Edited By Kalash,Updated: 09 Jan, 2025 05:32 PM
सुल्तानपुर लोधी : लगातार बढ़ रहा ई-कचरा न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए एक बड़ा पर्यावरणीय, प्राकृतिक और स्वास्थ्य संबंधी खतरा है। ई-कचरे का मतलब उन सभी इलैक्ट्रॉनिक और इलैक्ट्रिकल उपकरणों (ई.ई.ई.) और उनके हिस्से है, जिनका उपभोक्ता द्वारा पुन: उपयोग नहीं किया जाता है। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर-2020 के अनुसार चीन और अमेरिका के बाद भारत कचरे का सबसे बड़ा उत्पादक है, क्योंकि बिजली और इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में खतरनाक पदार्थों (कांच, पारा, कैडमियम आदि) का उपयोग किया जाता है, जिसका मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इस प्रकार उत्पन्न होने वाला ई-कचरा पूरी दुनिया में एक समस्या बनकर उभर रहा है। ई-कचरे के पारा, कैडमियम, कांच, पॉलीब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट्स, बोरान, लिथियम आदि जहरीले अवशेष मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक हैं। इन जहरीले पदार्थों के संपर्क में आने से मनुष्य के हृदय, यकृत, मस्तिष्क, गुर्दे और कंकाल प्रणाली को नुक्सान होता है।
इसके अलावा, यह ई-कचरा मिट्टी और भूजल को भी प्रदूषित करता है। ई-उत्पादों की अंधी दौड़ ने कभी न खत्म होने वाली समस्या पैदा कर दी है। स्वच्छ वातावरण के लिए स्वच्छ उपकरणों को अपनाना, ई-उपकरणों का सही लक्ष्य के साथ सही दिशा में उपयोग करना आवश्यक है। दुनिया में हर साल 3 से 5 करोड़ टन ई-कचरा पैदा हो रहा है। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर के अनुसार, भारत सालाना लगभग 20 लाख टन ई-कचरा पैदा करता है।
ई-कचरे का निस्तारण मात्र 0.003 मीट्रिक टन हुआ है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2021 में दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति ने 7.6 किलोग्राम ई-कचरा डंप किया। भारत में हर साल करीब 25 करोड़ मोबाइल फोन बर्बाद हो रहे हैं। यह सभी को आश्चर्यचकित करता है और चिंता का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है, क्योंकि कैंसर और डी.एन.ए. डैमेज जैसी बीमारियां कृषि उत्पादों और पर्यावरण के लिए भी गंभीर खतरा पैदा कर रही हैं।
दुनिया भर में इलैक्ट्रॉनिक कचरे में बढ़ोतरी का सबसे बड़ा कारण इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों की तेजी से बढ़ती खपत है। आज हम जिन इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों को अपना रहे हैं, उनकी उम्र कम है। इस वजह से इन्हें जल्दी ही फेंक दिया जाता है। जैसे ही कोई नई तकनीक आती है, पुरानी को फेंक दिया जाता है। वहीं, कई देशों में इन उत्पादों की मरम्मत और रीसाइक्लिंग के लिए सीमित प्रावधान हैं या ये बहुत महंगे हैं।
ऐसे में जैसे ही कोई प्रोडक्ट खराब होता है तो लोग उसकी मरम्मत कराने की बजाय उसे बदलना पसंद करते हैं। साल 2021 में डेविट यूनिवर्सिटी ऑफ टैक्नोलॉजी की ओर से कराए गए सर्वे में फोन बदलने की सबसे बड़ी वजह सॉफ्टवेयर का धीमा होना और बैटरी का कम होना बताया गया। दूसरा बड़ा कारण था नए फोन के प्रति आकर्षण, कंपनियों की मार्केटिंग और दोस्तों की हर साल फोन बदलने की आदत से प्रभावित होकर लोग जरूरत न होने पर भी नया फोन खरीद लेते हैं। इसके कारण भी ई-कचरे में वृद्धि हो रही है।
एक अन्य आंकड़े के मुताबिक, अगर साल 2019 में पैदा हुए कुल इलैक्ट्रॉनिक कचरे को गो-साइक्लिंग किया जाता तो इससे करीब 425,833 करोड़ रुपए का फायदा होता. ये आंकड़ा दुनिया के कई देशों की जी.डी.पी. से भी ज्यादा है। संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय द्वारा जारी ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020 रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में दुनिया में 5.36 मिलियन मीट्रिक टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक यह वैश्विक ई-कचरा लगभग 38 प्रतिशत बढ़ जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में इलैक्ट्रॉनिक मित्र का जिक्र किया. बता दें कि भारत में 2011 से इलैक्ट्रॉनिक कचरे के प्रबंधन से जुड़ा नियम लागू है. बाद में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 लागू किया गया। इस नियम के तहत पहली बार इलैक्ट्रॉनिक उपकरण निर्माताओं को विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी के दायरे में लाया गया। नियमों के तहत उत्पादकों को ई-कचरे के संग्रहण और निपटान के लिए जिम्मेदार बनाया गया है और उल्लंघन के मामले में सजा का भी प्रावधान किया गया है। अगर आप ई-कचरा कम करना चाहते हैं तो चीजों को रीसाइक्लिंग करना जरूरी है।
कई लोग या कंपनियां अपने पुराने लैपटॉप, कंप्यूटर या मोबाइल को बर्बाद कर देते हैं, जो ई-कचरा के रूप में सामने आता है। लेकिन आप इसे किसी जरूरतमंद को दे सकते हैं। आप अपने पुराने मोबाइल, लैपटॉप, कम्प्यूटर आदि का यथासंभव लंबे समय तक उपयोग करें। नए नियमों के तहत यह जिम्मेदारी नहीं लेने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा, जिसमें उन्हें जुर्माना और जेल दोनों का सामना करना पड़ सकता है।
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