Jalandhar नगर निगम के 4 बैंक खाते सीज, कर्मचारियों की सैलरी पर छाया संकट

Edited By Kamini,Updated: 28 Feb, 2024 05:20 PM

4 bank accounts of jalandhar municipal corporation seized

गौरतलब है कि स्थानीय अदालत के आदेशों पर जालंधर नगर निगम के सभी बैंक खातों को सीज कर दिया गया है।

जालंधर (खुराना): पिछले लंबे समय से जालंधर नगर निगम की कार्यप्रणाली सही ढंग से नहीं चल रही और ऐसे प्रतीत होता है जैसे जालंधर निगम को किसी की बुरी नजर लगी हुई हो। आम आदमी पार्टी की सरकार आए 2 साल के करीब समय हो चुका है। इस सरकार ने जालंधर निगम की कार्यप्रणाली को सुधारने के कई प्रयास किए और इसे चलाने के लिए ढूंढ-ढूंढ कर अफसर भी लगाए परंतु फिर भी जालंधर निगम को चलाने में सरकार को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

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2 साल के भीतर आधा दर्जन निगम कमिश्नर बदले जा चुके हैं और 7वें नगर निगम कमिश्नर के रूप में तैनात आई.ए.एस. अधिकारी गौतम जैन के समक्ष भी चुनौतियां कम होने का नाम नहीं ले रहीं। अब नए निगम कमिश्नर के सामने एक अजीब समस्या खड़ी हो गई है। गौरतलब है कि स्थानीय अदालत के आदेशों पर जालंधर नगर निगम के सभी बैंक खातों को सीज कर दिया गया है। इन बैंक खातों में जहां स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का जालंधर निगम का मेन अकाऊंट शामिल है, वहीं पी.एन.बी. का भी एक अकाऊंट ऐसा है जहां से निगम कर्मचारियों को हर महीने सैलरी दी जाती है।

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नगर निगम एच.डी.एफ.सी. के जिस बैंक खाते से ऑनलाइन प्रॉपर्टी टैक्स वसूलता है, उसे भी सीज किया जा चुका है जिस कारण अभी आनलाइन प्रॉपर्टी टैक्स जमा नहीं हो पा रहा। एच.डी.एफ.सी. का ही एक अन्य बैंक खाता भी इस समय सीज है। इन चारों बैंक खातों से नगर निगम कोई ट्रांजैक्शन नहीं कर पाएगा। पता चला है कि पिछले दिनों स्थानीय अदालत के प्रतिनिधियों ने इन सभी बैंकों में जाकर संबंधित अधिकारियों को अदालती आदेश की प्रतियां सौंप दी हैं और बैंक खातों में ट्रांजैक्शन इत्यादि पर प्रतिबंध कड़ाई से लागू हो गया है। माना जा रहा है कि पंजाब नेशनल बैंक के खाते सीज हो जाने से नगर निगम अब अपने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को समय पर सैलरी नहीं दे पाएगा और इसमें कुछ विलंब अवश्य होगा। सूत्रों की माने तो निगम के इन सभी बैंक खाते में करीब 6 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम पड़ी हुई है।

स्वीपिंग मशीन चलाने वाली लायंस कंपनी जीत चुकी है आर्बिट्रेशन का केस-

जब पंजाब में अकाली भाजपा का शासन था तब तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने जालंधर शहर में मैकेनिकल स्वीपिंग की शुरुआत की थी और उस सरकार के अंतिम समय दौरान लायंस सर्विसेज को स्वीपिंग मशीन चलाने का कॉन्ट्रैक्ट अलाट कर दिया गया था। अकाली भाजपा सरकार चली जाने के बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई तो इस स्वीपिंग मशीन कॉन्ट्रैक्ट को घोटाला बताकर उसे रद्द कर दिया गया। लंबे समय तक जालंधर निगम ने जब संबंधित कंपनी को पेमैंट नहीं दी तो करीब 3 करोड़ 90 लाख रुपए लेने के लिए कंपनी आर्बिट्रेशन में चली गई।

कुछ समय पहले इस आर्बिट्रेशन का फैसला लायंस सर्विसिज के हक में आया और जालंधर निगम को ब्याज इत्यादि मिलाकर 5 करोड़ 52 लाख रुपए देने के आदेश सुनाए गए। पता चला है कि जालंधर निगम ने इस बाबत उच्च न्यायालय में अपील भी दायर कर रखी है जहां से निगम को अभी स्टे इत्यादि नहीं मिला। इसी बीच कंपनी ने निचली अदालत तक पहुंच करके जालंधर निगम के बैंक खातों को फ्रीज करवा दिया है। अदालत में अब इस केस की अगली सुनवाई एक मार्च को होनी है। बैंक खातों को लेकर आई नई समस्या के चलते निगम कमिश्नर गौतम जैन ने आज संबंधित अधिकारियों और वकीलों इत्यादि के साथ एक बैठक करके मामले का हल निकालने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। पता चला है कि निगम आने वाले दिनों में अदालत तक पहुंच करके बैंक खाते खुलवाने का प्रयास करेगा ताकि निगम का सामान्य कामकाज प्रभावित न हो। निगम यह तर्क रख सकता है कि कंपनी को देय राशि एक अलग बैंक खाते में रखी जा सकती है। अब देखना है कि निगम इस समस्या का हल कैसे निकालता है।

