जेल से सत्ता का खेल, क्या इस बार भी जेल में बंद नेताओं को हासिल होगी जीत?

Edited By Sunita sarangal,Updated: 25 Jan, 2022 12:04 PM

power game from jail

कोरोना की वजह से चुनावी रैलियों और रोड शो पर प्रतिबंध है। चुनाव आयोग भी डोर-टू-डोर या फिर डिजीटल प्रचार करने के लिए राजनीतिक दलों व.......

चंडीगढ़ (रमनजीत सिंह) : कोरोना की वजह से चुनावी रैलियों और रोड शो पर प्रतिबंध है। चुनाव आयोग भी डोर-टू-डोर या फिर डिजीटल प्रचार करने के लिए राजनीतिक दलों व प्रत्याशियों को प्रोत्साहित कर रहा है। हालांकि कई राजनीतिक पार्टियां व राजनेता इस तरीके से मतदाताओं तक पहुंच बनाने को मुश्किल बता रहे हैं, लेकिन पंजाब ने ऐसा दौर भी देखा है जब बिना प्रत्याशी के चुनाव प्रचार हुए और वे जीते भी। ऐसा चुनाव प्रचार 1989 के लोकसभा चुनावों के दौरान हो चुका है और खास बात यह है कि प्रत्याशियों ने जबरदस्त जीत भी दर्ज की थी। 

कांग्रेस ने पंजाब के भुलत्थ विधानसभा क्षेत्र से सुखपाल सिंह खैहरा को प्रत्याशी बनाया है और कांग्रेस के प्रत्याशियों की सूची घोषित होने के साथ ही सवाल होने लगे थे कि खैहरा मौजूदा समय में जेल में बंद हैं तो चुनावी रण में वह कैसे होंगे। साथी कांग्रेसियों और भुलत्थ से टिकट के दावेदारों ने भी सवाल उठाए। अभी हाल ही में कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह द्वारा भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर कहा गया है कि मनी लॉड्रिंग के मामले में जेल में बंद चल रहे सुखपाल सिंह खैहरा को कांग्रेस प्रत्याशी बनाने से कांग्रेस की साख धूमिल हो रही है इसलिए न सिर्फ उनकी टिकट काटी जाए, बल्कि पार्टी से भी बाहर निकाला जाए।

बेटे के हाथ प्रचार की कमान
खैहरा मौजूदा समय में जेल में बंद हैं और उनके चुनाव प्रचार की कमान उनके बेटे महताब सिंह खैहरा संभाल रहे हैं, लेकिन जेल में रहकर चुनाव लड़ने वाले सुखपाल सिंह खैहरा पहले राजनेता नहीं हैं। न सिर्फ देश के विभिन्न राज्यों में, बल्कि पंजाब के चुनावी इतिहास में भी ऐसी उदाहरण मौजूद हैं, जहां जेल में बैठकर चुनाव लड़े गए।

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अब तक नहीं टूटा सिमरनजीत सिंह मान का रिकॉर्ड
शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के प्रधान सिमरनजीत सिंह मान इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण हैं कि यदि जनता मन बना ले तो भले ही प्रत्याशी उनके बीच प्रचार के लिए न पहुंचे, जीत हासिल हो सकती है। 1984 के ब्लू स्टार ऑप्रेशन के रोष स्वरूप अपनी आई.पी.एस. की नौकरी छोड़ने वाले सिरमनजीत सिंह मान को इस्तीफे के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था और जेल में रखा गया था। सिमरनजीत सिंह मान द्वारा शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) का गठन किया गया और जेल के अंदर से ही 1989 के लोकसभा चुनाव के लिए के तरनतारन सीट से नामांकन दाखिल किया था। उनके साथ राज्य की अन्य सीटों पर भी शिअद (अमृतसर) द्वारा प्रत्याशी उतारे गए थे। चुनाव का नतीजा आया तो सिमरनजीत सिंह मान को 5,27,207 वोट मिले जोकि कुल पड़े मतों का लगभग 94 फीसदी बनता था। जीत-हार का अंतर भी तकरीबन साढ़े चार लाख वोट का रहा था और यह रिकॉर्ड अब तक टूट नहीं पाया है।

तो सरकार ने अतिंदरपाल को भी किया था दोषमुक्त
जेल से ही चुनाव लड़ने व जीतने की एक अन्य मिसाल अतिंदरपाल सिंह हैं। दिल्ली में हुए सीरियल बम धमाकों के मामले में आरोपी बनाए गए अतिंदर पाल सिंह भी 1989 में ही पटियाला लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे और जेल में बैठे-बैठे ही जीत भी दर्ज की थी। अतिंदरपाल सिंह हालांकि आजाद प्रत्याशी के तौर पर लड़े थे,  लेकिन सिमरनजीत सिंह मान द्वारा अपने कैंडीडेट को अतिंदर पाल सिंह के पक्ष में बैठा दिया गया था। अतिंदरपाल सिंह को 2,94,172 मत हासिल हुए थे जोकि कुल पड़े मतों का 46.59 फीसद था। दोनों को ही बाद में जनादेश का सम्मान करते हुए भारत सरकार द्वारा दोषमुक्त करके रिहा कर दिया गया था।

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वोट नहीं डाल सकते
यह भी नियम है कि किसी भी मामले में जेल में बंद होने के वक्त कोई भी भारतीय नागरिक अपने मताधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकता। जनप्रतिनिधि एक्ट की धारा 62 के तहत यह प्रावधान है कि किसी भी मामले में सजायाफ्ता या विचाराधीन कैदी या कोई ऐसा व्यक्ति जिसे किसी मामले में गिरफ्तार किया गया हो या फिर प्रोडक्शन वारंट पर हो, को वोट डालने का अधिकार नहीं है। हालांकि इसी धारा को आधार बनाकर कई मामले देश की विभिन्न अदालतों व सुप्रीम कोर्ट तक में चले कि राजनेताओं को जेल में बंद होने के वक्त चुनाव लड़ने से वंचित किया जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा संविधान व जनप्रतिनिधि एक्ट का हवाला देते हुए स्पष्ट कर दिया गया था कि जेल के अंदर रहते हुए चुनाव लड़ने से किसी को वंचित नहीं रखा जा सकता।

उत्तर प्रदेश और बिहार में बाहुबली लड़ते रहे हैं जेल के भीतर से चुनाव
भले ही पंजाब की राजनीति के लिए यह अपवाद जैसा रहा हो, लेकिन उत्तर प्रदेश व बिहार राज्यों के राजनेताओं के लिए यह कोई नया चलन नहीं रहा है। उक्त दोनों राज्यों की राजनीतिक बिसात पर ऐसे कई मोहरे दिखाई पड़ जाते हैं, जिन्होंने विभिन्न आपराधिक मामलों के लिए जेलों में होते हुए भी न सिर्फ चुनाव लड़े बल्कि जीत भी दर्ज की। इनमें उत्तर प्रदेश के मऊ से चुनाव लड़ने व जीतने मुख्तार अंसारी, कुंडा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतने वाले रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैय्या, रायबरेली से अखिलेश सिंह, गोरखपुर से हरि तिवारी और बिहार के मोकामा चुनाव क्षेत्र से अनंत सिंह व सूरजभान सिंह के नाम शामिल हैं।

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