Bye-bye 2018:इन मुद्दों ने पंजाब में बटोरी सुर्खियां,मचाया घमासान

Edited By swetha,Updated: 23 Dec, 2018 01:06 PM

bye bye 2018

वर्ष 2018 अपने अंतिम चरण में है। यह अपने साथ कई कड़वी-मीठी यादें छोड़ कर जा रहा है। इस साल कई मुद्दे ऐसे भी थे जिन्होंने लंबे समय तक सुर्खियां बटोरी। आज पंजाब केसरी आपको साल 2018 के मुख्य मद्दों से अवगत करावने जा रहा है, जो अखबारों की मुख्य समाचार के...

जालंधर: वर्ष 2018 अपने अंतिम चरण में है। यह अपने साथ कई कड़वी-मीठी यादें छोड़ कर जा रहा है। इस साल कई मुद्दे ऐसे भी थे जिन्होंने लंबे समय तक सुर्खियां बटोरी। आज पंजाब केसरी आपको साल 2018 के मुख्य मद्दों से अवगत करावने जा रहा है, जो अखबारों की मुख्य समाचार के साथ-साथ पूरा साल चर्चा का विषय भी बने रहे। 

पूर्व जस्टिस रणजीत सिंह कमीशन रिपोर्ट 

मतदान से पहले बेअदबी मामले की जांच का वायदा करके सत्ता में आई कांग्रेस ने सबसे पहले बेअदबी और बहिबल कलां गोली कांड की जांच के लिए पूर्व जस्टिस रणजीत सिंह कमीशन का गठन किया।  इस कमीशन ने 2018 में सबसे अधिक सुर्खिायां बटोरी। कमीशन ने बाप-बेटे पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल को तलब किया। बादलों ने जांच को राजनीति प्रेरित बताते हुए इसमें शामिल होने से इंकार कर दिया गया था। बाद में कमीशन ने बहिबल कलां कांड में प्रकाश सिंह बादल का सीधे तौर पर नाम लेते हुए, डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम की माफी और श्री अकाल तख्त साहिब का भी जिक्र किया। इसी का नतीजा था कि बादलों को श्री अकाल तख्त साहिब में नतमस्तक होकर भूलें बख्शानी पड़ीं। 

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कैबिनेट मंत्री नवजोत सिद्धू 

पंजाब कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू 2018 की राजनीति में पूरी तरह छाया रहे। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण से लेकर करतारपुर कॉरीडोर के नींव पत्थर समारोह तक सिद्धू अखबारों की सुर्खियां बने रहे। इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में पाक सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा को गले लगाने पर सिद्धू विरोधियों के साथ-साथ साथी मंत्रियों के निशाने पर रहे। बाद में सिद्धू ने सफाई देते हुए कहा था कि बाजवा ने उनको करतारपुर कॉरीडोर खोले जाने संबंधी जानकारी दी थी। इसी कारण उन्होंने उनको गले लगा लिया।  सिद्धू की यह कोशिश व्यर्थ नहीं गई। पाक सरकार ने पहल करते हुए करतारपुर रास्ता खोले जाने का बयान दिया। जिसके बाद भारत सरकार ने बाजी मारते हुए पहले ही रास्ते का नींव पत्थर रख दिया। वहीं पाक सरकार ने रास्ते के नींव पत्थर समारोह में शिरकत करने के लिए सिद्धू को फिर न्यौता भेजा। सिद्धू की इस फेरी ने भी एक अन्य विवाद को खड़ा कर दिया। यह विवाद वहां से कैप्टन अमरेद्र सिंह के लिए लाए काले तीतर ने पैदा किया। दशहरे वाली शाम हुए भयानक रेल हादसे में भी सिद्धू दम्पति विवादों में घिरा रहा। जिस समारोह में यह हादसा घटा वहां नवजोत सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर बतौर चीफ गेस्ट उपस्थित थी। साल की अंत में 5 राज्यों में हुए विधानसभा मतदान में भी सिद्धू छाए रहे।  

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आप में से निकाले गए सुखपाल खैहरा 

तेज तर्रार नेता के तौर पर जाने जाते सुखपाल खैहरा भी इस वर्ष काफी सुर्खियों में रहे। पूर्व कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह खिलाफ आवाज उठाने वाले खैहरा को डा. बलबीर सिंह के साथ चल रही खींचातानी का खमियाजा भुगतना पड़ा। पहले पार्टी हाईकमान ने विरोधी पक्ष के पद से उनकी छुट्टी करके हरपाल चीमा को इसकी जिम्मेदारी सौंपी।  फैसले को तानाशाही बताते हुए 8 विधायक खैहरा के समर्थन में आ गए। इस कारण पार्टी 2 गुटों में बंट गई। इस दरमियान पंजाब की कोट समिति ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते खैहरा और कंवर संधू को पार्टी से निलंबित कर दिया। फिलहाल इस समय खैहरा की तरफ से अलग मोर्चा चलाकर तीसरे फ्रंट के यत्न किए जा रहे हैं।

