लुधियाना आगजनी से नहीं लिया सबक, सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर चल रही हैं इंडस्ट्रीज

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Nov, 2017 03:22 PM

ludhiana factory collapse

फायर सेफ्टी मामले में बड़े उद्योगों को छोड़कर लघु उद्योग पूरी तरह लापरवाह हैं। जब भी कहीं आगजनी होती है तो उनके लिए मात्र सहारा फायर ब्रिगेड ही है। जब तक फायर ब्रिगेड भीड़भाड़ वाले इलाकों से होकर गुजरती है तब तक उद्योगपति को बड़ा नुक्सान हो चुका...

बठिंडा (विजय/ आजाद): फायर सेफ्टी मामले में बड़े उद्योगों को छोड़कर लघु उद्योग पूरी तरह लापरवाह हैं। जब भी कहीं आगजनी होती है तो उनके लिए मात्र सहारा फायर ब्रिगेड ही है। जब तक फायर ब्रिगेड भीड़भाड़ वाले इलाकों से होकर गुजरती है तब तक उद्योगपति को बड़ा नुक्सान हो चुका होता है। जिला उद्योग विभाग जब भी इंडस्ट्रीज के लिए इजाजत नहीं देता तो उसमें फायर सिस्टम लगाना अति आवश्यक माना गया है जबकि इसकी मात्र खानापूर्ति होती है। लुधियाना में प्लास्टिक फैक्टरी जलकर खाक हो गई और 12 लोगों को निगल गई। इससे भी किसी ने सबक लेने की कोशिश नहीं की।बठिंडा में गत्ते की फैक्टरी को लगी आग आसमान को छूने लगी। कई करोड़ों का नुक्सान हुआ फिर भी फायर सेफ्टी में लापरवाही बरती जा रही है। रामपुरा में चलती बस को आग लगी लेकिन उसमें भी फायर सेफ्टी सिस्टम नहीं था जिसमें 6 कीमती जानें पहचानने के काबिल भी नहीं रहीं। बठिंडा के टायर गोदाम को लगी आग का धुआं ठंडा नहीं हुआ था, कि सैनिक छावनी में आग के शोले नजर आए।

सार्वजनिक स्थलों पर आग बुझाने का कोई पुख्ता प्रबंध नहीं, शिक्षण संस्थानों में भी व्यवस्था जीरो
शहर के जनतक स्थानों जिनमें बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, माल, सिनेमा घर, पैट्रोल पम्प, सिविल अस्पताल, मैरिज पैलेस, पुलिस लाइन, कालोनियां आदि में फायर सेफ्टी सिस्टम का कोई प्रबंध नहीं है। बैंकों व ए.टी.एम. सहित पैट्रोल पम्पों पर मात्र छोटे-छोटे आग बुझाने के सिलैंडर नजर जरूर आते हैं परन्तु कभी उनमें कार्बन ड्राईआक्साइड गैस की जांच नहीं हुई।डबवाली मैरिज पैलेस में टैंट को लगी आग में 400 से अधिक लोग जलकर राख हो गए थे। यह एक बहुत बड़ी त्रासदी थी लेकिन इससे भी किसी ने कोई सबक नहीं लिया। स्कूलों, कालेजों, इंस्टीच्यूट, यूनिवर्सिटियों, पी.जी. आदि में भी फायर सेफ्टी सिस्टम गायब हैं।

फायर ब्रिगेड पर निर्भर रहना पड़ता है लघु उद्योगों को
उद्योगों से जुड़ी इमारतों में बेशक फायर सिस्टम तो लगे हुए दिखाई देते हैं लेकिन जरूरत पडऩे पर वे कभी काम नहीं आए। मात्र खानापूर्ति के नाम पर फायर सेफ्टी सिस्टम लगाए जाते हैं। यहां तक कि नगर निगम से एक वर्ष का सर्टीफिकेट तो मिल जाता है लेकिन आज तक किसी भी इंडस्ट्रीज ने उसका नवीकरण नहीं करवाया। बठिंडा में लगभग 250 छोटे-बड़े उद्योग लगे हुए हैं, मात्र 10 प्रतिशत उद्योग ही इस मामले में गंभीर हैं। बड़े उद्योग जिनमें तेल शोधक कारखाना, एन.एफ.एल., कारगिल, थर्मल प्लांट, बठिंडा कैमीकल इंंडस्ट्रीज, तेल भंडारण डिपो, सैनिक छावनी, वायु सेना, सिविल एयरपोर्ट शामिल हैं। इन सभी बड़े उद्योगों के पास अपने फायर सेफ्टी सिस्टम लगे हुए हैं व इन उद्योगों में मुकम्मल तौर पर फायर सेफ्टी आफिसर भी मौजूद रहते हैं। फायर सेफ्टी सिस्टम के अलावा इनके पास अपनी फायर ब्रिगेड गाडिय़ां भी हैं। 90 प्रतिशत लघु उद्योगों में कोई आग बुझाने का सिस्टम नहीं है जिसके लिए उन्हें फायर ब्रिगेड पर ही निर्भर होना पड़ता है।

बठिंडा इंडस्ट्रीज का हब, अधिक उपकरणों की जरूरत 
आगजनी दौरान उस पर काबू पाने के लिए कई संसाधनों की 
जरूरत है लेकिन सरकार के पास फंड की कमी होने के चलते ये सभी संसाधन धरे के धरे रह जाते हैं। चूंकि बठिंडा इंडस्ट्रीज हब बन चुका है इसलिए फायर ब्रिगेड को अधिक उपकरणों की जरूरत है जिनमें टी.टी.एल. (टर्ज टेसल लैंडर) शामिल है जिससे 150 फुट ऊंची इमारतों की आग पर काबू पाया जा सकता है। यह सिस्टम अभी चंडीगढ़ व मोहाली तक ही सीमित है जबकि पंजाब के बड़े शहरों लुधियाना, जालंधर, अमृतसर, बठिंडा में भी इसकी जरूरत है। महानगरों में कई बड़ी इमारतें बन रही हैं जिसके लिए उपकरणों का होना अति जरूरी है।


 

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