पेशेवर सलाहकार की गैर-कानूनी नियुक्ति पर मंत्री रंधावा पर आपराधिक मामला दर्ज करें CM: मजीठिया

Edited By Vatika,Updated: 11 Jul, 2020 08:19 PM

randhawa for illegal appointment of professional consultant cm majithia

शिरोमणि अकाली दल ने मुख्यमंत्री कै. अमरेंद्र सिंह से कहा है कि सहकारिता मंत्री सुखजिंद्र सिंह रंधावा द्वारा पेशेवर सलाहकार की अवैध नियुक्ति के लिए

चंडीगढ़(अश्वनी): शिरोमणि अकाली दल ने मुख्यमंत्री कै. अमरेंद्र सिंह से कहा है कि सहकारिता मंत्री सुखजिंद्र सिंह रंधावा द्वारा पेशेवर सलाहकार की अवैध नियुक्ति के लिए आपराधिक मामला दर्ज करें और जांच के आदेश दें। मंत्री से राज्य के खजाने को हुए नुक्सान की वसूली करने के आदेश दें। यहां संवाददाता सम्मेलन दौरान पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया ने कहा कि व्यावसायिक सलाहकार सिद्धार्थ शर्मा को कैबिनेट की मंजूरी बिना मंत्री ने गैर-कानूनी रूप से नियुक्त किया था। 2.60 लाख रुपए प्रतिमाह का वेतन दिया था, जो इतिहास में बेजोड़ था। यह वेतन मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव की आय से भी ज्यादा है।

ऐसा पहली बार हुआ है कि कम योग्यता वाले व्यक्ति को 25 साल से अधिक अनुभव रखने वाले मुख्य सचिव से अधिक वेतन दिया जा रहा है।मजीठिया ने कहा कि मंत्री ने 8 विभिन्न सहकारिता विभागों को निर्देश दिया था कि बोर्ड ऑफ डायरैक्टर के माध्यम से इस संबंध में कोई भी प्रस्ताव लाने के साथ सलाहकार के वेतन का भुगतान करें। एक व्यक्ति को 8 विभागों द्वारा भुगतान नहीं किया जा सकता है। पूर्व मंत्री ने कांग्रेस सरकार से यह भी जांच करने को कहा है कि इस अवधि दौरान दो सहकारी विभाग को क्या फायदा हुआ था। इस अवधि के दौरान दो सहकारी समितियां पनकोफेड और पी.आई.सी.टी. कोई राजस्व जुटाने में असमर्थ थी। उन्होंने बताया कि यहां तक कि पी.ए.डी.बी. ने नाबार्ड को पैसे चुकाने के लिए सहकारी बैंकों से 213 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था।

यह इस बात का सबूत है कि सहकारिता विभाग को सिद्धार्थ शर्मा के अनुभव से बिल्कुल भी लाभ नहीं हुआ।अकाली नेता ने कहा जब सहकारिता कर्मचारियों को मृत्यु कवरेज प्रदान करने के लिए निविदा जारी की थी तो सिद्धार्थ को समिति का सदस्य बनाया था। मंत्री ने संबंधित कंपनियों को स्पष्टीकरण के लिए शर्मा से संपर्क करने का निर्देश दिया था। उन्होंने कहा कि बाद में एकल बोली मानदंडों का उल्लंघन कर अनजान कंपनी गो डिजिट को निविदा दी जिससे ई-टैंडरिंग के बजाय ई-मेलिंग की अनुमति दी गई और केंद्रीय सतर्कता समिति (सी.वी.सी.) के दिशा-निर्देशों के खिलाफ जाकर अनुमति दी गई। यह भी खुलासा किया कि विवादास्पद अधिकारी ने सहकारिता विभाग में सलाहकार के रूप में नियुक्ति से पहले बीमा कंपनियों के लिए काम किया था और सहकारिता के संबंध में उनके पास कोई अनुभव नहीं था।

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