Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Jan, 2018 11:05 AM
इतिहास गवाह है कि लंबे चलने वाले संघर्षों को अपने ही आदमियों से खतरा पैदा हो जाता है, उसी खतरे की चिंता अब कॉन्ट्रैक्ट इम्प्लाइज यूनियन थर्मल प्लांट बठिंडा के नेताओं को भी होने लगी है।
बठिंडा(बलविंद्र): इतिहास गवाह है कि लंबे चलने वाले संघर्षों को अपने ही आदमियों से खतरा पैदा हो जाता है, उसी खतरे की चिंता अब कॉन्ट्रैक्ट इम्प्लाइज यूनियन थर्मल प्लांट बठिंडा के नेताओं को भी होने लगी है। कच्चे कर्मियों का पक्का मोर्चा आज 20वें दिन भी जारी रहा। यूनियन ने सहयोगी संगठनों के साथ बैठक कर अगले संघर्ष की रूप-रेखा तैयार की ताकि संघर्ष को ओर तेज किया जा सके परंतु आज भी सरकार ने कर्मियों का कोई हाल नहीं जाना और न ही किसी नेता के साथ बैठक का भरोसा दिया।
गौर हो कि मजदूर वर्ग या आम कर्मियों के संघर्ष बड़े उत्साह से शुरू होते हैं लेकिन धीरे-धीरे रैलियां व प्रदर्शनों में वर्करों की गिनती कम होने लगती है, जबकि कुछ नेता भी इधर-उधर हो जाते हैं। इसको दगाबाजी या बेवफाई नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि वर्करों के कम होने का कारण उनका निजी स्वार्थ होता है, स्वार्थ ही क्यों इसको मजबूरी भी कहा जा सकता है क्योंकि घरेलू आॢथक हालातों के कारण वे अपनी आजीविका कमाने के लिए अन्य तरफ हाथ-पैर मारने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
इन सब कारणों से कच्चे कर्मियों के संघर्ष को अंदरूनी चोट का डर भी बना हुआ है क्योंकि कच्चे कर्मियों का वेतन 2 महीनों से बंद है। ऐसे में वे संघर्ष में सहयोग कब तक कर सकेंगे। सियासतदानों का पुराना तरीका रहा है कि मांगों को लटका कर या नेताओं को बहका कर संघर्ष को आसानी से तार-तार किया जा सकता है। ऐसा ही कुछ यहां भी हो रहा है।
बांधा हुआ त्रिमूर्ति पुतला जलाए जाने के इंतजार में
थर्मल कर्मियों ने 1 जनवरी को पक्का मोर्चा शुरू करने के चलते 31 दिसम्बर की रात को डी.सी. कार्यालय के समक्ष टैंट आदि लगाने के अलावा यहां सरकारी जंगलों पर सरकार का एक त्रिमूर्ति पुतला भी बांध दिया था जिसमें मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह, वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल व पूर्व बिजली मंत्री राणा गुरजीत सिंह को शामिल किया गया है। यह पुतला उसी दिन से जलाए जाने के इंतजार में है।