Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Jan, 2018 01:38 PM
लोहड़ी पर्व पंजाब में बीते कई सौ सालों से मनाया जा रहा है। तभी से ही दुल्ला भट्टी की कहानी काफी फेमस है। हम में से काफी कम लोगों को ही पता है कि आखिर हम लोहड़ी मनाते क्यों हैं।
जालंधर: लोहड़ी पर्व पंजाब में बीते कई सौ सालों से मनाया जा रहा है। तभी से ही दुल्ला भट्टी की कहानी काफी फेमस है। हम में से काफी कम लोगों को ही पता है कि आखिर हम लोहड़ी मनाते क्यों हैं।
उत्तर भारत और खासकर पंजाब का सबसे प्रसिद्ध त्योहार है लोहड़ी। इस दिन सभी अपने घरों और चौराहों के बाहर आग जला कर इस पर्व को मनाते हैं। आग का घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाते हुए रेवड़ी, मूंगफली खाते हैं लेकिन ये लोहड़ी क्यों जलाई जाती है और इस दिन दुल्ला भट्टी की कहानी का क्या महत्व है जानते हैं-
कैसे मनाते हैं लोहड़ी?
पारंपरिक तौर पर लोहड़ी फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा एक विशेष त्यौहार है। इस दिन अलाव जलाकर उसके इर्दगिर्द भांगड़ा डाला जाता है। लड़कियां और महिलाएं गिद्धा डालती है।
कहां से आया लोहड़ी शब्द?
अनेक लोग मानते हैं कि लोहड़ी शब्द ‘लोई (संत कबीर की पत्नी) से उत्पन्न हुआ था, लेकिन कई लोग इसे तिलोड़ी से उत्पन्न हुआ मानते हैं, जो बाद में लोहड़ी हो गया। वहीं, कुछ लोग यह मानते है कि यह शब्द लोह’ से उत्पन्न हुआ था, जो चपाती बनाने के लिए प्रयुक्त एक उपकरण है।
कौन था दुल्ला भट्टी?
किसान सुंदरदास की दो बेटियां थी सुंदरी और मुंदरी। नंबरदार की नीयत खराब हो गई और सुंदरदास को धमकाया कि बेटियों की शादी उससे कर दे।
सुंदरदास ने दुल्ला भट्टी से फरियाद की कि नंबरदास से उनकी बेटियों को बचाए। भट्टी ने सुंदरदास को कहा तेरीयां धीआं तेरी मर्जी नाल ही व्याहियां जाणगीयां...ऐह मेरी जुबान ऐ... दुल्ला अपने साथियों को साथ लेकर नंबरदार के गांव गया और उसके सारे खेत जला दिए। जिससे नंबरदार डरकर भाग गया। इसके बाद दोनों को बेटियां माना और शादी करा दी। शगुन में शक्कर भी दी। इसी रात आग जलाकर लोहड़ी मनाई जाती है और बच्चे सुंदर मुंदरिए और दुल्ला भट्टी की बोलियां गाकर लोहड़ी मांगते हैं।