पंजाब: अमरिंदर और सिद्धू की जंग में जाखड़ की लगी लॉटरी

Edited By Tania pathak,Updated: 18 Sep, 2021 06:17 PM

punjab jakhar s lottery in amarinder and sidhu s battle

मजबूरी में किया गया पुण्य भी बड़ा फल देता है। सुनील झाखड़ इसका बड़ा उदाहरण हैं। अमरिंदर सिंह और सिद्धू की लड़ाई ने पहली बलि उनकी ही ली थी। तब वे मजबूर थे। अमरिंदर को वे हमेशा खटकते रहते थे। ऐसे में सिद्धू ने जब कैप्टन की मशकें कसनी शुरू कीं तो यह तय...

चंडीगढ़ (संजीव शर्मा): मजबूरी में किया गया पुण्य भी बड़ा फल देता है। सुनील झाखड़ इसका बड़ा उदाहरण हैं। अमरिंदर सिंह और सिद्धू की लड़ाई ने पहली बलि उनकी ही ली थी। तब वे मजबूर थे। अमरिंदर को वे हमेशा खटकते रहते थे। ऐसे में सिद्धू ने जब कैप्टन की मशकें कसनी शुरू कीं तो यह तय था कि सिद्धू एकदम से सीएम तो बनने से रहे। सुनील झाखड़ ने इसे भांप लिया और अमरिंदर को जमीन सुंघाने की गरज से उन्होंने सिद्धू का साथ देना तय किया।  

उन्होंने एक सोची समझी रणनीति के तहत पंजाब कांग्रेस के प्रधान पद से इस्तीफ़ा दे दिया। वह अब तक के सबसे लम्बे समय तक लोकसभा का अध्यक्ष रहे। बलराम जाखड़ के छोटे बेटे का एक बहुत बड़ा दांव था, जिसे  झाखड़ ने बड़ी शांति से अंजाम दिया। सिद्धू जल्दबाज हैं और उन्होंने पार्टी अध्यक्ष के पद को ही बड़ी उपलब्धि मान लिया। उलटे उनपर सुनील जाखड़ का एहसान भी हो गया कि उन्होंने सिद्धू के लिए पद छोड़ा और जगह बनाई। लेकिन अंदर की बात यह है कि राहुल गांधी के साथ मिलकर पंजाब में अपने लिए उससे भी बड़ी जगह बना रहे थे। 

सिद्धू ने पार्टी संभालने के बाद अमरिंदर के खिलाफ खुला विद्रोह कर दिया। अधिकांश विधायक अपनी तरफ किए और अब जब आखिरी हमले में अब कैप्टन बेदखल होकर जा रहे हैं तो जाखड़ मुख्यमंत्री पद के सशक्त दावेदार बनकर उभरे हैं। अगर वे मुख्यमंत्री  बनते हैं तो  यह बरसों बाद होगा कि कांग्रेस का पंजाब में सीएम हिन्दू होगा। हालांकि इसमें एक अहम नज़र इस बात पर रखनी होगी कि केंद्र सरकार क्या रुख अपनाती है। क्योंकि अब तक हिन्दू वोट बैंक पर वो अपना एकाधिकार समझती रही है। ऐसे में कांग्रेस का जाखड़ को सीएम बनाना उसके वोट बैंक मे सीधी सेंध होगी।  सिख वोटर के लिए  उसके पास सिद्धू हैं  ही जिसे वो बीजेपी से ही छीन कर लाई है। ऐसे में कांग्रेस का रायता अगर जरा भी फैला और कैप्टन ने पलटवार किया तो राष्ट्रपति शासन का विकल्प भी केंद्र के पास है। 

लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तो जाखड़ की तो लाटरी लग गयी।  सिद्धू हालांकि इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि चुनाव पश्चात नई सरकार का नेतृत्व वही करेंगे, लेकिन यह तो भविष्य का मामला है। कैप्टन भी चुप नहीं बैठेंगे। शाह पहले ही मिल चुके हैं। ऐसे में नड्डा हार और दोरंगी पट्टा लेकर आते ही होंगे।    पता चले कांग्रेस रिपीट नहीं हुई तो सिद्धू जीतकर भी हार जाएंगे जबकि सुनील जाखड़ पूर्व मुख्यमंत्री के तौर पर हमेशा मौजूद होंगे। और फिर कल का नाम  तो काल है भये सो जानिए तब।  

जाखड़ ने tweet  में डाली राहुल के लिए चाशनी 
अमरिंदर का इस्तीफा होगा यह बात कन्फर्म होते ही सुनील झाखड़ ने tweet किया, जिसमें  उन्होंने कहा  कि राहुल गांधी ने जिस तरह गोर्डियन नॉट का एलेक्जेंडर सोल्युशन  निकाला है, वह सराहनीय है।  पंजाब कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में इससे उत्साह है। इस ट्वीट में जो दो मुहावरे इस्तेमाल हुए हैं वे उच्चकोटि के अंग्रेजी मुहावरे हैं और पंजाब कांग्रेस में शायद सिद्धू की भी अंग्रेजी इतनी श्रेष्ठ नहीं है। यह सीधे-सीधे गांधी परिवार के लिए अबोहर की चीनी मिल की चाशनी है। गांधी परिवार को सोफेस्टिकेटेड अंग्रेजी बोलने वाले ज्यादा प्रिय हैं खासकर मैडम सोनिया गांधी को।  

क्या है गोर्डियन नॉट और अलेक्जेंडर सोल्युशन 
अपने ट्वीट में सुनील झाखड़ ने जिस गोर्डियन नॉट और अलेक्जेंडर सलूशन का जिक्र किया है वह भी बड़ा दिलचस्प है। इनका संबंधी तुर्की के फ्रीगिया शासन से है जिसकी राजधानी गोर्डियन शहर हुआ करती थी। वहां के एक शासक ने शहर के मुख्य मंदिर के बाहर भेंटस्वरूप एक गाडी चढ़ाई थी। उस गाड़ी को मंदिर के स्तम्भ से ऐसे बांधा गया था कि कोई चोर उसे खोल ही ना सके। उसे ही गोर्डियन गांठ कहा गया है। कालांतर में जब यह साम्राज्य तबाह हुआ तो धार्मिक मठाधीशों ने भविष्यवाणी कि के जो कोई भी इस गांठ को खोलेगा वही इस शहर/ साम्राज्य का मालिक होगा। बाद में अपने विश्व विजय अभियान के तहत जब सिकंदर वहाँ पहुंचा तो लोगों ने कहा की लड़ाई की जरूरत नहीं है आप बस उस गांठ को खोल दें जिसे गोर्डियन गाँठ कहा जाता है। सिकंदर को मालूम था के वह गांठ अब तक किसी से नहीं खोली, इसलिए उसने अपनी तलवार निकाली  और  गोर्डियन नॉट की जंजीर को बीचों बीच से अलग कर दिया।  इसे अलेक्जेंडर सोल्युशन कहा गया। पंजाब कांग्रेस में भी ऐसा ही था।  मतभेदों की गाँठ इतनी उलझ गयी थी कि  गोर्डियन नॉट बन गयी थी। हाईकमान ने उसे  खोलने में असमर्थ रहने के बाद अंतत: काटने का फैसला किया।

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