सिद्धू ने अभी नारियल फोड़ा है, कथा बाकी है

Edited By Updated: 26 Jul, 2016 09:16 AM

navjot singh sidhu

नवजोत सिंह सिद्धू का जवाब नहीं है लेकिन सोमवार को न उन्होंने जवाब दिए न ही यह लगा कि भविष्य की रणनीति को लेकर वह स्पष्ट हैं।

नई दिल्ली (अकु श्रीवास्तव): नवजोत सिंह सिद्धू का जवाब नहीं है लेकिन सोमवार को न उन्होंने जवाब दिए न ही यह लगा कि भविष्य की रणनीति को लेकर वह स्पष्ट हैं। उम्मीद थी कि सोमवार को वह पंजाब की राजनीति के पत्ते खोलेंगे लेकिन उन्होंने अन्य अकड़ू नेताओं की तरह से सोचा-समझा सिद्धू शैली का वक्तव्य शे‘र-ओ-शायरी के सहारे पढ़ा। भविष्य में मूर्त रूप लेने वाली योजनाओं का सिर्फ नारियल फोड़ा और चलते बने।

राज्यसभा से इस्तीफा दिए उन्हें एक हफ्ता हो गया है और ऐसे में इन सवालों का जवाब मिलना वाजिब होता कि क्या करेंगे सिद्धू। आम आदमी पार्टी का हिस्सा बनेंगे या फिर पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कांग्रेस से अमरेंद्र ने जो पार्टी में शामिल होने का पांसा फैंका था वह फुस्स ही साबित हुआ। बल्कि अब तो यह सवाल ज्यादा उठ रहा है कि कांग्रेस ने ऐसा प्रस्ताव दिया ही क्यों? आप तो पहले से उनको दोनों हाथों से गोद लेने को तैयार ही थी।

पर एक बात तो सिद्धू ने साफ कर ही दी कि वह अपनी रणनीति का खुलासा धीरे-धीरे करेंगे और इसमें सबसे ज्यादा निशाने पर उनकी कभी अपनी ही पार्टी रही भाजपा होगी। खासतौर पर राष्ट्रीय स्तर पर जब वह बोलेंगे तब और पंजाब में, जिसके लिए आज उनका पूरा वक्तव्य था, शिरोमणि अकाली दल को निशाने पर रखेंगे। सिद्धू ने इस्तीफे के बाद अपनी उपस्थिति में नाटकीयता के पूरे तत्व दिखाए। अभिनय क्षमता को अब नवजोत कॉमेडी नाइट तक ही सीमित नहीं कर रहे हैं। 

सिद्धू ने प्रैस कांफ्रैस के दौरान भरे गले से पूरा जोर पंजाब प्रेम के साथ राष्ट्र धर्म पर रखा और कहा कि शाम होते-होते पक्षी भी जब अपने घर लौटता है तो वह क्यों न आएं? लेकिन वह इस बात से बचते रहे कि कहीं कोई यह न पूछ ले कि अगर ऐसा ही था तो पंजाब से अलग उन्होंने राज्यसभा का मनोनयन स्वीकार किया ही क्यों? क्या यह भी उनका और आप का भाजपा की छवि पर दाग लगाने की रणनीति का एक हिस्सा था?

यह तो साफ है कि आम आदमी पार्टी उनका पूरा इस्तेमाल करेगी। चाहे नवजोत अभी आप से बाहर रहें या फिर एक और चल रही चर्चा के अनुसार चौथा मोर्चा बनाकर राजनीति करें। 

चौथा मोर्चा बनाकर अगर सिद्धू मैदान में उतरते हैं तो तय है कि थोड़ा-थोड़ा नुक्सान वह सबका करेंगे। उनका बड़ा हमला अकालियों पर होगा। लेकिन इससे अकालियों का वोट बैंक एकजुट होने का खतरा भी होगा। भाजपा को उनसे बहुत नुक्सान होने के खतरे बहुत कम हैं। सिद्धू पहले भी कांग्रेस पर तीखे हमले करते रहे हैं और अपना वोट बैंक बनाने के लिए उस पर फिर हमले करेंगे। इसलिए कुछ वोट वह जरूर खींचेंगे। ऐसे में एक बात तो साफ होती है कि फिर सीधी लड़ाई आप और अकालियों के बीच होगी। पर राजनीति इतनी आसान नहीं है और न ही सिद्धू की वाणी सीधी बात कहती है। चुनाव के पहले के पहले 8 महीने के एक-एक कदम की रणनीति तय करने की कोशिश तो सिद्धू दम्पति ने कर ही ली होगी लेकिन आप में होने वाले उनके संभावित इस्तेमाल के प्रति वे आशंकित हैं, ऐसा भी लगता है। 

खासतौर पर आप के मुख्यमंत्री पद के दावेदारों और प्रमुख नेताओं से। आप भी सिद्धू का इस्तेमाल भरपूर करना चाहती है बिना अतिरिक्त नुक्सान के। 

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