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पंथक रंग: बरगाड़ी मोर्चा 

बेअदबी, बहिबल कलां गोली कांड और सजाएं पूरी होने के बावजूद अलग-अलग जेलों में बंद सिख कैदियों की रिहाई के लिए समानांतर जत्थेदार भाई ध्यान सिंह मंड के नेतृत्व में बरगाड़ी में मोर्चा लगाया गया। गर्मपंथियों की तरफ से लगाए गए इस मोर्चे ने जहां बादल परिवार को भगदड़ में डाल रखा।  वहीं पंजाब सरकार के लिए भी कई मुश्किलें पैदा की। लगभग 6 माह चले इस मोर्चे ने राज्य की राजनीति और बहुत प्रभाव डाला।  इसी का नतीजा था कि आप सहित अलग-अलग पार्टियों के नेता समय-समय पर इस मोर्चे में हाजिरी लगवाते रहे। 9 दिसंबर को पंजाब सरकार के भरोसे के बाद ध्यान सिंह मंड की तरफ से मोर्चा उठाने का ऐलान किया गया। वहीं इस फैसले ने पंथक नेताओं में दरार डाल दी और भाई दादूवाल ने खुले तौर पर इस फैसले का विरोध किया।

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 डी. जी. पी. विवाद 

इस वर्ष पंजाब पुलिस के चोटी के अधिकारी भी  सुर्खियों में रहे। हाईकोर्ट के आदेशों और नशों सम्बन्धित जांच कर रही एस.आई.टी. का नेतृत्व कर रहे डी.जी.पी. रैक के अधिकारी सिद्धार्थ चटोपाध्याय ने पंजाब के डी. जी. पी. सुरेश अरोड़ा और डी. जी. पी. (इंटेलिजेंस) दिनकर गुप्ता को नशों के कारोबार के मामले में कटघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने अपनी दस पन्नों की अर्जी में दावा किया था कि नशों को लेकर की जा रही जांच में पंजाब के इन 2 चोटी के पुलिस अफसरों की दखल अंदाजी बढ़ रही है।  इस 3 सदस्यीय एस.आई.टी. टीम को  हाई कोर्ट ने सेवामुक्त इंस्पेक्टर इन्द्रजीत सिंह और मोगा के एस.एस.पी. राज जीत सिंह के संबंधों की जांच का काम सौंपा था। इसी  जांच में अरोड़ा और गुप्ता की भूमिका सामने आई थी।

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ज्ञानी गुरबचन सिंह की छुट्टी 

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को लेकर  श्री अकाल तख्त साहिब की तरफ से माफी देने के मामले में ज्ञानी गुरबचन सिंह का 2018 का सफर काफी विवादपूर्ण रहा। यह विवाद उस समय पर और भी बढ़ गया जब विधानसभा में जस्टिस रणजीत सिंह कमीशन की रिपोर्ट पेश की गई। इस रिपोर्ट ने ज्ञानी गुरबचन सिंह की साख को काफी नुकसान पहुंचाया। जिसके बाद ज्ञानी गुरबचन सिंह की छुट्टी करके ज्ञानी हरप्रीत सिंह को श्री अकाल तख्त साहिब का कार्यकारी जत्थेदार नियुक्त किया गया। 

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गुरपतवंत सिंह पन्नू

सिख फार जस्टिस का कानूनी सलाहकार और गर्मख्याली गुरपतवंत सिंह पन्नू भी 2018 में काफी चर्चा में रहा। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह की तरफ से समय-समय पर पन्नूं और आई. एस.आई. पर पंजाब का माहौल ख़राब करन के आरोप भी लगाए गए। सूत्रों मुताबिक पंजाब सरकार द्वारा पन्नू विरुद्ध रैड्ड कार्नर नोटिस जारी करवाने के लिए सी. बी. आई. से विनती की गई है। उसके साथ ही कुछ दूसरे व्यक्तियों विरुद्ध मोहाली में केस भी दर्ज हैं। पंजाब पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों ने इस साल सितम्बर में भारत सरकार के पास पन्नू के ट्विटर अकाऊंट को लेकर रोश प्रकट किया गया था। इस कारण केंद्र ने उसके ट्विटर खाते को बंद करवा दिया था।

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 एस.आई. टी. सामने पेश हुए बादल 
यह पहली बार था जब प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल को एस.आई.टी. के सामने पेश होकर अपना पक्ष रखना पड़ा। जस्टिस रणजीत सिंह कमीशन की जांच के बाद बनी एस.आई.टी. ने बादलों सहित बालीवुड अभिनेता अक्षय कुमार को सम्मन करके तलब किया। फिलहाल एस.आई. टी. की जांच जारी है।

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 नए अकाली दल टकसाली का गठन 

जस्टिस रणजीत सिंह कमीशन की रिपोर्ट और विधानसभा में चर्चा के बाद अकाली दल का बाहर से ही विरोध नहीं हुआ बल्कि पार्टी के अंदर भी घमासान छिड़ गया। इस मामले में अकाली दल की पहली विकेट टकसाली नेता सुखदेव सिंह ढींडसा के रूप में गिरी। इसके बाद टकसाली नेता रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, सेवा सिंह सेखवां और डा. रत्न सिंह अजनाला ने भी खुल कर विरोध जताया। लिहाजा पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते हाईकमान ने सेखवां को पार्टी में से बाहर का रास्ता दिखा दिया। रोष के तौर पर ब्रह्मपुरा ने खुद ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया। सुखबीर और मजीठिया के नेतृत्व से दुखी टकसालियों ने नए अकाली दल टकसाली का गठन किया । 

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