Edited By swetha,Updated: 10 Jul, 2019 11:01 AM
लोकसभा चुनावों से 3 माह पहले लगी चुनाव आचार संहिता के चलते अन्य राज्यों की भांति पंजाब सरकार भी पूरी तरह से साइलैंट मोड में आ गई थी।
पठानकोट (शारदा): लोकसभा चुनावों से 3 माह पहले लगी चुनाव आचार संहिता के चलते अन्य राज्यों की भांति पंजाब सरकार भी पूरी तरह से साइलैंट मोड में आ गई थी। चुनावों में चाहे कैप्टन सरकार ने सूबे में 13 में से 8 सीटें जीतकर मोदी लहर को ध्वस्त कर दिया परन्तु एकाएक मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह व कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के बीच में नए विभागों के फेरबदल के बाद चल रहा द्वंद्व युद्ध अंतत: आर-पार का रूप धारण कर गया, परन्तु चुनाव सम्पन्न होने के डेढ़ माह बाद भी सरकार साइलैंट मोड में ही चलती रही तथा बहुत सारे फैसले अधर में लटकते चले गए।
सिद्धू प्रकरण को एक साइड कर धड़ाधड़ निर्णय लेने में जुटी पंजाब सरकार
अब सरकार ने सिद्धू प्रकरण को एक साइड पर रखकर धड़ाधड़ निर्णय करने शुरू कर दिए हैं। पंजाब की कांग्रेस सरकार अब एक्शन मोड में आती दिख रही है। इसी का परिणाम है कि 4 नगर सुधार ट्रस्टों के चेयरमैन नियुक्त कर दिए गए हैं। निश्चित रूप से यह निर्णय प्रदेश कांग्रेस प्रभारी व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की सहमति से हुए होंगे। इसमें से कैप्टन-सिद्धू में चल रहे घमासान में अंतिम झटका सिद्धू को अब दे दिया गया है। सिद्धू के धुर घोर विरोधी जिनकी कार्पोरेटर की टिकट सिद्धू दबाव के चलते क्लीयर नहीं हुई थी, उसी दिनेश बस्सी को मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह ने नगर सुधार ट्रस्ट अमृतसर का चेयरमैन नियुक्त कर दिया। इससे उन्होंने सिद्धू के साथ बिगड़े राजनीतिक रिश्तों को पूरी तरह तिलंजलि लगभग दे दी है। सूबा सरकार ने इसके अलावा पूर्व डी.जी.पी. सुरेश अरोड़ा को मुख्य सूचना आयुक्त तैनात किया है। वहीं उनके साथ वरिष्ठ पत्रकार अशीष्ट जौली को सूचना आयुक्त बनाया है।
अन्य शहरों के इम्प्रूवमैंट ट्रस्टों के चेयरमैन बनने के चाहवानों में मची खलबली
अब सरकार ब्लॉक समितियों व जिला परिषदों के चेयरमैन व अन्य पदाधिकारी भी शीघ्र लगाने जा रही है। उपरोक्त नियुक्तियों के बाद अन्य नगर सुधार ट्रस्ट जिसमें पठानकोट, गुरदासपुर, बटाला, होशियारपुर, बङ्क्षठडा, फरीदकोट, फाजिल्का, कपूरथला, मोगा आदि शेष बचे 24 ट्रस्टों के चेयरमैन लगने के चाहवानों में भी खुशी की लहर दौड़ गई है। इससे संभावना प्रकट की जा रही थी कि कहीं सरकार नगर सुधार ट्रस्टों को खत्म करके उनकी स्कीमों को नगर कौंसिल/कार्पोरेशनों में मर्ज ही न कर दे। ऐसा ही मामला कैबिनेट की पहली मीटिंग में आया था परन्तु सिद्धू के विरोध के चलते तब इस स्थिति को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। चाहे इस समय नगर सुधार ट्रस्टों में बहुत बड़ी स्कीमें नहीं चल रहीं, परन्तु राजनीतिक दृष्टि से यह एक अच्छा सुभोभित पद है। जिसे हर कोई सत्तारूढ़ पार्टी का नेता पाना चाहता है।
कैप्टन व उनकी टीम ने सिद्धू को हाशिए पर लाकर किया खड़ा!
डेढ़ महीना बीतने के बाद अब सिद्धू के पास इस्तीफा देने का विकल्प ही बचा है। क्योंकि हाईकमान इस मामले को इतना लंबा खींच गया कि अब इसका कोई पार्टी फोर्म में हल होता नहीं दिख रहा है। अगर कोई व्यक्ति खुद ही बैटिंग-बॉलिंग व फील्डिंग करे तो ऐसे मैच के बिना टीम के क्या परिणाम होंगे इसका आकलन हर कोई कर सकता है। ऐसा ही कुछ सिद्धू के मामले में है। जब वह भाजपा में थे तब भी अपनी टीम नहीं बना पाए। अब कांग्रेस में भी पिछले 2 वर्षों के दौरान उनके पास टीम बनाने का अवसर था, परन्तु इसमें वह भी चूक गए तथा अंतत: कै. अमरेन्द्र व उनकी टीम ने सिद्धू को हाशिए पर ला खड़ा किया।
चेयरमैन नियुक्त करने को लेकर विधायकों से राय लेगा हाईकमान
विधायकों की इच्छा के अनुसार बनेंगे चेयरमैन या हाईकमान बनाएगा संतुलन, को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है। इन नियुक्तियों में विधायकों की राय कितनी मायने रखती है। लोकसभा चुनावों के बाद परिस्थितियां कुछ बदली हैं। मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र के पास अब निर्णय लेने की शक्तियां आगे से बढ़ी हैं। क्योंकि वह अब चुनावों का विश्लेषण करने की स्थिति में हैं। वहीं दूसरी ओर जिस प्रकार से सिद्धू अब अज्ञात वास में चले गए हैं। उसके चलते सरकार की ओर से अब उन्हें (सिद्धू को) दो टूक संदेश है कि या तो वह अपना नया विभाग ज्वाइंन कर लें अन्यथा मंत्रीपद से इस्तीफा दे दें।