अधिकांश प्रवासी मजदूर नहीं लौटेंगे वापिस, बोले समृद्धि पंजाब में मिली, संकट की घड़ी में साथ हैं

Edited By Suraj Thakur,Updated: 04 May, 2020 08:57 PM

most migrant laborers do not want to go back

बिहार व उत्तर प्रदेश से आए अधिकतर कामगारों का कहना है कि वहां उनकी जन्मभूमि जरूर रही लेकिन कर्मभूमि पंजाब है।

होशियारपुर, (अमरेन्द्र मिश्रा): देश के अन्य हिस्सों की ही तरह पंजाब में भी लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के घर वापसी की कवायद जारी है। जानकारी के अनुसार पंजाब में लाखों प्रवासियों ने रजिस्ट्रेशन कराया है, जिसमें ज्यादातर मजदूर हैं। इन सब के बीच हैरानी वाली बात यह है कि घर वापसी को लेकर पंजाब के अन्य हिस्सों के विपरीत होशियारपुर के मजदूरों में घर वापसी में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिख रहा है। पूछने पर बिहार व उत्तर प्रदेश से आए अधिकतर कामगारों का कहना है कि वहां उनकी जन्मभूमि जरूर रही लेकिन कर्मभूमि पंजाब है। संकट के इस घड़ी में हम घबराते नहीं हैं अत: वह पंजाब से ऐसे दौर में नहीं जाएंगे। लॉकडाउन के दौरान बिहार व उत्तर प्रदेश के राजनेता जिस तरह रोज रोज घर वापसी करने वाले मजदूरों को बिना टिकट घर तक भेजने व साथ में 1000 रुपए देने की घोषणा कर रहे हैं उससे पंजाब में रह रहे मजदूरों में बेचैनी देखी जा रही है।

कोरोनावायरस को अस्थाई समस्या मानते हैं मजदूर
बिहार में चुनाव सामने देख राजनेताओं की तरफ से मदद लोक लुभावन वादे किए जा रहे हैं। ऐसे में रोजी-रोटी की तलाश में पंजाब आए छोटे तबके के मजदूरों में घबराहट पैदा हो गई है। कुछ तो वापस घर जाना चाहते हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों का मानना है कि यह समस्या तो अस्थायी है। कर्फ्यू व लॉकडाउन खुलने के बाद पंजाब में सब ठीक हो जाएगा। घर नहीं लौटने की मूल वजह है गांव में क्वारंटाइन होना
होशियारपुर में बिहार व यू.पी. के रहने वाले बहुसंख्यक मजदूरों का कहना है कि यदि हम यहां से गांव गए तो रास्ते में 3 दिन लगेंगे वहीं गांव पहुंचते ही गांव के बाहर 14 दिनों के लिए हमें अपनों से दूर एकांतवास में रहना पड़ेगा। हालत ठीक होने पर जब वह लौटकर पंजाब आएंगे तो प्रि यहां पर भी हमें 14 दिन एकांतवास में रहना पड़ेगा।

पहले से ज्यादा मिल रही है खेतों में मजदूरी
इस तरह सबकुछ ठीक रहा तो भी हमें अपनों से व कामकाज से 1 महीने से ज्यादा दूर रहना पड़ेगा।  ऐसे में वह कितने दिन घर वालों के पास रह सकेंगे। इसलिए बेहतर होगा कि हालात को सुधरने दिया जाए। उन्होंने सरकार से भी मांग की है कि अगर हजारों की संख्या वाली लेबर में किसी एक को भी कोरोना हो गया तो इतनी बड़ी भीड़ को संभाल पाना मुश्किल हो जाएगा। गेहूं कटाई में मिल रहे बढियां पैसे वहीं धान की खेती पर है नजर अपने पसीने के बल पर समृद्धि की इबारत लिखने वाले बिहार व उत्तर प्रदेश के मजदूरों का कहना है कि गेहूं काटने के सीजन में पहले हमें यहां 3000 से रुपए प्रति एकड़ मिलते थे लेकिन इस बार 3500 से 4000 रुपए मिल रहे हैं। अगले महीने धान की रोपाई शुरू हो जानी है। 

खाने-पीने की नहीं है समस्या
गांवों में खाने पीने की कोई खास समस्या नहीं है फिर हम क्यों घर वापस जाए। पंजाब में अथक मेहनत कर हमने इसको अपनी कर्मभूमि बना लिया है। यहां से हमें सुख समृद्धि मिली है। कई लोग मजदूर से मालिक बन गए हैं। हम यहां इस उम्मीद से जमे हैं कि संकट का दौर खत्म होने के बाद हमारा रोजगार फिर चल पड़ेगा। सब्जी बेचने वाले रिक्शा वाले भी नहीं लौटना चाहते गांव होशियारपुर में रिक्शा चालने वाले व सब्जी बेचने वालों के साथ साथ श्रमिकों और रेहड़ी चलाने के रोजगार से जुड़े श्रमिकों का कहना है कि यहां कफ्र्यू में भी भोजन की समस्या नहीं है। जगह-जगह लंगर लगे हुए हैं। लोग भूखे नहीं सो रहे हैं। यहां से कहीं चले गए तो बड़ी समस्या पैदा हो सकती है। पहले थोड़े लोग जरूर गए थे। अब जो लोग यहां हैं, वे धैर्य के साथ रह रहे हैं। कफ्र्यू खत्म होने के बाद सभी अपना काम-धंधा करेंगे। 

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