Edited By Vatika,Updated: 28 Sep, 2020 09:00 AM
नवजोत सिद्धू ने भाजपा से नाता तोड़ते समय अकाली दल के साथ गठबंधन पर एतराज जताया था और अब अकाली दल द्वारा कृषि बिल के विरोध
लुधियाना(हितेश): नवजोत सिद्धू ने भाजपा से नाता तोड़ते समय अकाली दल के साथ गठबंधन पर एतराज जताया था और अब अकाली दल द्वारा कृषि बिल के विरोध में भाजपा का साथ छोडऩे के बाद पैदा हुए माहौल में वह चाहकर भी वापस भाजपा का दामन नहीं थाम सकते हैं।
यहां बताना उचित होगा कि सिद्धू की कांग्रेस में एंट्री भले ही सीधा राहुल गांधी व प्रियंका गांधी के जरिए हुई थी लेकिन उनकी पहले ही दिन से कैप्टन अमरेंद्र सिंह के साथ ट्यूनिंग नहीं बन पाई, क्योंकि कैप्टन ने विधानसभा चुनाव के दौरान पूरे पंजाब में चुनाव प्रचार करके कांग्रेस को जीत दिलाने का दावा करने वाले सिद्धू को डिप्टी सी.एम. या दूसरे नंबर का मंत्री नहीं बनने दिया।इसे लेकर रोष जताने के लिए सिद्धू द्वारा कई बार सार्वजनिक तौर पर सरकार के कामकाज के तरीके पर सवाल उठए गए और लोकसभा चुनाव के दौरान कई सीटों पर मिली हार के मुद्दे पर उनका कैप्टन के साथ मनमुटाव खुलकर सामने आ गया जिसका नतीजा पहले सिद्धू का विभाग बदलने व फिर मंत्री पद से इस्तीफे के रूप में देखने को मिला।
इसके बाद से सिद्धू सियासी एकांतवास में चल रहे हैं। इस दौरान भले ही उन्होंने कुछ समय पहले अपनी बात रखने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया लेकिन कोरोना की वजह से शांत हो गए और लोगों की मदद के लिए कई बार घर से बाहर निकलने पर भी सियासी बयानबाजी से परहेज कर रहे हैं। हालांकि कृषि बिल का चौतरफा विरोध शुरू हुआ तो सिद्धू ने सोशल मीडिया के जरिए भाजपा पर काफी भड़ास निकाली और उसके खिलाफ सड़कों पर भी उतरे। इसी बीच अकाली दल ने कृषि बिल के विरोध में हरसिमरत बादल का इस्तीफा दिलाने के बाद एन.डी.ए. से अलग होने का फैसला किया है। इसे लेकर एक बार फिर यह चर्चा तेज हो गई कि भाजपा द्वारा पंजाब में अकेले चुनाव लडऩे की सूरत में सिद्धू उसका चेहरा हो सकते हैं लेकिन सियासी जानकारों के मुताबिक कृषि बिल को लेकर पंजाब में केंद्र सरकार के खिलाफ जिस तरह का माहौल बन गया है उस दौरान भाजपा का दामन थामने का मुद्दा उनके गले की फांस बन सकता है।