5 करोड़ की पब्लिशिंग का काम अब यूनिवर्सिटी प्रैस में होगा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Feb, 2018 12:13 PM

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खराब आर्थिक हालातों से जूझ रही पंजाबी यूनिवॢसटी में करीब 5 करोड़ रुपए की पिं्रटिंग का काम अब पिं्रटिंग प्रैस में ही होगा। अभी तक प्रैस में जो फोर कलर मशीनें हैं, वे बूढ़ी हो चुकी हैं और उन पर कोई काम भी नहीं हो पा रहा था।

पटियाला(प्रतिभा): खराब आर्थिक हालातों से जूझ रही पंजाबी यूनिवॢसटी में करीब 5 करोड़ रुपए की पिं्रटिंग का काम अब पिं्रटिंग प्रैस में ही होगा। अभी तक प्रैस में जो फोर कलर मशीनें हैं, वे बूढ़ी हो चुकी हैं और उन पर कोई काम भी नहीं हो पा रहा था।

अब यूनिवर्सिटी ने 2 नई मशीनें प्रैस के लिए खरीदी हैं। खास बात है कि यह काम पब्लिकेशन ब्यूरो एंड प्रैस के डायरैक्टर की कोशिश से हुआ है क्योंकि उन्होंने अपने लेवल पर ये मशीनें यूनिवॢसटी को डोनेट करवाई हैं। 11 लाख 20 हजार रुपए की इन 2 मशीनों से अब प्रिंटिंग का 5 करोड़ रुपए के करीब काम कैंपस में ही होगा। इसके अलावा यूनिवर्सिटी के आय के साधन बढ़ाने के लिए भी कोशिशें जारी हैं। उसमें भी जल्द सफलता मिलने की उम्मीद है।

प्रैस की मशीनें पुरानी होने की वजह से नहीं हो पा रहा था काम
गौरतलब है कि यूनिवर्सिटी की स्थापना के साथ ही 1965 में यूनिवर्सिटी प्रैस स्थापित की गई थी। इतने साल पुरानी प्रैस में पब्लिशिंग का काम हो रहा था। इसके बाद मशीनें पुरानी हो गईं और उन पर काम होना बंद हो गया। इन मशीनों को बदलने या फिर नई मशीनें लगवाने के लिए किसी के दिमाग में कोई विचार नहीं आया जिसके चलते काम आऊट सोर्स से होने लग गया। हर साल 4-5 करोड़ रुपए का काम यूनिवर्सिटी बाहर से करवा रही थी। इसके चलते इतना पैसा हर साल यूनिवर्सिटी का बाहरी संसाधनों को जा रहा था लेकिन इन मशीनों के आने से अब यह पैसा बचेगा। जो खर्च पेपर और स्याही का होगा, वही लगेगा बाकी सारा काम अब प्रैस में ही किया जाएगा।

अब एक घंटे में छपेंगे 6 हजार पेज
इन 2 मशीनों के आने पर एक घंटे में 6 हजार पेज छप सकेंगे। इसमें डिस्टैंस एजुकेशन विभाग को काफी फायदा होने वाला है। क्योंकि हर साल स्टूडैंट्स को यही दिक्कत रहती थी कि उन्हें नोट्स समय पर नहीं मिलते हैं लेकिन अब डिस्टैंस एजुकेशन विभाग के नोट्स 10 दिन में तैयार हो जाएंगे। 

कौन-कौन से काम बाहर से करवाए जा रहे थे
जानकारी के मुताबिक यूनिवर्सिटी के पब्लिशिंग के 2.50 करोड़ रुपए के करीब काम बाहर से करवाए जा रहे थे। इसमें यूनिवॢसटी से संबंधित उत्तर पुस्तिकाएं भी शामिल हैं। इन पुस्तिकाओं को छपवाने के लिए हर साल यूनिवर्सिटी को अढ़ाई करोड़ रुपए चुकाने पड़ रहे थे। इसके अलावा डिस्टैंस एजुकेशन डिपार्टमैंट के हर साल छपने वाले नोट्स हैं जिन पर करीब 7 लाख रुपए खर्च आता है। इसके अतिरिक्त पब्लिकेशन ब्यूरो की जो किताबें छपवानी पड़ रही थीं, उन पर 40 लाख रुपए के करीब खर्च आ रहा था। यानी कुल 4 करोड़ रुपए के करीब खर्च ऐसा है जोकि हर साल आऊट सोॄसग से यूनिवर्सिटी करवा रही थी। 

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