2050 में  देश की आबादी होगी 1.66 अरब, बूंद-बूंद पानी के लिए छिड़ सकती है जंग

Edited By Suraj Thakur,Updated: 04 Jul, 2019 05:45 PM

water crisis in india will be high in 2050

सेंट्रल वाटर कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक 2050 तक पशुधन और इंसानों की खाद्य पदार्थों की मांग सालाना 250 मिलियन टन से 375 मिलियन टन होने का अनुमान है।

जालंधर। (सूरज ठाकुर) आने वाले कुछ सालों में देश में भूजल संकट इस कदर गहरा जाएगा कि पानी की बूंद-बूंद के लिए लोग एक दूसरे की जान के दुश्मन हो सकते हैं। ऐसे में सियासत में राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों का कोई महत्व ही नहीं रह जाएगा। देश के भीतर जंग होगी तो पानी के लिए। सुर्खियों में रोजाना इस मुद्दे पर सियासी दलों की अनदेखी और आम जनता की पानी के संकट के प्रति बेरूखी देश को ऐसी गर्त में धकेल देगी जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। सेंट्रल वाटर कमीशन (सीडब्ल्यूसी) की नवंबर 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश की जनसंख्या 2050 तक 1 अरब 66 करोड़ होने का अनुमान है। अब आप सहजता से अंदाजा लगा सकते हैं कि प्राकृतिक की गोद में संकट से गुजरते हुए हमारे जल के भंडार इतनी अबादी की खपत को कैसे पूरा करेंगे। इस मामले में केंद्र सरकार और प्रशासन दोनों ही कई दशकों से गंभीर नहीं हैं, जिसके चलते अब हालात बेकाबू हो रहे हैं। PunjabKesari

375 मिलियन टन भोजन की मांग से बढ़ेगी पानी की खपत
अब आपको बताते हैं कि जनसंख्या वृद्धि से 2050 तक देश को किन हालात का सामना करना पड़ेगा। देश में बढ़ती हुई आबादी के साथ वार्षिक खाद्य आवश्यकता की मांग बड़े स्तर तक पहुंच जाएगी। 2025 और 2050 की अवधि के दौरान प्रतिव्यक्ति आय में 5.5 वार्षिक वृद्धि होने का भी अनुमान है। सीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट के मुताबिक 2050 तक पशुधन और इंसानों की खाद्य पदार्थों की मांग सालाना 250 मिलियन टन से बढ़कर 375 मिलियन टन होने का अनुमान है। अगर पशुधन की पानी की आवश्यकता की बात करें तो यह मांग 2000 में 2.3 बिलियन क्यूबिक मीटर से 2025 तक 2.8 और 2050 तक 3.2 बिलियन क्यूबिक मीटर हो जाएगी। पानी के घरेलू उपयोग की बात करें तो 2000 में 42 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी से देश की आवश्यकता पूरी हो रही थी। 2025 में यह मांग बढ़कर 73 बिलियन क्यूबिक मीटर हो जाएगी। 2050 तक घरेलू उपयोग के लिए 102 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की आवश्कता पड़ेगी।PunjabKesari 

2 करोड़ से ज्यादा ट्यूब वैल और लापरवाही
देश में दो करोड़ से अधिक ट्यूब वैल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इन कुओं में से भूजल का दोहन जरूरत से ज्यादा मात्रा में किया जा रहा है। इसका मुख्य कारण यह भी है कि किसानों को पानी के दोहन के लिए मुफ्त बिजली प्रदान की जाती है। लापरवाही के कारण पानी का दोहन बहुत ही अधिक मात्रा में हो रहा है। एक अनुमान के मुताबिक कृषि क्षेत्र में ट्यूब वैल से निकाला जाने वाला पानी के कारण हर साल भूजल स्तर 3 से चार फुट नीचे गिरता जा रहा है। भारत में कानून के तहत भूमि के मालिक को जल का भी मालिकाना हक है, लेकिन विडंबना यह है कि जितना जल भूमि में समाता है, उससे कही ज्यादा जल में निकाल रहे हैं। गलत नीतियों के कारण शुद्ध जल भी प्रदूषित होता जा रहा है। जल का दोबारा इस्तेमाल और भूजल की रिचार्जिंग पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जिसके लिए शासन और प्रशासन दोनों की दोषी हैं।PunjabKesari

घट रहा है पेयजल, बढ़ रही है आबादी
भारत सरकार की "पत्रिका योजना" के मुताबिक जल संकट का एकमात्र कारण यह नहीं है कि वर्षा की मात्रा निरंतर कम होती जा रही है। इजराइल जैसे देशों में जहां वर्षा का औसत 25 सेमी से भी कम है, वहा भी जीवन चल रहा है। वहां जल की एक बूंद व्यर्थ नहीं जाती। जल प्रबंधन तकनीक अति विकसित होकर जल की कमी का आभास नहीं होने देती। हमारे देश की औसत वर्षा 1170 मिमी है जो विश्व के समृद्धशाली भाग पश्चिमी अमेरिका की औसत वर्षा से 6 गुना ज्यादा है। भारत में 15 प्रतिशत जल का उपयोग होता है, शेष जल बहकर समुद्र में चला जाता है। जल की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। प्रति व्यक्ति मीठे जल की उपलब्धि जो 1994 में 6000 घन मीटर थी, घटकर 2000 में मात्र 2300 घन मीटर रह गई है। जनसंख्या की वृद्धि दर और जल की बढ़ती खपत को देखते हुए यह आंकड़ा 2025 तक मात्र 1600 घन मीटर हो जाने का अनुमान है। PunjabKesari

5 फीसदी जल संरक्षण भी साबित हो सकता है वरदान
एक आंकड़े के मुताबिक यदि हम अपने देश के जमीनी क्षेत्रफल में से मात्र 5 प्रतिशत में ही गिरने वाले वर्षा के जल का संग्रहण कर सके तो एक बिलियन लोगों को 100 लीटर पानी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन मिल सकता है। गौरतलब है कि प्रथम विश्‍व युद्ध और द्वतीय विश्‍व युद्ध दोनों ही ऊर्जा यानी तेल के भंडार के लिए हुए। जिन देशों मे भी युद्ध मे हिस्‍सा लिया उन्‍हें ऊर्जा की जरूरत थी। 1990 मे जग गल्‍फ वॉर शुरु हुआ तब बहुत सारे देशों ने यह साफ कर दिया कि उनकी लड़ाई तेल के लिए है। हमारे देश में ही नहीं अपितु विश्व के सभी देशों को इस समस्या के लिए आगे आने की आवश्यकता है। अगर विश्व में जल संकट गहराने लगेगा तो पानी के लिए जंग की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

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