250 करोड़ के घोटाले के बाद सख्ती का साइड इफैक्ट: प्लाट की रजिस्ट्री व ट्रांसफर में बढ़ी लोगों की परेशानियां

Edited By Vatika,Updated: 21 Mar, 2019 08:17 AM

property scandal

फोरैंसिक ऑडिट में पिछले समय के दौरान एल.डी.पी. (लोकल डिसप्लेस्ड पर्सन) में 250 करोड़ से अधिक का घोटाला होने का जिन्न निकल कर बाहर आया था, लेकिन एल.डी.पी. में धांधली कहां हुई इस बात को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि ट्रस्ट द्वारा खुद मनमर्जी...

जालंधर (पुनीत): फोरैंसिक ऑडिट में पिछले समय के दौरान एल.डी.पी. (लोकल डिसप्लेस्ड पर्सन) में 250 करोड़ से अधिक का घोटाला होने का जिन्न निकल कर बाहर आया था, लेकिन एल.डी.पी. में धांधली कहां हुई इस बात को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि ट्रस्ट द्वारा खुद मनमर्जी करके एल.डी.पी. अलॉटमैंट नहीं की गई। कई अलॉटमैंट निकाय विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा दिए स्पीकिंग ऑर्डर के आदेशों के बाद ही की गई। 
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सरकार द्वारा करवाई गई फोरैंसिक जांच के बाद एल.डी.पी. के केसों के मामलों पर पंजाब भर में रोक लगा दी गई है जिसके चलते प्लाट खरीदने वाले व्यक्ति परेशानी उठाने को मजबूर हैं। आलम यह है कि किसी का प्लाट ट्रांसफर नहीं हो पा रहा तो किसी को एन.ओ.सी. मिलने में दिक्कत पेश आ रही है, वहीं कई व्यक्ति रजिस्ट्री करवाने के लिए भटक रहे हैं।अधिकतर मामलों में एल.डी.पी. केस के प्लाट मालिकों द्वारा अपनी जमीन को आगे बेच दिया गया जिसे खरीदने वाला व्यक्ति अब परेशानी उठाने को मजबूर है। खरीदार का एक ही सवाल है एल.डी.पी. में धांधली हुई या नहीं, इससे उसे क्या लेना-देना क्योंकि उसने तो दूसरे व्यक्ति से प्लाट खरीदा है, फिर उसके काम पर रोक क्यों लगाई गई है, उसका क्या दोष है। 

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जानकार बताते हैं कि एल.डी.पी. केसों में 1954 के नियमों का हवाला देकर इसे गलत करार दिया जा रहा है। 1954 का नियम था कि केवल डैमेज एरिया स्कीम के जमीन मालिकों को एल.डी.पी. अलॉट किया जा सकता है, जालंधर की बात की जाए तो केवल ढन्न मोहल्ला (भाई दित्त सिंह नगर) ही डैमेज स्कीम के अन्तर्गत आता है। इसके बावजूद कई अन्य स्कीमों में सैंकड़ों की संख्या में एल.डी.पी. प्लाट दिए गए। अब सवाल उठता है कि विवादों में आई यह अलॉटमैंट कैसे की गई? बताया जाता है कि ट्रस्ट द्वारा नियमों में बदलाव के हवाले की बात कहकर उक्त अलॉटमैंट की गई।1974 में तत्कालीन चेयरमैन सुरजीत सिंह सूद द्वारा सरकार को पत्र संख्या 2439 के माध्यम से जमीन अधिग्रहण व एल.डी.पी. के बारे में संशोधन हेतु लिखा गया। इस पर लोकल बॉडी द्वारा अगस्त-1974 में संशोधन को मंजूरी दी गई, जिसके आधार पर एल.डी.पी. केस अलॉट किए गए। कई लोग का नोटीफिकेशन न होने की बात कहते हैं जबकि ट्रस्ट मता नं. 17 के तहत इस संशोधन का मान्य होने के बारे लोकल बॉडी विभाग के साथ हुए पत्राचार में इसका जिक्र किया जा चुका है। 

जमीन के दाम पर उठे सवाल
सरकार द्वारा करवाई गई जांच में जो सवाल उठ रहे हैं, वह जमीन के दामों को लेकर उठ रहे हैं। एक एल.डी.पी. केस के मुताबिक ट्रस्ट द्वारा 1975-76 में एक स्कीम लांच करते वक्त जमीन का अधिग्रहण किया गया। उक्त जमीन के मालिक ने एल.डी.पी. प्लाट हेतु आवेदन किया लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हुई। 1992 में ट्रस्ट ने पंजाब के सभी ट्रस्टों में एल.डी.पी. से संबंधित आवेदन मांगे जिसके लिए 1000 रुपए फीस रखी गई। उक्त फीस जमा करवाने के बाद भी ट्रस्ट ने प्लाट नहीं दिया तो आवेदनकत्र्ता ने हाईकोर्ट की शरण ली। इस पर हाईकोर्ट ने निकाय विभाग के सचिव को स्पीकिंग ऑर्डर करने के निर्देश दिए। एक केस में 24 दिसम्बर 2012 को पंजाब सरकार के सचिव सुरेश कुमार द्वारा प्लाट देने के आदेश दिए गए। 2012 में जो प्लाट अलॉट किया गया वह 1975 में अधिग्रहण की गई जमीन के दामों पर दिया गया, इसी बात को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। आरोप लग रहे हैं कि मिलीभगत के चलते सरकार को चूना लगाया गया। आवदेनकत्र्ता कहते हैं कि जिस स्कीम में प्लाट अधिग्रहण किया गया उसकी कीमत अब आसमान छू रही है, जबकि जिस स्कीम में प्लाट दिया गया वह कालोनी डिवैल्प तक नहीं हुई। 

कैसे मिलता है एल.डी.पी. प्लाट
ट्रस्ट द्वारा जिस व्यक्ति की जमीन का अधिग्रहण किया जाता है, उसे उसके बदले में एल.डी.पी. (लोकल डिसप्लेस्ड पर्सन) को प्लाट देने का प्रावधान है। 1954 के नियमों के मुताबिक डैमेज स्कीम के तहत ही दूसरी स्कीम में प्लाट देने का प्रावधान रखा गया था। लोगों की मांग व जमीन अधिग्रहण में आ रही परेशानियों को मद्देनजर रखते हुए इसमें संशोधन का प्रस्ताव रखा गया। सरकार द्वारा 1974 में नियमों में जो बदलाव किया गया उसमें कहा गया कि जिस व्यक्ति की जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है, वह यदि 2 साल पहले से जमीन का मालिक है तभी वह एल.डी.पी. पाने के लिए सक्षम है। एल.डी.पी. केस में 500 गज तक का प्लाट देने का प्रावधान है। वहीं इस पूरे मामले में लोकल बॉडी विभाग का पक्ष जानने की कोशिश की गई लेकिन सम्पर्क नहीं हो सका। 

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