Edited By Vatika,Updated: 27 Aug, 2018 12:29 PM
पंजाब में ग्राऊंड वाटर (भूमिगत पानी) 1200 फीट तक नीचे जा चुका है। पानी के गहराते संकट को देखते हुए विश्व बैंक ने पंजाब सरकार से इस संबंधी रिपोर्ट मांगी है। विश्व बैंक ने कहा कि ग्राऊंड वाटर को बचाने के लिए पंजाब सरकार उनके समक्ष रिपोर्ट पेश करे, फिर...
लुधियाना(नितिन धीमान): पंजाब में ग्राऊंड वाटर (भूमिगत पानी) 1200 फीट तक नीचे जा चुका है। पानी के गहराते संकट को देखते हुए विश्व बैंक ने पंजाब सरकार से इस संबंधी रिपोर्ट मांगी है। विश्व बैंक ने कहा कि ग्राऊंड वाटर को बचाने के लिए पंजाब सरकार उनके समक्ष रिपोर्ट पेश करे, फिर वह आधुनिक तकनीक के लिए फंडिंग कर सकते हैं लेकिन सरकार का पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (पी.पी.सी.बी.) ग्राऊंड वाटर के गिरते स्तर को लेकर गंभीर नहीं है।
डाइंग इंडस्ट्री में पानी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। यही पानी दोबारा से इस्तेमाल में लाया जा सके इसके लिए जीरो लिक्वेड डिस्चार्ज (जैड.एल.डी.) तकनीक को लगाना ही सबसे बेहतर उपाय है लेकिन डाइंग इंडस्ट्री पिछले 10 सालों से महंगी तकनीक होने का बहाना बनाकर बुड्ढे नाले को प्रदूषित करती आ रही है और ग्राऊंड वाटर नीचे जाने के अलावा जहरीला भी होता जा रहा है। अब पी.पी.सी.बी. के उच्चाधिकारियों ने भी कहना शुरू कर दिया है कि वे पहले चरण में डाइंग इंडस्ट्री से बोर्ड के पैरामीटर के मुताबिक कॉमन एफुलैंट ट्रीटमैंट प्लांट लगवाएंगे फिर देखेंगे कि जैड.एल.डी. तकनीक की जरूरत है या नहीं। लेकिन यहां बता दें कि पी.पी.सी.बी. के अधिकारी भूल गए हैं कि उन्होंने खुद पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में एफीडेविट देकर कहा था कि डाइंगों का ट्रीटेड या अनट्रीटेड पानी बुड्ढे नाले में गिरने नहीं दिया जाएगा।
वर्ष 2008 में पी. राम कमेटी ने कोर्ट को रिपोर्ट दी थी कि गिरते ग्राऊंड वाटर को बचाने के लिए डाइंग इंडस्ट्री में जैड.एल.डी. लगाया जाए। पंजाब के तत्कालीन चीफ सैक्रेटरी रमेश इंद्र सिंह ने भी कोर्ट में कहा था कि पी.पी.सी.बी. डाइंग इंडस्ट्री में जैड.एल.डी. तकनीक लगवा रही है। आज 10 साल बाद फिर से पी.पी.सी.बी. कहने लगा है कि अभी जैड.एल.डी. तकनीक की जरूरत नहीं जबकि पंजाब में ग्राऊंड वाटर का स्तर दिन-प्रतिदिन नीचे गिरता जा रहा है। अगर यही हालात रहे तो पंजाब में पीने के पानी के लिए लोग तरसेंगे। शायद पी.पी.सी.बी. के अधिकारी भूल गए हैं कि वे भी पंजाब में ही रहते हैं और इस समस्या की चपेट में उनके परिवार भी आएंगे।
त्रिपुर में 20 जैड.एल.डी. तकनीक के साथ लगे हैं CETP
मद्रास हाईकोर्ट ने डाइंग इंडस्ट्री की ओर से बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए तमिलनाडु पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को वर्ष 2005 में हिदायतें दी थीं कि डाइंग इंडस्ट्री में जैड.एल.डी. तकनीक का इस्तेमाल हो। इस ऑर्डर के बाद से 450 डाइंग यूनिटों ने मिलकर त्रिपुर में 20 जैड.एल.डी. आधारित सी.ई.टी.पी. लगाए जो एक जैड.एल.डी. का सबसे अच्छा उदाहरण है। इन प्रोजैक्ट्स को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के आधार पर प्राइवेट कम्पनी तमिलनाडु वाटर इंवैस्टमैंट कम्पनी लिमिटेड के साथ मिलकर लगाया गया। इनके लगने के बाद से वहां के ग्राऊंड वाटर को काफी हद तक बचाया जा चुका है। राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के बाद वहां भी जैड.एल.डी. तकनीक आधारित सी.ई.टी.पी. लग चुके हैं।
जैड.एल.डी. से क्या होगा फायदा
डाइंग इंडस्ट्री में पानी का ज्यादा इस्तेमाल होता है। यदि कुल पानी की मात्रा को फिर से ट्रीट कर दोबारा इस्तेमाल में लाया जाए तो बार-बार जमीन से पानी निकालने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जैड.एल.डी. तकनीक 90 प्रतिशत तक पानी को दोबारा इस्तेमाल करने लायक बना देती है। बाकी का 10 फीसदी पानी वैपोरेट होने के कारण उड़ जाता है। इससे पानी की बचत तो होगी ही साथ ही डाइंग में इस्तेमाल होने वाले नमक का भी 90 प्रतिशत तक दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। लुधियाना में डाइंग इंडस्ट्री जैड.एल.डी. लगा ले तो बुड्ढे नाले की काफी सारी समस्याएं हल हो जाएंगी।
आर्थिक तौर पर कमजोर पाकिस्तान व बंगलादेश में भी जैड.एल.डी.
