शायराना अंदाज में सिद्धू ने दिए लड़ाई के परिणाम व भविष्य के राजनीतिक सफर के संकेत

Edited By Vatika,Updated: 30 May, 2019 12:25 PM

navjot singh sidhu captain amarinder singh

हाल ही में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनावों के चलते राजनीतिक पार्टियों पर उसके परिणामों का असर दिखना शुरू हो गया है।

पठानकोट(शारदा): हाल ही में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनावों के चलते राजनीतिक पार्टियों पर उसके परिणामों का असर दिखना शुरू हो गया है। राजनीतिक पंडितों के अनुसार मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह ने जिस प्रकार से शहरी क्षेत्रों में सरकार की कार्यप्रणाली की धार तेज करने के लिए स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू का विभाग चेंज करने का मन बनाया था तथा उसे सार्वजनिक भी किया, के चलते अब सिद्धू के लिए अपनी ही सरकार में लड़ाई लडऩा एक प्रबल चुनौती बनता दिख रहा है।
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प्रदेश सरकार के कैबिनेट के 7 मंत्री तो पहले ही सिद्धू को अपने दायरे में रहने की जहां नसीहत दे चुके है, वहीं मुख्यमंत्री के साथ चट्टान बनकर खड़े नजर आ रहे हैं। इससे पहले भी सिद्धू टिकट बंटवारे के समय 3-4 सप्ताह के लिए ज्ञात वास में चले गए थे। वहीं मुख्यमंत्री के फोन तक को उन्होंने इस दौरान नहीं उठाया था। अब एक बार फिर से सिद्धू कै. अमरेन्द्र व कैबिनेट मंत्रियों के राजनीतिक हमले के बावजूद देश में कांग्रेस की हुई दुर्गति को देखते हुए मीडिया से दूरी बना चुके हैं। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जिनको पंजाब का मसला हल करना है अमेठी की हार के बाद खुद पशोपेश में है। परिणाम स्वरूप केन्द्रीय हाईकमान के पास खुद के इतने गंभीर मसले हैं कि इन परिस्थितियों में उनका सिद्धू के साथ खड़े होना अथवा समस्या का समाधान करना फिलहाल नजर नहीं आता। 
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वहीं मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र के स्वभाव से वाकिफ सिद्धू मानकर चल रहे हैं कि अब उनका विभाग उनके हाथों से गया सो गया। सिद्धू का विभाग खिसकने से कौन बचाएगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा, परन्तु दूसरा विभाग जो सिद्धू को ऑफर होगा क्या वह उसे स्वीकार करेंगे यह भी एक लाख टके का सवाल है। सिद्धू का ट्विटर हैंडल पर कि ‘इस जहां के आगे जहां और भी हैं’ उनकी मनोदशा उजागर करता है। हो सकता है कि वह आधा दर्जन कैबिनेट मंत्रियों की नाराजगी व दूसरा विभाग लेने की जगह मंत्रिमंडल से ही दूरी बना लें। लोकसभा चुनाव प्रचार के अंतिम दिन बठिंडा में सिद्धू ने इधर-उधर की बात करते हुए संकेत दिया था कि अगर बेअदबी मामले में हुई कार्रवाई में उन्हें इंसाफ होता नजर नहीं आया तो वह अपनी कुर्सी छोड़ देंगे। 

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वहीं सिद्धू ने अपने तरकश से एक और तीर  छोड़ते हुए ट्विटर हैंडल पर फिर लिखा है कि ‘जिंदगी अपने दम पर ही जाती है औरों के कंधों पर जनाजे उठा करते हैं’ ने अपने शुभचिंतकों को संदेश दे दिया है कि हमें अपनी लड़ाई खुद ही लडऩी पड़ेगी। हाईकमान इस स्थिति में नहीं है कि प्रदेश के शंहशाह कै. अमरेन्द्र की लोकसभा में हुई जीत को चुनौती दे सके। दूसरी ओर सिद्वू की ओर से छेड़ा गया द्वंद्व युद्ध प्रदेश कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई का प्रतीक है जिसे कांग्रेस के प्रभारी व हाईकमान द्वारा रोक पाना मुश्किल होगा। मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र अपनी कही बात कि वह सिद्धू का विभाग पलटना, से वापस होना असंभव है क्योंकि मंत्रिमंडल मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में हैं। विभाग बदलने के बाद उनकी कैबिनेट में रहना भी सिद्धू के लिए लगभग असंभव सा हो जाता है। प्रदेश की राजनीति में शीघ्र ही एक बड़ा धमाका होने जा रहा है जिसके परिणाम आने वाले 6 महीने से एक साल की अवधि के भीतर सामने आ जाएंगे। 
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नवम्बर 2019 में प्रथम पातशाही श्री गुरु नानक देव जी का 550वें प्रकाशोत्सव व करतारपुर के लांघे पर पूरा फोकस समूचे विश्व समुदाय का होगा। वहीं लोकसभा चुनाव जीतकर हीरो बने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फ्रंट फुट से करतारपुर कॉरीडोर पर बैटिंग करते नजर आएंगे। मोदी व सिद्धू के बीच शुरू हुई तल्ख भाषणबाजी से दोनों के बीच गहरी राजनीतिक खाई पैदा हो चुकी है। अपने जख्मों को सहला रहा कांग्रेस हाईकमान पंजाब के मामले पर क्या रूख लेता है यह तो समय बताएगा परन्तु जो राजनीतिक कुंडली पंजाब की बनती नजर आ रही है, उसमें चाहे अकाली दल 2 सीटें जीतकर सूबे में बैकफुट पर नजर आ रहा है और एक सीट जीतकर भगवंत मान ‘आप’ के रूप में तीसरे विकल्प की तख्ती लेकर खड़े हैं परन्तु कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई कब इन दोनों को राजनीतिक अवसर प्रदान कर देगा, कुछ कहा नहीं जा सकता है। 

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