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जब चैक वापस आने लगे तब जाकर अफसरों को पता चला-

नगर निगम के लॉ विभाग के कर्मचारियों की लापरवाही के कारण निगम के उच्च अफसरों को आर्बिट्रेशन तथा निचली अदालत के फैसले का समय पर पता नहीं चल पाया। सूत्र बताते हैं कि जब जालंधर नगर निगम द्वारा काटे गए कई चैक बैंक द्वारा लौटा दिए गए, तब अकाऊंट्स विभाग के अधिकारियों ने बैंक जाकर पता किया जिस दौरान सामने आया कि अदालती आदेशों पर जालंधर निगम के चार बैंक खातों को फ्रीज किया जा चुका है।

जिंदल कंपनी भी जीत चुकी है 204 करोड़ का आर्बिट्रेशन केस-

पिछले साल जनवरी के मध्य में एक अन्य आर्बिट्रेशन पैनल ने फैसला दिया था कि जालंधर नगर निगम जिंदल ग्रुप की कंपनी जे.आई.टी.एफ. को 204 करोड़ रुपए का हर्जाना अदा करे पर उसके बाद चंडीगढ़ कोर्ट ने इस फ़ैसले पर स्टे आर्डर जारी कर दिया था जिससे जालंधर निगम को कुछ राहत मिली हुई है पर इस मामले में भी फैसला आना अभी बाकी है। गौरतलब है कि 2017 में जिंदल कंपनी ने आर्बिट्रेशन का सहारा लेते हुए जालंधर निगम पर 962 करोड़ का दावा ठोक दिया था। कुछ ही समय बाद जालंधर निगम ने भी उसी तर्ज पर 1778 करोड़ रुपए का क्लेम जिंदल कंपनी की ओर निकाल दिया।

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पी.सी.पी. कंपनी ने भी ठोक रखा है 22 करोड़ का दावा-

अकाली भाजपा सरकार के कार्यकाल दौरान जालंधर नगर निगम ने शहर की तमाम पुरानी स्ट्रीट लाइटों को बदलकर नई एल.ई.डी स्ट्रीट लाईटें लगाने का एक प्रोजेक्ट तैयार किया था जो 274 करोड रुपए का था । उस प्रोजेक्ट के तहत पीसीपी इंटरनेशनल कंपनी ने केवल 5500 के करीब नई स्ट्रीट लाइटें ही लगाई थीं कि उस समय के कांग्रेसी पार्षद रोहन सहगल ने इस प्रोजैक्ट में हुई घपलेबाजी के सबूत देने शुरू कर दिए और तत्कालीन लोकल बॉडीज मंत्री नवजोत सिद्धू की मदद से इस प्रोजैक्ट को रद्द करवा दिया। प्रोजैक्ट रद्द करने के बाद कंपनी ने सीधे अदालत का रुख कर लिया और पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में जालंधर निगम पर 22 करोड़ रूपए के हर्जाने का दावा ठोक दिया ।

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गौरतलब है कि आज से कई साल पहले जब इस प्रोजैक्ट को औपचारिक रूप से रद्द कर दिया गया था तब कंपनी ने अदालत में पहुंच करके 8.9 करोड़ का दावा ठोका था। अब कंपनी के प्रतिनिधियों ने ब्याज और अन्य राशियों को मिलाकर कुल 22 करोड़ रुपए की मांग जालंधर निगम से की हुई है। कंपनी का तर्क है कि प्रोजैक्ट रद्द किए जाने से जहां उसे काफी आर्थिक नुकसान सहन करना पड़ा है वही निगम प्रशासन ने 2 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी भी वापस नहीं की जिसका ब्याज कंपनी को देना पड़ा।

इसके अलावा प्रोजैक्ट की अर्नेस्ट मनी के रूप में लिए गए 80 लाख रुपए भी नहीं लौटाए गए। गौरतलब है कि पी.सी.पी. इंटरनैशनल और जालंधर निगम के बीच उपजे विवाद को लेकर पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने रिटायर्ड जस्टिस जितेंद्र चौहान को आर्बिट्रेटर नियुक्त कर रखा है।

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