‘कोकीन’ से कम नहीं स्मार्टफोन का नशा बच्चें को अपने हाथों से न दें

Edited By somnath,Updated: 17 Jun, 2019 11:07 AM

do not let the children of smartphones

डेढ़-दो साल का बच्चा जब मोबाइल पर उंगलियां चलाता है तो पेरैंट्स बड़े गर्व से कहते हैं कि देखिए हमारा बच्चा मोबाइल पर कितनी बेहतरी से फीचर अपडेट करता है। पर स्मार्टफोन का नशा ‘कोकीन’ जैसा है। एक बार यह नशा लग गया तो बच्चों की जिद के आगे पेरैंट्स बेबस...

जालंधर(सोमनाथ): डेढ़-दो साल का बच्चा जब मोबाइल पर उंगलियां चलाता है तो पेरैंट्स बड़े गर्व से कहते हैं कि देखिए हमारा बच्चा मोबाइल पर कितनी बेहतरी से फीचर अपडेट करता है। पर स्मार्टफोन का नशा ‘कोकीन’ जैसा है। एक बार यह नशा लग गया तो बच्चों की जिद के आगे पेरैंट्स बेबस होकर उन्हें इस नशे की डोज देने को मजबूर हो जाते हैं।  

स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले बच्चे देर से करते हैं बोलना शुरू
शायद इसीलिए दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार बिल गेट्स ने अपने बच्चों को 14 साल की उम्र तक मोबाइल और टैबलेट से दूर रखा। स्टीव जॉब्स खुद एक इंटरव्यू में कहते हैं कि उन्होंने अपने बच्चों को कभी भी आईपॉड या फिर मोबाइल फोन इस्तेमाल नहीं करने दिया। मोबाइल के साइड इफैक्ट्स को लेकर आए शोधों की बात करें तो जो बच्चे किसी भी रूप में स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं, वे दूसरे बच्चों की तुलना में देर से बोलना शुरू करते हैं। 6 माह से 2 साल तक 900 बच्चों पर किए गए सर्वे में यह चौंकाने वाली स्थिति सामने आई है। 

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स्नैपचैट और इंस्टाग्राम पर मैसेज भेजना ड्रग्स के नशे की तरह
लंदन में एक एजुकेशन कांफ्रैंस के दौरान दुनिया की जानी-मानी हार्ले स्ट्रीट क्लीनिक डायरैक्टर मिस मैंडी सैलीगरी ने तो यहां तक कहा कि बच्चों को स्मार्टफोन देना उन्हें 1 ग्राम कोकीन देने के बराबर है। उन्होंने चेताया है कि स्नैपचैट और इंस्टाग्राम पर दोस्तों में मैसेज भेजना युवाओं में ड्रग्स और अल्कोहल जैसे नशे की तरह है। उन्होंने कहा कि वह अक्सर लोगों से कहती हैं कि जब आप अपने बच्चे को टैबलेट या मोबाइल फोन देते हैं तो वास्तव में आप उन्हें एक बोतल शराब या एक ग्राम कोकीन दे रहे होते हैं।

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बच्चों को असंवेदनशील बना रही हैं वीडियो गेम 
एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि स्मार्टफोन पर ज्यादा वक्त बिताने से बच्चों में एंग्जाइटी, डिप्रैशन और अटैचमैंट डिसऑर्डर के साथ ए.डी.डी. और साइकॉसिस जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। मोबाइल पर खतरनाक वीडियो गेम बच्चों को असंवेदनशील बना रही हैं। स्क्रीन पर ज्यादा वक्त गुजारने पर वे लोगों की भावनाओं से रू-ब-रू नहीं हो पाते तो उनमें इम्पथी की कमी हो जाती है। स्मार्टफोन पर वीडियो गेम खेलने वाले बच्चों को लगने लगता है कि हिंसात्मक रवैया अपनाकर वे आसानी से किसी भी समस्या का समाधान कर सकते हैं। मनोचिकित्सकों की मानें तो बच्चे को जब गेम की लत लग जाती है, उसे मैडीकल की भाषा में ऑब्सैशन कहते हैं। पेरैंट्स जब बच्चे को रोकने की कोशिश करते हैं तो वह चाह कर भी नहीं रुक पाता। बचपन में प्यार ज्यादा मिले तो बच्चे को कंडक्ट डिसऑर्डर का खतरा हो जाता है। अगर उसका इलाज न हो तो वह कंडक्ट एंटी-सोशल पर्सनैलिटी बन जाता है। 

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क्या है कंडक्ट डिसऑर्डर 
कंडक्ट डिसऑर्डर कई सारी व्यावहारिक और भावनात्मक समस्याओं का ग्रुप है जो बचपन या किशोरावस्था में शुरू होता है। इस समस्या से ग्रस्त बच्चे कोई रूल्स नहीं मानते। कोई बात मना करने पर अग्रैसिव और डिस्ट्रक्टिव हो जाते हैं। अगर आपके बच्चे को कंडक्ट डिसऑर्डर है तो वह आपको टफ और कॉन्फिडैंट लग सकता है। हालांकि हकीकत में वे इनसिक्योर होते हैं। उन्हें लगता है कि लोग उनके साथ बुरा व्यवहार कर रहे हैं। 

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‘सैक्साइटिंग और पोर्नोग्राफी’ को सामान्य मानने लगे बच्चे

मिस मैंडी सैलीगरी का कहना है कि लंदन में 2 हजार के करीब बच्चों पर किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि बहुत से 13-14 साल के बच्चे स्मार्टफोन पर अश्लील साहित्य और कामुक तस्वीरों के आदान-प्रदान को पूरी तरह से सामान्य मानते हैं। उन्हीं के साथ कांफ्रैंस में संबोधित करते हुए मनोचिकित्सक डा. रिचर्ड ग्राहम ने कहा कि 10 में से 4 बच्चों में स्क्रीन पर टाइम बिताने की लत छुड़ाना बड़ा मुश्किल काम है। उन्होंने बताया कि ब्रॉडकास्टिंग रैगुलेटर्स के अनुसार 3 से 4 साल के बच्चे भी औसतन सप्ताह में 6 घंटे तक इंटरनैट पर समय बिताते हैं।  

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