जत्थेदार हरप्रीत सिंह का पद छोड़ना पंजाब की सिख राजनीति में बड़ी उथल-पुथल के संकेत

Edited By Sunita sarangal,Updated: 18 Jun, 2023 10:24 AM

jathedar harpreet singh

एस.जी.पी.सी. पर काबिज रहने के लिए जहां शिरोमणि अकाली दल हाथ-पैर मार रहा है....

जालंधर(अनिल पाहवा): शुक्रवार को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के जत्थेदार हरप्रीत सिंह ने एकाएक निजी कारण बताते हुए अपना पद छोड़ने का ऐलान कर दिया, जिसके बाद नए जत्थेदार के तौर पर रघुवीर सिंह के नाम का ऐलान किया गया है। यह शुक्रवार का घटनाक्रम बेशक देखने में साधारण व सामान्य लग रहा हो, लेकिन यह इतना भी सामान्य नहीं है। जत्थेदार हरप्रीत सिंह के हटने के पीछे कई तरह के कारण बताए जा रहे हैं, जिसमें कोई उनके किसी समारोह में उपस्थित होने को लेकर बात कर रहा है तो कोई किसी राजनीतिक दल के दबाव में पद छोड़ने की चर्चा कर रहा है लेकिन इसके पीछे तस्वीर कुछ अलग है, जो शायद अभी बहुत कम लोगों को नजर आ रही है।

दरअसल, यह घटनाक्रम पंजाब की ही नहीं, बल्कि पूरे देश की सिख राजनीति में एक बड़ी उथल-पुथल का आगाज लग रहा है। वैसे शिरोमणि अकाली दल की सिख राजनीति में अच्छी पकड़ रही है, जिसकी बुनियाद एस.जी.पी.सी. के माध्यम से रखी गई। एस.जी.पी.सी. के जत्थेदारों से लेकर प्रधानों पर बादल परिवार का दबदबा रहा है। लेकिन अब स्थिति लगातार बदल रही है, जहां एस.जी.पी.सी. को शिरोमणि अकाली दल से छीन कर अपना कब्जा जमाने की कोशिश भाजपा की तरफ से की जा रही है, वहीं अकाली दल के लिए भी करो या मरो वाली स्थिति पैदा हो गई है।

लपकने को तैयार बैठी भाजपा

एस.जी.पी.सी. पर काबिज रहने के लिए जहां शिरोमणि अकाली दल हाथ-पैर मार रहा है, वहीं इस मामले में भाजपा भी पूरी पैनी नजर रखे हुए है। राजनीति के माहिर तथा सिख राजनीति की जानकारी रखने वाले 'पंडित' भी इस बात के संकेत दे रहे हैं कि एस.जी.पी.सी. पर काबिज होने के लिए भाजपा पूरा जोर लगा रही है। वैसे अभी तक एस.जी.पी.सी. ही एक संगठन रह गया है, जिस पर भाजपा का फिलहाल दबदबा नहीं है। लेकिन अगर बात हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों की करें तो वहां पर काफी हद तक भाजपा की घुसपैठ हो चुकी है। सूत्र तो यह भी बता रहे हैं कि पंजाब की सिख राजनीति में घुसपैठ करने के लिए भाजपा के दो कद्दावर सिख नेता पूरी शिद्दत से लगे हुए हैं। अब उनकी यह कोशिश कितनी कामयाब होती है, यह अलग बात है, लेकिन कोशिश जारी है।

सिख राजनीति के लिए जद्दोजहद

एस.जी.पी.सी. में चुनावों को न करवाए जाने को लेकर भी कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। वैसे कहा जा रहा है कि पिछले 6 सालों से एस.जी.पी.सी. के चुनाव नहीं हुए हैं और अभी तक कुछ ऐसी संभावना भी नहीं दिख रही। अगर एस.जी.पी.सी. में चुनावों का सिलसिला शुरू होता है तो जाहिर है कि शिरोमणि अकाली दल के साथ-साथ इस बार भाजपा भी पूरे दम-खम से अपनी राजनीतिक चालें चलेगी।

अकाली दल नहीं, बल्कि इसके नेता भाजपा के राडार पर

भाजपा का शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन टूट चुका है, लेकिन आने वाले दौर में खुद भाजपा नहीं चाहती कि यह गठबंधन दोबारा किया जाए। इसके लिए भाजपा के कुछ माहिर लोग अलग सोच रखते थे, उनका कहना है कि अकाली दल के साथ गठबंधन करने की बजाय क्यों न अकाली दल को तोड़कर अपने में शामिल कर लिया जाए। इसके लिए भाजपा में इन दिनों पूरी एक्सरसाइज चल रही है ताकि पंजाब की सिख राजनीति में अकाली दल के बाद अपना मजबूत स्थान बनाया जा सके। यही कारण है कि भाजपा अकाली दल में सेंध लगाने में कोई कमी नहीं छोड़ रही।

बड़े धमाकी की तैयारी में 'आप'

यह तो रही भाजपा की बात, लेकिन पंजाब में पिछले कुछ दौर से जिस तरह से आम आदमी पार्टी राजनीतिक तौर पर मजबूत हो रही है, उस स्थिति में उसका भी सिख राजनीति में दखल देना वाजिब है और यह योजना आम आदमी पार्टी बना भी रही है। सूत्रों के हवाले से खबर मिली है कि शिरोमणि अकाली दल की ढीली हो रही पकड़ के कारण सिख संगठन पर काबिज होने के लिए आम आदमी पार्टी में इन दिनों खूब चर्चा हो रही है ताकि पार्टी को सिख राजनीति में मजबूत बनाया जा सके। सूत्र तो यह भी बताते हैं कि आम आदमी पार्टी आने वाले समय में पंजाब की सिख राजनीति में कोई बड़ा धमाका भी कर सकती है। 

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