Edited By Vatika,Updated: 22 Dec, 2019 10:41 AM
यदि आप अपने खान-पान, रहन-सहन और स्वास्थ्य के प्रति सचेत नहीं हैं तो यह मानकर चलिए कि आपकी जिंदगी हर कदम पर भयंकर चुनौती का सामना कर रही हैं।
-भारत में औसतन 10 ग्राम नमक प्रतिदिन खा रहे हैं लोग
-मल्टीनेशनल कंपनियों के पैकड और फास्ट फूड नमक की मात्रा ज्यादा
-चीन के बाद मोटापे से ग्रसित बच्चे सबसे ज्यादा भारत में
जालंधर (सूरज ठाकुर): यदि आप अपने खान-पान, रहन-सहन और स्वास्थ्य के प्रति सचेत नहीं हैं तो यह मानकर चलिए कि आपकी जिंदगी हर कदम पर भयंकर चुनौती का सामना कर रही हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देश में जंक फूड का बढ़ता हुआ कल्चर स्वास्थ्य के लिए बहुत ही घातक है। रिकमैंडेड डायटरी अलाउंस (आरडीए) के मुताबिक, एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए प्रतिदिन नमक 5 ग्राम ही खाना चाहिए। सीएसई की लैब रिपोर्ट कहती है कि पैकड फूड खाने से एक आदमी का कोटा एक बार में ही खत्म हो जाता है, क्योंकि कई स्नैक्स में नमक की मात्रा दोगुना से ज्यादा भी पाई गई है। जर्नल ऑफ क्लीनिकल हाइपरटेंशन में छपे एक शोध के मुताबिक भारतीय प्रतिदिन औसतन 10 ग्राम नमक का सेवन कर रहे हैं और इसी वजह से विश्व में 1 करोड़ 65 लाख लोगों की हर साल दिल के रोगों के कारण मौत हो जाती है। यही नहीं जंक फूड देश में मोटापे का भी रिकार्ड तोड़ता जा रहा है। मोटापे से ग्रसित बच्चों की संख्या के मामले भारत विश्व में दूसरे नंबर पर है।
स्वस्थ व्यक्ति के लिए भोजन के मानदंड
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) 2019 में ही जुलाई और अक्टूबर के बीच सीएसई की लैब ने दोबारा 33 भारतीय और मल्टीनेशनल कंपनियों के पैकड और फास्ट फूड की सामग्री की जांच की। हालांकि सात साल पहले किए गए एक शोध के माध्यम से भारतीयों को चेता चुका है कि जंक और पैकड फूड देश पूरे देश के स्वास्थ्य के लिए घातक है क्योंकि इसे बनाने वाली कंपनियां मानकों के मुताबिक उत्पादन नहीं कर रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशें खुद बयान करती है कि प्रत्येक स्वस्थ्य व्यक्ति को एक दिन में पांच ग्राम से ज्यादा नमक नहीं खाना चाहिए। इसके अलावा आरडीए भी इसे मानते हुए यह कहता है कि दिन में व्यक्ति को वसा (फैट) 60 ग्राम, ट्रांस फैट 2.2 ग्राम और 300 ग्राम कार्बोहाइड्रेट भोजन के माध्यम से लेना चहिए। यह मानक एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए रोजाना 2,000 कैलोरी की जरूरत के हिसाब से निर्धारित की गई है।
इस तरह से शरीर में ज्यादा चला जाता है नमक
जंक फूड की बात करें तो एसएसआई के मुताबिक 100 ग्राम के नमकीन, नूडल्स और में चिप्स सोडियम की मात्रा 0.25 ग्राम जबकि 100 ग्राम के सूप और फास्ट फूड के लिए 0.35 ग्राम होनी चाहिए। नमक की मात्रा का जिक्र पहले भी कर चुके हैं कि यह पांच ग्राम ही होनी चाहिए। ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक नोर क्लासिक थिक टोमेटो सूप में 12 गुणा अधिक जबकि हल्दीराम के नट क्रेकर में भी आठ गुणा अधिक नमक पाया गया है। 