थमने का नाम नहीं ले रहा होशियारपुर जिले में अवारा कुत्तों का आतंक

Edited By Mohit,Updated: 14 Oct, 2019 07:32 PM

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गली में घूमने वाले अवारा ही नहीं बल्कि आक्रामक नस्ल वाले कुत्तों की ठीक से देखभाल न होना परेशानियों का सबब बन जाता है।

होशियारपुर (अमरेन्द्र): गली में घूमने वाले अवारा ही नहीं बल्कि आक्रामक नस्ल वाले कुत्तों की ठीक से देखभाल न होना परेशानियों का सबब बन जाता है। अक्सर इनका शिकार वे लोग भी हो जाते हैं, जो डॉग लवर्स भी होते हैं। ऐक्टिविस्ट की मानें तो गलती महज पशुओं की ही नही होती बल्कि कुत्ते पालने वाले लोगों का गैर जिम्मेदाराना रवैया भी इन हादसों की वजह बनता है। कुछ ऐसा ही मामला आज जिले के शामचौरासी हल्के में पड़ते 2 गांवों पंडोरी व बादोवाल में अवारा कुत्ते के काटने से कुल 6 लोग गंभीर तौर पर घायल हो होशियारपुर व शामचौरासी सिविल अस्पताल में दाखिल हुए। अवारा कुत्तों के आतंक का शिकार होने वाले आधे दर्जन लोगों में 2 मासूम बच्ची भी शामिल है।

बुरी तरह नोंच अवारा कुत्ते ने किया जख्मी 
सिविल अस्पताल होशियारपुर में उपचाराधीन 45 वर्षीय नीलम पत्नी अवतार निवासी बादोवाल ने अपने परिजनों की उपस्थिति में बताया कि वह रोजाना की तरह घर से सुबह के समय हवेली की तरफ जा रही थी। इसी दौरान घर के बाहर ही अवारा कुत्तों ने हमलाकर बुरी तरह नोंचना शुरू कर दिया। आसपास के लोग बचाव के लिए मौके परपहुंचे उससे पहले अवारा कुत्तों ने उसके साथ साथ 16 वर्षीया नवजोत कौर व 2 वर्षीय मासूम राजा को भी जख्मी कर दिया।

मासूम बच्चों को भी बनाया शिकार
सिविल अस्पताल में उपचाराधीन घायलों के परिजनों कुलवंत कौर, गुरमीत कौर व अन्य निवासी गांव पंडोरी ने रोते हुए बताया कि सुबह 10 बजे के करीब अवारा कुत्तों ने मासूम बच्ची हरप्रीत के अलावे सुनीता व हरमिन्द्र सिंह को बुरी तरह नोंचकर जख्मी कर दिया। घायलों को लेकर पहले हम लोग शामचौरासी व बाद में इलाज के लिए होशियारपुर पहुंचे हैं।

थमने का नाम नहीं ले रहा कुत्तों का आतंक
कुछ दिन पहले ही टांडा व दसूहा कस्बे के साथ लगते गांवों में करीब 4 दर्जन लोगों को कुत्तों ने काट खाया जिससे बाहरी राज्य से आए गरीब मजदूर परिवारों की परेशानी बढ़ गई थी। यही नहीं जिले के शहर के कई हिस्सों में आज भी कुत्तों के काटने से लोग परेशान हैं पर कुछ मामलों को छोड़ सरकार आवारा कुत्तोंं पर लगाम लगाने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। 

कुत्तों को बाहर नहीं छोडऩे पर अदालत भी सख्त
सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार इन्हें कहीं बाहर भी नहीं छोड़ा जा सकता है। इस कारण इनका सिर्फ बंध्याकरण ही किया जा सकता है। दरअसल वर्ष 2003 में एनीमल बर्थ कंट्रोल एक्ट के तहत कुत्तों की संख्या पर नियंत्रण करने की जिम्मेदारी नगर निगमों को दी गई है इसलिए भी सिविक एजेंसियों को इनके खिलाफ कार्रवाई में परेशानी पेश आती है।\

सिविल अस्पतालों में पर्याप्त मात्रा में है रैबीज के टीके: डॉ.शैलेश
जब इस सम्बंध में एपीडियोमॉलोजिस्ट डॉ.शैलेश कुमार से पूछा तो उन्होंने बताया कि जिले के सभी सिविल अस्पतालों, डिस्पैंशरियों व कम्युनिटी हॉस्पीटल में रैबीज के टीके पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। जब कोई केस सामने आता है तो मरीज को मुफ्त टीका लगाई जाती है। उन्होंने कहा कि रेबीज को हाइड्रोफोबिया भी कहा जाता है। यह पशुओं से फैलने वाला वायरल जूनोटिक इंफैक्शन है। इसमें इनकेफोलाइटिस जैसा उपद्रव होता है, जो उपचारित न किए जाने पर घातक हो जाता है। किसी पागल कुत्ते या बंदर के काटने से यह स्थिति पैदा होती है। इंफैक्शन को फैलने से रोकने के लिए एंटीबॉडिज हैं, जो टीकाकरण द्वारा दिए जाते हैं। काटने के 24 घंटे के अंदर इसे दे देना चाहिए। इससे इंफैक्शन रुक जाता है

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