निगम व ट्रस्ट कार्यालयों में करोड़ों का घोटाला,नवजोत सिद्धू एक्शन में

Edited By Anjna,Updated: 03 May, 2018 09:09 AM

bank scam exposed

शहर के बचत भवन में बुधवार को आयोजित पत्रकार वार्ता में स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की उपस्थिति में थर्ड पार्टी फॉरैंसिक ऑडिट अर्थात इंडीपैंडैंट रिव्यू एडं फॉरैंसिक ऑडिट (आई.एफ.आर.ए.) ने निगम एवं ट्रस्ट कार्यालयों में पिछले करीब 10 से 11...

अमृतसर (महेन्द्र, कमल): शहर के बचत भवन में बुधवार को आयोजित पत्रकार वार्ता में स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की उपस्थिति में थर्ड पार्टी फॉरैंसिक ऑडिट अर्थात इंडीपैंडैंट रिव्यू एडं फॉरैंसिक ऑडिट (आई.एफ.आर.ए.) ने निगम एवं ट्रस्ट कार्यालयों में पिछले करीब 10 से 11 वर्षों से लगातार हो रहे करोड़ों के घोटालों का पर्दाफाश किया। इस अवसर पर सिद्धू ने कहा कि निगम कार्यालय हो या नगर सुधार ट्रस्ट कार्यालय किसी को भी 3 से ज्यादा बैंक खाते खुलवाने की अनुमति नहीं है लेकिन हैरत की बात है कि इनके असंख्य बैंक खाते खुलवाए हुए हैं।

उन्होंने कहा कि स्थानीय ट्रस्ट कार्यालय के 71 तथा निगम कार्यालय के 51 बैंक खातों का पता चल चुका है जिनमें एफ.डी.आर. वाले खाते शामिल नहीं हैं। इनके अलावा और कितने खाते हो सकते हैं इसका अभी कोई अनुमान ही नहीं है। निगम व ट्रस्ट कार्यालयों के हिसाब-किताब की सूची तथा बैंक खातों की सूची आपस में मेल ही नहीं खा रही है। इसमें भी अनियमितताएं सामने आ रही हैं।

एडवांस ली गई 7.41 करोड़ की राशि का कोई हिसाब नहीं
सिद्धू ने बताया कि निगम कार्यालय के प्रोविडैंट फंड के खातों में भी बड़े पैमाने पर हुए घपले का पर्दाफाश हो चुका है। इसकी अब तक हुई जांच में 1.21 करोड़ रुपए के हुए गबन की पुष्टि हो चुकी है। जांच में ये बातें भी सामने आई हैं कि फर्जी नामों पर खाते खुलवा कर फर्जी भुगतान किए गए थे। उन्होंने बताया कि ऑडिट में यह बात भी सामने आई है कि निगम अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा एडवांस में जो फंड की वसूली की जाती रही है वह करीब 7.41 करोड़ रुपए की राशि बनती है। एडवांस फंड लेने वाले कई कर्मचारी एवं अधिकारी सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं जिनमें कई ऐसे भी हैं, जिन्होंने वर्ष 1970 से भी पहले पैसे लिए थे, लेकिन इस बड़ी राशि का भी कोई हिसाब नहीं दिखाई दे रहा। 

यूनिपोल का करोड़ों का घोटाला : 200 की जगह लगाए 217
सिद्धू ने बताया कि सरकार की पॉलिसी के तहत शहर में ई-टैंडरिंग के जरिए ए, बी, सी, डी तथा ई कैटागरी में 50-50 यूनिपोलों की नीलामी करवाई जानी थी जिनमें ई कैटागरी की नीलामी नहीं हुई थी और अन्य चारों कैटेगरी के कुल 200 यूनिपोल लगाए जाने थे, जबकि 217 यूनिपोल पाए गए हैं। इन फालतू लगाए गए 17 यूनिपोलों की औसतन आय के हिसाब से अढ़ाई वर्ष में करीब 1.31 करोड़ रुपए का घपला किया गया है जबकि बाकी के 200 यूनिपोलों को लेकर ब्राइट न्यून साइन लिमिटेड के जिम्मे 68,87,581 रुपए तथा क्रिएटिव डिजाइन के जिम्मे 61,82,987 रुपए की बकाया राशि निकलती है। इसकी रिकवरी करने का प्रयास ही नहीं किया गया। सिद्धू ने बताया कि अढ़ाई वर्ष के कार्यकाल के दौरान विज्ञापन के मामले में 6.5 करोड़ रुपए की बकाया राशि अलग से है, उसकी भी रिकवरी करने का प्रयास नहीं किया गया।

सवाल का जवाब दिए बिना चलते बने सिद्धू
पत्रकार वार्ता के दौरान जब सिद्धू को यह बताया गया कि उनके द्वारा जो पिछले 10 वर्ष के कार्यकाल में ऑडिट करवाने की बात कही जा रही है, यह कार्यकाल अकाली-भाजपा गठबंधन का रहा है। इसलिए 10 वर्ष पहले अर्थात वर्ष 2007 से पहले जब पंजाब में कांग्रेस पार्टी का शासन था, क्या उस दौरान निगम एवं ट्रस्ट कार्यालय में सब कुछ सही चल रहा था? क्या उस दौरान इस तरह का कोई घोटाला नहीं हुआ था? उन्होंने आखिर अकाली-भाजपा गठबंधन के शासनकाल के 10 वर्ष की अवधि ही क्यों चुनी है और इससे पहले की अवधि का ऑडिट क्यों नहीं करवाया जा रहा? तो सिद्धू ने इसका कोई जवाब नहीं दिया और वहां से चले गए।

करोड़ों के घोटालों का कारण सिंगल एंट्री अकाऊंटिंग सिस्टम
सिद्धू ने कहा कि फॉरैंसिक ऑडिट टीम द्वारा अप्रैल 2007 से 31 मार्च 2017 तक के रिकार्ड के ऑडिट के दौरान पहली नजर में ही कई प्रकार के घोटाले सामने आए हैं। इन कार्यालयों में अपनाए जा रहे सिंगल एंट्री अकाऊंटिंग सिस्टम की वजह से ही ये बड़े-बड़े घोटाले होते चले आ रहे हैं जबकि पूरी पारदर्शिता से काम करने के लिए डबल एंट्री सिस्टम अपनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार इस संबंध में वर्ष 2013 में डबल एंट्री सिस्टम लागू भी कर चुकी है। बावजूद इसके इन कार्यालयों में अभी भी सिंगल एंट्री अकाऊंटिंग सिस्टम अपनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यूरोप 15वीं सदी से डबल एंट्री अकाऊंटिंग सिस्टम शुरू कर चुका है। 

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