राज्य में चल रहे हजारों अनधिकृत प्री-नर्सरी, प्ले-वे स्कूलों पर सरकार की नजर

Edited By Sunita sarangal,Updated: 15 Mar, 2020 08:26 AM

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बिना सरकार को सूचना दिए अनधिकृत रूप से चल रहे ये स्कूल

जालंधर(एन.मोहन): राज्य में चल रहे हजारों अनधिकृत स्कूलों पर सरकार की नजर पड़ गई है। ये वे प्राइवेट स्कूल हैं जो राज्य भर में प्ले-वे अथवा प्री-नर्सरी के नाम पर चल रहे हैं। दिलचस्प बात है कि ये स्कूल न तो किसी शिक्षा बोर्ड के अधीन हैं और न ही स्त्री एवं बाल कल्याण विभाग के अधीन। अर्थात ये स्कूल किसी के भी अधीन अथवा निगरानी में नहीं है। स्कूली बच्चों के साथ दुर्घटनाओं और कोरोना वायरस दौरान इन स्कूलों पर सरकार की नजर पड़ी है। 

इस बारे कुछ समय पहले स्त्री एवं बाल कल्याण विभाग और शिक्षा विभाग के मध्य एक बैठक में चर्चा भी हुई थी। स्त्री एवं बाल कल्याण विभाग की मंत्री अरुणा चौधरी ने बताया कि इसे लेकर सरकार शीघ्र ही नीति बनाने की तैयारी में है। पंजाब में कुछ समय पूर्व स्कूली छात्रों के साथ घटी दुर्घटनाओं और कोरोना वायरस के बढ़ रहे खतरों की चर्चा दौरान सरकार की नजर इन प्ले-वे स्कूलों पर पड़ी। हालांकि इन स्कूलों की संख्या को लेकर कोई पुष्ट आंकड़ा तो नहीं है परन्तु पंजाब में महानगरों में इनकी संख्या प्रत्येक महानगर में सैंकड़ों में है जबकि अन्य नगरों, कस्बों और अनेक बड़े गांवों में दर्जन की संख्या तक ये स्कूल हैं। 

पंजाब में सरकारी और गैर-सरकारी कर्मचारियों के परिवारों और व्यापारी वर्ग के परिवारों के 2 लाख से अधिक बच्चे इन प्ले-वे संस्थानों में उठने, बैठने, बोलने, चलने सीखने जाते हैं। इसके अतिरिक्त ऐसे भी अनेक परिवार हैं जो पति-पत्नी, दोनों ही नौकरीपेशा हैं और अपने बच्चों को इन डे-बोर्डिंग संस्थानों में छोड़ कर जाते हैं। 

लुधियाना, जालंधर, अमृतसर, पटियाला में ऐसे संस्थानों की संख्या अधिक
बड़े शहरों लुधियाना, जालंधर, अमृतसर, पटियाला में ऐसे संस्थानों की संख्या अधिक है जो वर्ष का करीब 60,000 रुपए प्रति बच्चा फीस तक लेते हैं और छोटे संस्थान 15-20 हजार रुपए प्रति माह लेते हैं। बच्चों की निगरानी के लिए 2-3, अध्यापकों से कम शिक्षा वाली महिलाएं और दर्जा 4 कर्मचारी लगाए हुए हैं। इनमें से अधिकतर संस्थान ऐसे भी हैं जिनके बड़े स्कूल भी हैं और वे प्ले-वे मार्फत अपने बड़े स्कूलों के लिए छात्रों की संख्या तैयार करते हैं। इस कार्य के लिए अनेक संस्थानों ने गली-मोहल्लों में कमीशन के आधार पर अपने छोटे-छोटे एजैंट भी रखे हुए हैं परन्तु ऐसे संस्थान कहीं से भी पंजीकृत नहीं हैं। 

यह भी कहा जा सकता है कि ऐसे संस्थानों के लिए सरकार ने अभी नियम तय ही नहीं किया कि ये संस्थान शिक्षा बोर्ड के अधीन होंगे अथवा महिला एवं बाल कल्याण विभाग के अधीन होंगे। वैसे प्री-नर्सरी कक्षाओं का कार्य, जिसे आंगनबाड़ी केंद्रों में चलाया जाता है महिला एवं बाल कल्याण विभाग के अधीन आते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे प्ले-वे संस्थान बिना सरकार को सूचना दिए अनधिकृत रूप से चल रहे हैं। इन संस्थानों का ध्यान पिछले दिनों सरकार को आया जिसमें यह चर्चा भी हुई कि अगर ऐसे संस्थानों में कोई घटना घट जाती है तो जवाबदेही किसकी होगी। 

ऐसे संस्थानों का पंजीकरण आवश्यक
शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का इस बारे कहना था कि ऐसे संस्थानों का पंजीकरण आवश्यक है जिससे ऐसे संस्थान सरकार की निगरानी में भी रहेंगे और सरकार को इनके पंजीकरण से वित्तीय फायदा और इनकी फीसों को कंट्रोल करने का अधिकार भी होगा। स्त्री एवं बाल कल्याण विभाग की मंत्री अरुणा चौधरी का कहना था कि ऐसे संस्थान स्त्री एवं बाल कल्याण विभाग के अधीन ही आने बनते हैं, क्योंकि स्कूली शिक्षा प्री-नर्सरी उपरांत ही शुरू होती है। उनका कहना था कि इस बारे शीघ्र बैठक की जाएगी और इसके बारे में फैसला लिया जाएगा।

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