100 ग्राम के अधिकांश चिप्स और नमकीन में फैट 2 से 6 गुना अधिक पाया गया है जबकि इसके लिए फैट की सीमा 8 ग्राम निर्धारित की गई है। लैब की रिपोर्ट में मैकडोनल्ड्स के बिग स्पाइसी पनीर रैप, सबवे के पनीर टिक्का सैंडविच) और केएफसी हॉट विंग्स के चार पीस में दोगुना से अधिक फैट पाया गया है। लैब रिपोर्ट कहती है कि 35 ग्राम नट क्रैकर्स खाते ही तय सीमा का करीब 35 फीसदी नमक और 26 फीसदी फैट शरीर हज्म कर जाता है। इससे साफ जाहिर है कि जाने-अनजाने में भारतीय नमक की तय मात्रा से दोगुना सेवन करके कई तरह की बीमारियों को दावत दे रहे हैं। इस बीच सीएसई लैब रिपोर्ट पर जवाब देने से कंपनियां कतराती रही हैं।
जंक फूड से बढ़ता मोटापा
देश में अधिकांश बच्चे मोटापे का शिकार होते जा रहे हैं। विश्व में संख्या के हिसाब से भारत बच्चों का मोटापा ढोने वाला दूसरा बड़ा देश है। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के मुताबिक भारत में 1 करोड़ 44 लाख बच्चे मोटापे का शिकार हैं। जबकि पहले नंबर पर इस बीमारी से ग्रसित चीन है जहां पर 1.53 करोड़ बच्चों का मोटापा परेशानी का सबब बना हुआ है। बच्चों पर किया गया यह शोध 195 देशों की 6.80 करोड़ आबादी पर अध्ययन के बाद जुटाया गया है। जंक फूड के चलते कम उम्र में ही बच्चों में मोटापा घातक बीमारियों को दावत देने लगता है। आरडीए की तय सीमा से कई गुना शुगर, अत्यधिक नमक और ट्रांसफैट जंक फूड के जरिए खा रहे हैं।
6 साल में भी लागू नहीं हुए फास्ट फूड नियम
भारत में 6 साल में भी एजेंसियां फास्ट फूड के नियमों को लागू नहीं कर पाई हैं। साल 2013 में भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने विशेषज्ञ कमेटी का गठन किया था। कमेटी ने स्कूलों और उसके आसपास उपलब्ध जंक फूड के संबंध में गाइडलाइन जारी की थी। पैकड फूड पर न्यूट्रिशन लेबलिंग व कैलोरी, शुगर, नमक, सैचुरेटेड फैट के लिए एफओपी लेबलिंग पर जोर दिया था। जिसे लागू ही नहीं किया गया। इसके बाद 2015 में एफएसएसएआई ने पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष डी प्रभाकरण की अगुवाई में 11 सदस्यों की विशेषज्ञ कमेटी का गठन किया। इसे यह रिसर्च करनी थी कि भारत में फैट, नमक और शुगर का कितना उपभोग होता है और इनका स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है। मई 2017 में प्रभाकरण कमेटी ने 2013 में बनी कमेटी की सिफारिशों और गाइडलाइन की वकालत की थी।
कमजोर मसौदा
अप्रैल 2018 में एफएसएसएआई ने फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड (लेबलिंग एवं डिस्ले) रेगुलेशन 2018 जारी किए। अगस्त 2018 में एफएसएसएआई ने एक बार फिर राष्ट्रीय पोषण संस्थान के पूर्व निदेशक बी सेसिकरण की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया। पैनल को एफओपी लेबलिंग से संबंधित उद्योग की चिंताओं को देखते हुए नियमों के मसौदे की समीक्षा करनी थी। पर इसकी सिफारिशों को सार्वजनिक नहीं किया गया। ऐसा कहा जाता है कि जुलाई 2019 में एफएसएसएआई ने एफओपी लेबलिंग के प्रावधानों को कमजोर करके एफएसएस (लेबलिंग एंड डिप्ले) रेगुलेशन, 2019 के मसौदे की अधिसूचना जारी कर दी। इसमें टोटल फैट को सैचुरेटेड फैट, नमक को सोडियम, टोटल शुगर को एडेड शुगर में बदल दिया गया।