पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 : Vote Bank के लिए बदल रहे नेताओं के 'दिल'

Edited By Sunita sarangal,Updated: 30 Jan, 2022 11:32 AM

leaders left party for vote bank

25 साल पहले पंजाब में बना अकाली-भाजपा गठजोड़ कृषि बिलों के चलते अचानक बिखर गया। दोनों दल इस गठबंधन को.......

चंडीगढ़ (हरिश्चंद्र): 25 साल पहले पंजाब में बना अकाली-भाजपा गठजोड़ कृषि बिलों के चलते अचानक बिखर गया। दोनों दल इस गठबंधन को राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक गठजोड़ करार देते थे मगर 25 साल पहले बना यह गठजोड़ ज्यों ही टूटा, भाजपा और अकाली दल ने रणनीति बदल कर एक-दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगानी शुरू कर दी। देशभर में अकाली दल को सिखों की पार्टी माना जाता है, जबकि भाजपा को हिंदू जनाधार वाला राजनीतिक दल। शिअद हिंदू नेताओं को तोड़कर अपना हिंदू वोट बैंक पर कब्जा करना चाहता है, तो वहीं भाजपा शिअद के सिख नेताओं को अपने खेमे में शामिल कर जट सिख वोट बैंक खोना नहीं चाहती। अकाली दल जहां दो मंत्रियों को पार्टी में शामिल कर भाजपा को झटका दे चुका है वहीं भाजपा भी अब दर्जनों अकाली नेताओं को पार्टी में शामिल करके कई को टिकट तक दे चुकी है। अकाली-भाजपा से एक-दूसरे दल में शामिल हुए ऐसे नेताओं का ब्यौरा इस प्रकार है:-

6 शिअद से आए, मिली टिकट
कृषि कानून वापस लेने के बाद भाजपा पंजाब में अपने हक में माहौल तैयार नहीं कर पा रही थी लेकिन जब अन्य दलों और खासकर अकाली दल से नेताओं ने भाजपा में शामिल होने की शुरूआत की तो सूबे में पार्टी वर्करों का भी मनोबल बढ़ा। आम लोग ही नहीं राजनीति से जुड़ी प्रमुख हस्तियां भी सोचने को मजबूर हो गईं कि आखिर शिअद के नेताओं को भाजपा ही मंजिल के रूप में क्यों नजर आ रही है। जालंधर कैंट के सर्बजीत मक्कड़ भी अकाली दल के इन विधायकों में शामिल हैं जिन्होंने पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया था। अब उन्हें जालंधर कैंट से ही उम्मीदवार घोषित किया गया है।

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करीबी के जाने से झटका
भाजपा में शामिल हुआ सबसे चर्चित और खास चेहरा रहे मनजिंदर सिंह सिरसा। दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमैंट कमेटी के प्रधान, पूर्व विधायक और सुखबीर सिंह बादल के सबसे करीबी नेताओं में शुमार सिरसा ने जब भाजपा का दामन थामा तो यह अकाली दल के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं था।

अब भाजपा से लड़ेंगे
उनके अलावा अकाली दल से पूर्व विधायक मोहन लाल बंगा, दीदार सिंह भट्टी, सरबजीत सिंह मक्कड़, भाजपा में शामिल होकर अब भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। गुरचरण सिंह टोहरा के नाती कंवरबीर सिंह टोहड़ा, राजविंदर सिंह लक्की एडवोकेट और रविप्रीत सिंह सिद्धू भी अकाली दल से आकर अब भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। शिअद से भाजपा में शामिल अन्य प्रमुख नेताओं में पूर्व विधायक जगदीप सिंह नकई और सुखबीर बादल के ओ.एस.डी. रहे परमिंदर सिंह बराड़, सरचांद सिंह, रिटायर्ड जनरल जे. जे. सिंह और हरि सिंह जीरा के बेटे अवतार सिंह जीरा भी शामिल हैं।

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2 मंत्री शिरमणि अकाली दल ने तोड़े
भाजपा में चाहे अकाली दल से बहुत से नेता शामिल हुए हों जिनमें से आधा दर्जन तो चुनाव भी लड़ रहे हैं लेकिन अकाली दल भी पलटवार में पीछे नहीं है। शिअद में भाजपा से बहुतायत में नेता तो नहीं आए मगर जो 2 प्रमुख नाम हैं, उनसे भाजपा के होश फाख्ता हैं क्योंकि दोनों ही अकाली-भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं। मंत्री पद तक पहुंचे भाजपा नेता द्वारा अकाली दल में शामिल होने से भाजपा जहां सकते में है वहीं अकाली दल को उत्साह मिला है।

उसी हलके से उम्मीदवार
अनिल जोशी अमृतसर उत्तरी हलके से विधायक रहे हैं। कृषि कानूनों के विरोध में उन्होंने शिअद में शामिल होने का ऐलान किया था और अब अकाली दल ने उन्हें उसी हलके से उम्मीदवार घोषित किया है। पता चला है कि कृषि कानून तो महज बहाना थे, दरअसल उनकी पार्टी के ही कुछ स्थानीय नेताओं से पटरी नहीं बैठ रही थी।

मित्तल बेटे समेत शिअद के हुए
इसके अलावा बड़ा नाम है मदन मोहन मित्तल का। मित्तल बादल सरकार में कई बार मंत्री रहे 4 बार विधायक रहे। 82 साल के मित्तल 1977 में पहली बार विधायक चुने गए थे। उन्होंने ताउम्र भाजपा में ही सेवाएं दीं। संघ से जुड़े मित्तल आतंकवाद के दौर में करीब 7 साल तक लगातार पंजाब भाजपा के प्रधान रहे। श्री आनंदपुर साहिब हलके से भाजपा द्वारा लगातार दूसरी बार टिकट देने से इंकार करने के बाद मित्तल बेटे अरविंद मित्तल समेत अकाली दल में शामिल हो गए। मित्तल बेटे अरविंद मित्तल के लिए भाजपा से टिकट चाहते थे। उन्हें टिकट मिलती है तो वह श्री आनंदपुर साहिब में भाजपा उम्मीदवार के लिए और परेशानी खड़े करेंगे जो पिछला चुनाव 20,000 वोट से ज्यादा के अंतर से हार चुके हैं।

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