का मतलब है कि केस समाप्त।
2 लोगों के सिर काटने की जांच तो हुई पर गिरफ्तारी नहींं
जिला पुलिस अनुसार गुरदासपुर को आतंकवाद का जन्मदाता माना जाता है क्योंकि अधिकतर खतरनाक आतंकवादी इसी जिले से संबंधित थे। तब कोई भी आतंकवादी घटना होने पर पुलिस अधिकारी एस.आई.टी. का गठन कर जनता के आक्रोश को समाप्त करने में सफल हो जाते थे तथा एस.आई.टी. किसी न किसी आतंकवादी गुट पर घटना की जिम्मेदारी डाल कर मुक्त हो जाती थी।
यदि वर्तमान में देखा जाए तो जिला पुलिस गुरदासपुर में अधिकतर बनी एस.आई.टी. इसलिए समाप्त कर दी गईं क्योंकि केसों को अदालत में रैफर किया जा चुका है। जिले में इस समय मात्र 2 एस.आई.टी. ही काम कर रही हैं जिनमें एक तो एस.पी.सलविन्द्र सिंह के केस की जबकि दूसरी गत 20 अप्रैल को गुरदासपुर बाईपास पर हुई गैंगवार संंबंधी जांच कर रही है। वर्ष 2006 में भी गांव जौड़ा छत्तरां के पास 2 लोगों के सिर काटकर ले जाने वाले केस की जांच के लिए एस.आई.टी. गठित की गई थी। उस केस में जांच तो पूरी हो चुकी है, परंतु आरोपी को आज तक गिरफ्तार नहींं किया जा का।
जिले में 2 हाई-प्रोफाइल केसों की जांच कर रही हैं एस.आई.टीज
जब से बटाला पुलिस जिला बना है, जिला पुलिस गुरदासपुर जुर्म के कारण होती बदनामी से बचा हुआ है। जिले में इस समय सबसे पुरानी एस.आई.टी. पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले के बाद सुर्खियों में आए एस.पी. सलविन्द्र सिंह के केसों की जांच के लिए बनी हुई है जिसे हाई-प्रोफाइल केस कहा जाता है। पठानकोट आतंकवादी केस में तो सलविन्द्र सिंह को क्लीन-चिट मिल चुकी है जबकि 3 अगस्त 2016 को सिटी पुलिस स्टेशन में उसके विरुद्ध दुष्कर्म तथा भ्रष्टाचार के केस की जांच करने के लिए गठित एस.आई.टी. काम कर रही है।
इसी तरह गैंगवार के मामले, जिसमें एक गैंग के 3 मैंबर हरप्रीत सिंह हैप्पी निवासी मुस्तफाबाद जट्टां, सुखचैन सिंह गुरदासपुर तथा प्रिन्स निवासी झावर मारे गए थे, की जांच के लिए बनी एस.आई.टी. ने इस गोलीबारी करने वाले गिरोह के सरगना विक्की गौंडर गुट के बड़ी संख्या में मैंबरों को तो गिरफ्तार कर गोलीकांड में प्रयुक्त वाहन व विक्की गौंडर आदि को नाभा जेल से भगाने में प्रयोग कार को भी बरामद कर लिया है, परंतु अब भी विक्की गौंंडर, सुक्खा भिखारीवाल तथा हैरी चड्ढा पुलिस की गिरफ्त से दूर हैं। बीते दिनों उत्तर प्रदेश के एक आई.जी. रैंक के अधिकारी का नाम भी सामने आया था कि उसने 1 करोड़ रुपए लेकर विक्की गौंडर की मदद की थी।
महत्वपूर्ण सुच्चा सिंह लंगाह केस में नहींं बनी एस.आई.टी.
वैसे तो हर महत्वपूर्ण केस की जांच के लिए एस.आई.टी. का गठन करना जरूरी होता है जिससे पता चल सके कि केस में कितनी सच्चाई है, परंतु 29 सितम्बर 2017 को पूर्व मंत्री पंजाब सुच्चा सिंह लंगाह के विरुद्ध जो केस दर्ज कर उसे गिरफ्तार किया गया है, उस संंबंधी एस.आई.टी. का गठन नहींं किया गया, जबकि यह एक महत्वपूर्ण केस है। इस केस की जांच का काम सिटी पुलिस स्टेशन इंचार्ज के पास है।
संबंधित थाने का इंचार्ज नहींं किया जाता एस.आई.टी. में शामिल
कुछ पुलिस अधिकारियों ने अपना नाम प्रकाशित न करने के आश्वासन पर बताया कि पुलिस प्रणाली में राजनीतिक हस्तक्षेप बहुत अधिक है। अब तो तभी एस.आई.टी. गठित की जाती है जब केस में कोई बड़ा नेता संलिप्त हो। एस.आई.टी. में कम से कम 3 अधिकारियों को जरूर शामिल किया जाता है। किसी अधिकारी का तबादला कर उसके स्थान पर जो नया मैंबर डाला जाता है उसे मामले की कोई जानकारी नहींं होती। अधिकारियों में तालमेल की कमी होने के कारण भी एस.आई.टी. किसी भी अंतिम परिणाम पर नहींं पहुंचती।
इन पुलिस अधिकारियों के अनुसार जिस पुलिस स्टेशन के अधीन आने वाले इलाके में घटना होती है, उसके इंचार्ज को एस.आई.टी. में शामिल ही नहींं किया जाता, जिस कारण मामले संबंधी जानकारी होने के बावजूद वह जांच में सहयोग नहींं करता। यदि एस.आई.टी. पुलिस स्टेशन इंचार्ज की अगुवाई में बनाई जाए तो बेहतर परिणाम सामने आ सकते हैं। जब भी किसी केस को हल करने के लिए कोई एस.आई.टी. गठित की जाती है तो जांच पूरी करने की कोई समय-सीमा निर्धारित नहींं की जाती।