पूर्व मंत्रियों सहित पौने दर्जन नेता हाथ पर सवार, चुनावों से पहले BJP के लिए एक बड़ी मुसीबत

Edited By Kamini,Updated: 14 Oct, 2023 08:27 PM

half a dozen leaders including former ministers are on hand

एक ओर यहां राज्य में विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दल चुनावों की तैयारियों में जुट गए हैं वहीं भाजपा को बड़ा झटका लगा है।

पठानकोट (आदित्य): एक ओर यहां राज्य में विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दल चुनावों की तैयारियों में जुट गए हैं वहीं भाजपा को बड़ा झटका लगा है। पूर्व मंत्रियों सहित कांग्रेस व अकाली दल के कई सीनियर नेताओं ने बीजेपी छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया है। इतनी बड़ी संख्या में लोस भाजपा को चुनावों से ऐन पहले हुआ जिसके चलते एक बड़ी मुसीबत के रूप में एक ऐसा सियासी जख्म दे गया है जिसकी उसने संभव: स्वप्र में भी कल्पना नहीं की होगी। वहीं हंस राज जोसन व महिन्द्र रिणवा की शिअद से कांग्रेस में शामूलियत से अकाली दल को भी झटका लगा है।

कांग्रेसी नेताओं की सियासी गुगली से भाजपा को करारा झटका

वहीं दूसरी ओर उक्त सियासी उल्ट-फेर कई समीकरणों को फिर से हवा दे गया है तथा सियासी माहिर इसका आकलन करने में जुट गए हैं। जिने पूर्व मंत्रियों सहित अन्य कद्दावर नेताओं ने फिर से कांग्रेस में वापिसी की है वो मामूली सियासी जमीन वाले न होकर पार्टी के शीर्ष नेता रहे हैं, जिन्होंने लंबी सियासी पारियां राज्य में अपने-अपने जीवन में खेली हैं। हालांकि चुनावों में हार के बाद पार्टी नेताओं का दूसरी पार्टियों में पलायन सामान्य बात मानी जाती है क्योंकि चुनावों में हार मिलने पर हारी हुई पार्टी के बड़े-छोटे नेता अक्सर अपना सियासी भविष्य साधने के लिए अन्य पार्टियों में पलायन करते हैं। ऐन निकाय व आम लोकसभा चुनावों में पूर्व मंत्री राजकुमार वेरका, पूर्व मंत्री बलबीर सिंह सिद्धू, जीत महिन्द्र सिंह सिद्धू, गुरप्रीत कांगड़, कमलजीत सिंह ढिल्लों, करणवीर सिंह ढिल्लों, अमरजीत सिद्वू का कांग्रेस के खेमे में शामिल होना निश्चित रूप से बड़े चुनाव से पहले केन्द्र में तीसरी बार सत्ता में आने के सुनहरी सपने देख रही भाजपा के लिए दिल तोड़ने वाली बात होगी।

भाजपा का टूटा दिल, ‘आप’ की पौ बारह 

वहीं पार्टी के आला नेताओं की घर वापिसी से कांग्रेस नेतृत्व कुछ न कुछ तो सुख व राहत की सांस ले रहा होगा परन्तु राज्य में सत्तारूढ़ 'आप' के लिए यह सियासी उल्टफेर कहीं न कहीं संजीवनी समान ही होगा क्योंकि जिस प्रकार अन्य पार्टियों से टूट-टूटकर बड़े नेता अपने बड़ी संख्या के साथ कमल को थाम रहे थे, उससे भाजपा नेतृत्व खास खुश था तथा इसे अपनी मजबूत होती राज्य में सियासी जमीन के रूप में देख रहा था, परन्तु कांग्रेस के पौने दर्जन नेताओं द्वारा फैंकी गई इस सियासी गुगली से भाजपा निश्चित रूप से चुनावों से पहले चित्त हुई नजर आ रही है। 

वहीं राज्य में सत्तारूढ़ 'आप' की बांछें खिल गई हैं। 'आप' नेतृत्व का मानना है कि जिस प्रकार कांग्रेस व अन्य दलों से टूटकर बड़े नेता भाजपा में अपना भविष्य तलाशने की दिशा में कमल का हाथ थाम रहे थे, परन्तु जिस प्रकार एक साथ कांग्रेस के पौने दर्जन कद्दावर नेता फिर घर वापिसी कर गए हैं, उससे भाजपा को कहीं न कहीं लोस चुनावों से पहले गहरा जख्म मिलता नजर आ रहा है जो अन्य दलों से भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं के काफिले को चुनाव आते-आते और विशाल होने का सपना देख रही थी वो फिलहाल उक्त राजनीति के उल्टफेर से टूटता हुआ नजर आ रहा है चूंकि राज्य में अकेले दम पर सत्ता में आना भाजपा के लिए दिव्य स्वप्र ही रहा है। 

ऐसे में जैसे-जैसे अन्य दलों से नेता भाजपा में शामिल हो रहे थे तो पार्टी नेतृत्व अपना सीना चौड़ा करते हुए इस दिशा में आगे बढ़ रहा था कि इन नेताओं की जमीनी पिच पर खेलते हुए किसी प्रकार आगामी समय में अकेले दम पर विधानसभा चुनाव लड़ते हुए राज्य में अपनी एकल सरकार बनाने का किला स्थापित किया जा सके। वहीं 'आप' इस सियासी घटनाक्रम को किसी न किसी दृष्टिकोण से अपने पक्ष में ही देख रही है, उसका मानना है कि कांग्रेस तो चुनावों के बाद अपनी सियासी जमीन खो ही चुकी है ऐसे में अन्य दलों के नेताओं व वर्करों के दम पर जो भाजपा अपनी सियासी जमीन साध रही थी, उसमें इस घटनाक्रम से कहीं न कहीं बड़ा सियासी गड्डा फिर से आ बनेगा जिसे भरना भाजपा के लिए असान नहीं होगा।

शिअद के लिए सियासी चुटकी, भाजपा के बड़े भाई की भूमिका की अभी भी संभावना बरकार 

दूसरी ओर कांग्रेस में पौने दर्जन नेताओं की शामूलियत सियासी रूप खासी क्षति है परन्तु शिअद को फिर से सियासी पिच पर बैटिंग करने की अस्थाई ही सही स्थिति बना दी है तथा उसके लिए भविष्य में भाजपा के बड़े भाई बने की संभावनाएं अभी भी उपरोक्त स्थिति से बनी हुई है।

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