जलियांवाला बाग नरसंहार पर ब्रिटिश हुकूमत अफसोस नहीं, माफी मांगे: कुरैशी

Edited By Mohit,Updated: 12 Apr, 2019 09:57 PM

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शहीद भगत सिंह मैमोरियल फाऊंडेशन पाकिस्तान की तरफ से शुक्रवार सुबह लाहौर हाईकोर्ट बार के डैमोक्रैटिक हॉल परिसर में जलियांवाला बाग नरसंहार के शताब्दी पर श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया गया।

होशियारपुर (अमरेन्द्र): शहीद भगत सिंह मैमोरियल फाऊंडेशन पाकिस्तान की तरफ से शुक्रवार सुबह लाहौर हाईकोर्ट बार के डैमोक्रैटिक हॉल परिसर में जलियांवाला बाग नरसंहार के शताब्दी पर श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया गया। समारोह की अध्यक्षता फाऊंडेशन के संस्थापक सुप्रिम कोर्ट के वकील एडवोकेट अब्दुल राशिद कुरैशी ने की जबकि मुख्य वक्ता के तौर पर फाऊंडेशन के चेयरमैन इम्तियाज राशिध कुरैशी ने की। समारोह में भारी संख्या में हाईकोर्ट व सुप्रिम कोर्ट की वकीलों के साथ-साथ गणमान्य नागरिकों ने हिस्सा लिया। 

श्रद्धांजलि समारोह के दौरान सभी वक्ताओं ने 100 साल पहले बैशाखी के दिन 13 अप्रैल को भारत और पाकिस्तान के साझा इतिहास का हिस्सा रहे जलियांवाला बाग नरसंहार के लिए ब्रिटेन सरकार से सिर्फ अफसोस नहीं बल्कि माफी मांगने को कहा। इस अवसर पर एडवोकेट अब्दुल राशिद कुरैशी ने पाकिस्तान सरकार से जलियांवाला नरसंहार के बारे में मौजूदा पाकिस्तान के युवा पीढ़ी को जागरुक करने के लिए इस विषय को अपने स्कूल व कॉलेजों के सिलेबस में शामिल करने की भी मांग की। समारोह के बाद कैंडल मार्च निकाल शहीदों को श्रद्घांजलि अर्पित की गई।

लाहौर-अटारी सडक़ का नाम जलियांवाला रोड करे सरकार
इस अवसर पर फाऊंडेशन के चेयरमैन इम्तियाज राशिद कुरैशी ने कहा कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने जलियावांला नरसंहार पर अफसोस जाहिर करते हुए इसे शर्मनाक धब्बा कहा है लेकिन हमारी मांग है कि ब्रिटिश हुकूमत इसके लिए भारत व पाकिस्तान से माफी मांगे। यही नहीं हमारी मांग है कि नरसंहार में शहीद हुए मृतकों के परिजनों को मुआबजा भी दे। उन्होंने पाकिस्तान सरकार से मांग की कि लाहौर से अटारी सीमा तक जाने वाली हाईवे का नाम जलियांवाला रोड करे व पाकिस्तान सरकार डाक टिकट भी जारी करे। 

एक हजार से ज्यादा लोगों की हुई थी मौत
13 अप्रैल 1919, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का एक ऐसा दिन, जिसे इतिहास की तारीख में जलियांवाला बाग नरसंहार के रूप में जाना जाता है। जलियांवाला बाग कांड में शांतिपूर्ण सभा कर रहे लोगों पर मुख्य द्वार बंद कर गोलियां बरसाई गईं थी। तमाम लोग गोलियों से बचने के लिए कुएं में कूद गए थे। इस नरसंहार में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे और डेढ़ हजार घायल हुए थे।
 

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