सिविल अस्पताल का हाल- बेहाल, सिर्फ नाम तक ही सीमित एमरजैंसी सेवाएं

Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Jun, 2017 01:15 PM

limited to only the names emergency services

मोगा जिले के अंतर्गत पड़ते 4 विधानसभा हलकों के अलावा फिरोजपुर जिले के गांवों को सेहत सुविधाएं प्रदान करने वाला सिविल अस्पताल मूलभूत समस्याओं से वंचित है। बेशक सरकार द्वारा अस्पताल में प्राइवेट के मुकाबले अनेकों बढिय़ा............

मोगा (पवन ग्रोवर): मोगा जिले के अंतर्गत पड़ते 4 विधानसभा हलकों के अलावा फिरोजपुर जिले के गांवों को सेहत सुविधाएं प्रदान करने वाला सिविल अस्पताल मूलभूत समस्याओं से वंचित है। बेशक सरकार द्वारा अस्पताल में प्राइवेट के मुकाबले अनेकों बढिय़ा सहूलियतें प्रदान करने के दावे किए जा रहे हैं लेकिन अभी भी कई सेवाएं अस्पताल में न शुरू होने के कारण मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यहां तक कि एमरजैंसी केसों में मोगा पहुंचने वाले मरीज फरीदकोट व अन्य बड़े अस्पतालों के लिए रैफर करने पड़ते हैं तथा इस ‘रैफर’ के चक्कर में कई बार मरीज अपनी कीमती जिंदगी से हाथ भी धो बैठते हैं। विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पिछले 4 महीनों में एमरजैंसी में पहुंचे 3400 मरीजों में लगभग 400 मरीजों को दूसरे बड़े अस्पतालों के लिए ‘रैफर’ किया गया। 

आई.सी.यू. यूनिट के बिना चल रहा है अस्पताल
जानकारी के अनुसार मोगा के जिला स्तरीय अस्पताल में हड्डी रोग के माहिर, चमड़ी रोगों का माहिर, दांतों की बीमारियों के माहिर, बज्जों के माहिर, आंखों के माहिर, ऑप्रेशन करने के लिए सर्जन, महिला रोग विशेषज्ञ तथा दिमागी बीमारियों के माहिर डाक्टर होने के बावजूद भी आई.सी.यू. की सहूलियत नहीं है। जिला स्तरीय अस्पताल में आई.सी.यू. की सहूलियत न होने के कारण गंभीर मरीजों को मैडीकल कालेज फरीदकोट या लुधियाना जैसे बड़े अस्पतालों के लिए ‘रैफर’ कर दिया जाता है तथा ऐसी स्थिति में कई बार मरीज की जान भी चली जाती है। 

3 की जगह 1 ही एम.डी. मैडीसिन चला रहा है कार्य
सिविल अस्पताल में रोजाना 500 से 800 के करीब मरीज ओ.पी.डी. प्रक्रिया द्वारा अपना इलाज करवाते हैं लेकिन कई बार एम.डी. मैडीसिन डाक्टरों की कमी के चलते मरीजों को निराशा का सामना करना पड़ता है। विभागीय सूत्रों के अनुसार जिला स्तरीय अस्पताल में एम.डी. मैडीसिन के 3 पद हैं लेकिन अस्पताल में 1ही एम.डी. मैडीसिन की तैनाती होने के चलते 2 पद रिक्त पड़ी हैं।

बर्न केसों में नहीं कोई पुख्ता प्रबंध
सूत्रों के अनुसार मोगा के जिला स्तरीय अस्पताल में बर्न केसों को लेकर कोई पुख्ता प्रबंध नहीं हैं। आग से झुलसे मरीज अगर सिविल अस्पताल में पहुंच भी जाएं तो अक्सर गंभीर केसों में इन मरीजों को मोगा के सिविल अस्पताल में कोई विशेष वार्ड न होने के चलते आगे रैफर कर दिया जाता है। सेहत माहिरों के अनुसार बर्न केसों में मरीज को बहुत जल्दी इन्फैक्शन होने का खतरा होता है, जिसके लिए बर्न यूनिट प्रत्येक अस्पताल में अलग तौर पर होना जरूरी है लेकिन मोगा के जिला स्तरीय अस्पताल में यह सुविधा मुहैया नहीं है। 


एमरजैंसी वार्ड में 10 की बजाय 3 डाक्टर ही चला रहे हैं कार्य
सूत्रों के अनुसार जिला स्तरीय सिविल अस्पताल के एमरजैंसी वार्ड में एमरजैंसी मैडीकल अफसर के 10 पद मंजूर हैं लेकिन 3 डाक्टरों द्वारा ही एमरजैंसी का कार्य चलाया जा रहा है। अस्पताल प्रबंधकों द्वारा रोजाना ओ.पी.डी. में मरीजों को देखने वाले डाक्टरों की तैनाती एमरजैंसी वार्ड में करने के चलते कई बार अस्पताल में दवाई लेने आने वाले मरीजों को डाक्टर की एमरजैंसी ड्यूटी लगने के कारण वापस लौटना पड़ता है।

नाक, कान तथा गले के इलाज का कार्य राम भरोसे
जिला स्तरीय सिविल अस्पताल में ई.एन.टी. स्पैशलिस्ट डाक्टर का पद रिक्त होने के चलते मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। मोगा के अस्पताल में लंबा समय बतौर ई.एन.टी. डाक्टर सेवाएं निभाने वाले डाक्टर की तरक्की के बाद यह पद रिक्त हो गया है, जबकि आज के हालातों में बड़ी संख्या में मरीज नाक, कान व गले की बीमारियों से पीड़ित हैं जिस कारण लोगों को मजबूरी वश बाहर से महंगे मूल्य में अपना इलाज करवाना पड़ रहा है। 

गले की बीमारी से पीड़ित अजीतवाल निवासी 
सुखदीप सिंह ने कहा कि उसको पिछले 15 दिनों से गले की समस्या थीं तथा जब वह सिविल अस्पताल मोगा में अपने इलाज के लिए आया तो कोई भी स्पैशलिस्ट डाक्टर नहीं मिला जिस कारण उसने बाहर से 150 रुपए की पर्ची कटवाकर प्राइवेट डाक्टर से अपना इलाज करवाया। 

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