मेजर ध्यान चंद के ‘सपनों’ को साकार कर रहे हैं हॉकी में ‘ओलिम्पिक’ के गोल्ड विजेता

Edited By swetha,Updated: 29 Aug, 2018 08:28 AM

hockey player

आज देश खेल दिवस मना रहा है। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद का जन्मदिन 29 अगस्त को देश ‘खेल दिवस’ के रूप में मनाता है। ‘खेल दिवस’ मनाने का उद्देश्य खेलों का विकास और खासकर हॉकी का क्रेज युवाओं में पैदा करना है।

अमृतसर(स.ह.): आज देश खेल दिवस मना रहा है। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद का जन्मदिन 29 अगस्त को देश ‘खेल दिवस’ के रूप में मनाता है। ‘खेल दिवस’ मनाने का उद्देश्य खेलों का विकास और खासकर हॉकी का क्रेज युवाओं में पैदा करना है।

आज का युवा खेल को पैसा व शोहरत दोनों को जोड़कर देखने लगा है। यही वजह है कि क्रिकेट की बजाय उस हॉकी को सरकारें भी कम तव्वजो देती रही हैं जिसमें लगातार 3 ओलिम्पिक जीतकर मेजर ध्यान चंद ने सारी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा था। खेल दिवस व उनके जन्मदिन पर ‘पंजाब केसरी’ ने हॉकी के ऐसे दंपति से खास बात की जिनका केवल उद्देश्य ही हॉकी की नई पौध तैयार करना है। 1988 की बात है। कीनिया में जैसे ही ओलिम्पिक मैच में अमृतसर के बलविंद्र सिंह शम्मी ने शानदार जीत के साथ गोल्ड मैडल जीता तो उस जमाने में यह खुशी की खबर घर-घर पहुंची। उस समय सोशल मीडिया का जन्म भारत में नहीं हुआ था, ऐसे में मेजर ध्यान चंद को ‘एक्लव्य’ की तरह गुरु मान कर हॉकी के मैदान में ‘ओलिम्पिक’ के गोल्ड विजेता बलविंद्र सिंह शम्मी ने हॉकी के मैदान को अपनी जिंदगी समर्पित कर दी। 

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खेल से जुड़ें, नशा त्यागें : शम्मी
बलविंद्र सिंह शम्मी देश के युवाओं को हॉकी व अन्य खेलों से जोडऩे की अपील करते हैं और कहते हैं कि पंजाब के युवा खेल से जुड़ें, नशे का त्याग करें, जवानी नशे में बर्बाद न करें। देश के लिए खेलें और अपनी अच्छी सेहत के लिए रोजाना अभ्यास करें। 

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शम्मी के पिता सविंद्र सिंह व मां प्रीतम कौर चाहते थे कि उनका बेटा देश-दुनिया में नाम रोशन करे। 24 सितम्बर 1965 को जन्मे शम्मी का बचपन हॉकी के साथ बीता। परिवार में बड़े भाई हॉकी खेलते थे, ऐसे में बचपन में खिलौनों की बजाय हॉकी से खेला। स्कूल-कालेज में पढ़ाई के साथ हॉकी जारी रखी। जन्म के 20 साल बाद 1985 में बंगलादेश में एशिया कप खेला तो खेल देख दुनिया ने जमकर तालियां बजाईं। 1990 में नई दिल्ली, 1986 में एशिया गेम्स कोरिया, 1986 में आस्ट्रेलिया, 1986 में जूनियर वल्र्ड कप कनाडा, 1990 में विश्व कप, 1988 में कोरिया में ओलिम्पिक, इसी के साथ ही घरेलू, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय हॉकी मैच खेले। भारत की तरफ से बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए कई गोल्ड मैडल भारत को दिलाए। 2004 में महाराजा रंजीत सिंह हॉकी एकैडमी खोली, जिसमें कई ऐसे युवा हैं जोकि भारतीय टीम के लिए खेले हैं। इनमें रमनदीप सिंह व दिलप्रीत सिंह के नाम भी शामिल हैं।

 

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एक-दूसरे के दिल में उतर कर किया मोहब्बत का ‘गोल’
बलविंद्र सिंह शम्मी रेलवे के तरफ से खेलते हैं और पत्नी सुखजीत कौर भी रेलवे की तरफ से खेलती हैं। दोनों की शादी 27 फरवरी 1990 को हुई लेकिन करीब 5 साल पहले से ही दोनों हॉकी के मैदान में एक-दूसरे के दिल में उतर कर मोहब्बत का ‘गोल’ कर चुके थे। मैदान ने खिलाड़ी पत्नी दी तो ऊपर वाले ने 2 संतानें। बेटा हरसाहिब सिंह (24) देश की अलग-अलग यूनिवॢसटियों के लिए बतौर कप्तान हॉकी खेलता है तो बेटी प्रीत कमल का पढ़ाई से प्रीत है और वह विदेश में स्टडी कर रही है। 

‘पंजाब केसरी’ से बातचीत करती हुई रंजीत पुरा (खालसा कालेज के समीप) में रहने वाली सुखजीत कौर कहती हैं कि बचपन से मुझे हॉकी का शौक था। मायका मुदल गांव में था। मैंने मॉल रोड व खालसा कालेज में पढ़ाई की और हॉकी भी खेली। जूनियर वल्र्ड कप 1989 में खेला था। राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय अनगिनत मैचों में प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। मुझे खुशी है कि मेरा जीवन साथी भी मेरी तरह हॉकी का दीवाना है, जिसके मन में 24 घंटे केवल हॉकी का ‘ध्यान’ रहता है। बता दें, हॉकी के इस बेजोड़ दंपति को पंजाब सरकार, केन्द्र सरकार ने कई सम्मानों से नवाजा है। यह दंपति खुद कहता है कि वह हॉकी सम्मान पाने के लिए नहीं बल्कि हॉकी को सम्मान देने के लिए खेलते हैं। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद को देश ने पद्मभूषण से नवाजा, देश का युवा उनकी प्रेरणा से उनके सपनों को साकार करने के लिए हॉकी से जुड़े।

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