नशा बेचने पर हुई थी सजा, जमानत मिलते ही बेचनी शुरू कर दी नशीली दवाइयां, अरैस्ट

Edited By Des raj,Updated: 10 Aug, 2018 08:17 PM

sale of intoxicants was punished got bail and started selling drugs arrest

‘वारे शाह जादीयां न आदतां’ की कहावत अनुसार तीन बार मैडीकल स्टोर का लाइसंस रद्द हुआ, नशा तस्करी के आरोप में सजा भी हुई, जेल से आते ही फिर 1100 नशीली गोलियों के साथ पकड़ा गया आरोपी। नशा तस्करी के मामले में आरोपी की दुकान सी.आई.ए. बिलकुल सामने हैं,...

बठिंडा (विजय): ‘वारे शाह जादीयां न आदतां’ की कहावत अनुसार तीन बार मैडीकल स्टोर का लाइसंस रद्द हुआ, नशा तस्करी के आरोप में सजा भी हुई, जेल से आते ही फिर 1100 नशीली गोलियों के साथ पकड़ा गया आरोपी। नशा तस्करी के मामले में आरोपी की दुकान सी.आई.ए. बिलकुल सामने हैं, जहां बड़े से बड़े अपराधी भी नाम सुनकर कांपते हैं, जहां उन्हीं की छाया में चल रहा है नशा तस्करी का आलम।

2 भाई मिलकर मैडीकल स्टोर की दुकान चलाते हैं, जबकि दुकान मालिक सुरेश कुमार को दो साल की सजा हो चुकी है सजा काटने के बाद आरोपी जमानत पर बाहर आया और फिर नशा तस्करी के धंधे में जुड़ गया। यही नहीं उसके भाई राकेश को 2016 में नशा तस्करी के आरोप में 10 साल की सजा 1 लाख रुपए जुर्माना हो चुका है।

थाना कोतवाली के ए.एस.आई. कौर सिंह ने बताया कि आरोपी बिना मैडीकल लाइसंैस लिए नशा तस्करी कर रहा था जिस संबंधी पुलिस को गुप्त सूचना मिली जिस पर छापेमारी दौरान उसके पास से 1100 नशीली गोलियां बरामद हुई, जिसे अरैस्ट कर लिया। शुक्रवार को उसे अदालत में पेश किया गया और तीन दिन का रिमांड हासिल किया। इस बार लाइसैंस नहीं मिला तो एक धार्मिक के नाम पर आयुर्वैदिक दवा बेचने का स्टोर खोल लिया लेकिन धंधा फिर वही। आरोपी ने तीन विभिन्न नामों से एक ही दुकान में लाइसंस हासिल किए थे।

ड्रग इंस्पैक्टर लाइसैंस मालिक की थाने में नहीं करवाते जांच
पंजाब पुलिस के पूर्व डी.एस.पी. रणजीत सिंह ने इस संबंध में बताया कि जब ड्रग इंस्पैक्टर लाइसेंस जारी करते हैं तो वह स्टोर मालिक की जांच थाने से नहीं करवाते। उन्हें पता नहीं होता कि उक्त मालिक के विरुद्ध एन.डी.पी.सी. एक्ट के तहत मामला दर्ज है। 

सेहत विभाग के पास होता है रिकार्ड
इस मामले में थाना कोतवाली प्रभारी दविंद्र सिंह कहते हैं कि ड्रग एक्ट संबंधी दर्ज मामले का रिकार्ड तो सेहत विभाग के पास होता है उनके पास नहीं होता। थाने में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे एन.डी.पी.सी. एक्ट के तहत रिकार्ड रखा जाए। इस एक्ट के तहत सीधे अदालत में ही ट्रायल शुरू होता है।  

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