भारत आर्थिक तौर पर मजबूत देश है और इसके कारोबारी अधिक धन कमाने के चक्कर में लोगों की जान से खिलवाड़ करने से बाज नहीं आ रहे। इंडस्ट्रीयल पॉल्यूशन प्रीवैंशन ग्रुप सैंटर फॉर एन्वायरनमैंट एजुकेशन अहमदाबाद ने 2016 में अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि पाकिस्तान व बंगलादेश जैसे देशों में टैक्सटाइल और डाइंग इंडस्ट्री ने जैड.एल.डी. तकनीक को अपनाया हुआ है। इसके अलावा वियतनाम और चीन भी जैड.एल.डी. तकनीक को लगाने में पीछे नहीं हैं। हां, वहां की सरकारों ने कारोबारियों की आर्थिक मदद जरूर की लेकिन कारोबारी खुद अपने देश की खातिर और ग्राऊंड वाटर को बचाने के लिए जैड.एल.डी. तकनीक लगाने में आगे बढ़कर सरकार से मदद की गुहार लगा रहे थे।
इलैक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्री के सी.ई.टी.पी. में लगा है जैड.एल.डी.
इलैक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्री के लिए फोकल प्वाइंट में लगे सी.ई.टी.पी. में जैड.एल.डी. तकनीक है। इसका पानी पिछले कई सालों से दोबारा इस्तेमाल करने लायक तैयार हो रहा है। प्लांट की ऑप्रेटर कम्पनी जे.बी.आर. के मुताबिक फोकल प्वाइंट के आसपास की कई डाइंगें उनसे ट्रीट किया हुआ पानी लेकर जाती हैं। अब सवाल है कि यदि यह प्लांट सफल हो सकता है तो पी.पी.सी.बी. के अधिकारियों को डाइंगों के लिए जैड.एल.डी. तकनीक लगवाने में क्या दिक्कत है।
केंद्र व रा’य सरकार को करनी चाहिए आर्थिक मदद
सी.ई.टी.पी. में जैड.एल.डी. तकनीक लगे इसके लिए केंद्र व रा’य सरकार को खुलकर आर्थिक मदद करनी चाहिए। यह सही है कि डाइंग कारोबारी अपने स्तर पर निजी जैड.एल.डी. तकनीक नहीं लगा सकते लेकिन कॉमन एफुलैंट ट्रीटमैंट प्लांट में जैड.एल.डी. तकनीक को लगाया जा सकता है। जहां तक पी.पी.सी.बी. की बात है वह दूसरे चरण में जैड.एल.डी. लगवाने की जो योजना बना रहा है उससे सी.ई.टी.पी. की लागत काफी बढ़ जाएगी। पहले चरण में ही जैड.एल.डी. तकनीक लगनी चाहिए।
पंजाब में किया विरोध, मध्य प्रदेश में लगाई जैड.एल.डी. तकनीक
लुधियाना के एक बड़े टैक्सटाइल घराने ने बादल सरकार के समय जैड.एल.डी. तकनीक का जमकर विरोध किया था कि इससे कास्ट ऑफ प्रोडक्शन बढ़ जाएगी लेकिन जब इस घराने को मध्य प्रदेश सरकार ने अपने वहां प्लांट लगाने के लिए लुभावनी योजनाएं दीं तो पैसा कमाने के लिए इस घराने ने सबसे पहले मध्य प्रदेश सरकार की बात को मानते हुए जैड.एल.डी. तकनीक लगाई।
प्रदूषण के खिलाफ इस तरह जुड़ें मुहिम से
पंजाब केसरी द्वारा प्रदूषण के खिलाफ शुरू की गई मुहिम से सैंकड़ों लोग जुड़ रहे हैं। इस मुहिम से जुडऩे व सुझाव देने के लिए support@punjabkesari.in पर सम्पर्क करें।