Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Sep, 2017 12:24 PM
राम रहीम को लेकर पंजाब-हरियाणा में पहले ही काफी बवाल मच चुका है। इसके बाद अाज फिर फैसले की घड़ी है। मामला है सतलुज यमुना लिंक के विवाद। सुप्रीम कोर्ट आज सतलुज यमुना लिंक के विवाद पर सुनवाई करेगा।
नई दिल्लीः राम रहीम को लेकर पंजाब-हरियाणा में पहले ही काफी बवाल मच चुका है। इसके बाद सतलुज यमुना लिंक के विवाद पर दोनों राज्यों पर तलवार लटक रही है। सुप्रीम कोर्ट ने सतलुज यमुना लिंक विवाद पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को 6 सप्ताह का समय दिया है। मामले की अगली सुनवाई 8 नवंबर को होगी। अाज की सुनवाई के दौरान केंद्र ने कोर्ट से समय मांगा था। केंद्र ने कहा समाधान निकलने में अभी वक्त लगेगा। इसके बाद हरियाणा व पंजाब सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मामले को लेकर कोई धरना प्रदर्शन नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि आदेश का पालन करना पंजाब और हरियाणा सरकार का दायित्व है।
क्या है मामला
पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के अन्तर्गत 1 नवंबर 1966 को हरियाणा अलग राज्य बना लेकिन उत्तराधिकारी राज्यों (पंजाब व हरियाणा) के बीच पानी का बंटवारा नहीं हुआ। विवाद खत्म करने के लिए केंद्र ने अधिसूचना जारी कर हरियाणा को 3.5 एम.ए.एफ. पानी आबंटित कर दिया। इसी पानी को लाने के लिए 212 किमी लंबी एस.वाई.एल. नहर बनाने का निर्णय हुआ था। हरियाणा ने अपने हिस्से की 91 किमी नहर का निर्माण वर्षो पूर्व पूरा कर दिया था, लेकिन पंजाब में अब तक विवाद चला आ रहा है।
प्रमुख घटनाक्रम: कब क्या हुआ
19 सितंबर 1960: भारत व पाकिस्तान के बीच विभाजन पूर्व रावी व ब्यास के अतिरिक्त पानी को 1955 के अनुबंध द्वारा आबंटित किया गया। पंजाब को 7.20 एम.ए.एफ. (पेप्सू के लिए 1.30 एमएएफ सहित), राजस्थान को 8.00 एम.ए.एफ. व जम्मू-कश्मीर को 0.65 एम.ए.एफ. पानी आवंटित किया गया था।
24 मार्च 1976: केंद्र ने अधिसूचना जारी करके पहली बार हरियाणा के लिए 3.5 एम.ए.एफ. पानी की मात्रा तय की।
13 दिसंबर 1981: नया अनुबंध हुआ। पंजाब को 4.22, हरियाणा को 3.50, राजस्थान को 8.60, दिल्ली को 0.20 एमएएफ व जम्मू-कश्मीर के लिए 0.65 एमएएफ पानी की मात्रा तय की गई।
8 अप्रैल 1982: इंदिरा गांधी ने पटियाला के कपूरी गांव के पास नहर खुदाई के काम का उद्घघाटन किया। विरोध के कारण पंजाब के हालात बिगड़ गए।
24 जुलाई 1985: राजीव-लौंगोवाल समझौता हुआ। पंजाब ने नहर बनाने की सहमति दी।
वर्ष 1996: समझौता सिरे नहीं चढ़ने पर हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
15 जनवरी 2002: सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को एक वर्ष में एसवाईएल बनाने का निर्देश दिया।
4 जून 2004:सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पंजाब की याचिका खारिज हुई।
2004: पंजाब ने पंजाब टर्मिनेशन आफ एग्रीमेंट एक्ट-2004 बनाकर तमाम जल समझौते रद कर दिए। संघीय ढांचे की अवधारण पर चोट पहुंचने का डर देखकर राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से रेफरेंस मांगा। 12 वर्ष ठंडे बस्ते में रहा।
20 अक्टूबर 2015:मनोहर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ गठित करने का अनुरोध किया।
26 फरवरी 2016:इस अनुरोध पर गठित पांच जजों की पीठ ने पहली सुनवाई की। सभी पक्षों को बुलाया।
8 मार्च 2016: 8 मार्च को दूसरी सुनवाई। अब भी मामला सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के पास है। लेकिन पंजाब सरकार बिना कानून के डर के जमीन लौटाने का एलान कर चुकी है। अब यह नया मामला भी सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है।